देश की राष्ट्रीय एयरलाइन 'एयर इंडिया' आमतौर पर यात्रियों की सुविधाओं की अनदेखी करने, या यूं कहिए अच्छी कस्टमर सर्विस नहीं देने के लिए बदनाम है, लेकिन जब इसमें कोई राजनेता सफर करता है, तब आमतौर पर वीआईपी के साथ उन्हें एस्कॉर्ट करते एयर इंडिया स्टाफ के ढेरों लोग दिखाई देने लगते हैं.
लेकिन अब बस... एयर इंडिया प्रमुख अश्वनी लोहानी ने यह सब रोक देने का संदेश अपने स्टाफ को दिया है. एयर इंडिया के लगभग 20,000 कर्मचारियों को भेजे एक खत में उन्होंने लिखा, "संस्थान में ध्यान सिर्फ और सिर्फ काम पर दिया जाना चाहिए..." उन्होंने स्टाफ को चेताया है कि जब वह एयर इंडिया के किसी दफ्तर में पहुंचते हैं, खुद उन्हें 'कोई गुलदस्ता पेश नहीं' किया जाए, और मुझे एयरपोर्ट पर लेने या छोड़ने के लिए 'कम से कम' स्टाफ आए. वैसे, एय़र इंडिया में तो रिसेप्शन टीमों को पूरी तरह खत्म कर देने का सुझाव दिया जाना चाहिए.
पिछले साल अक्टूबर में एयर इंडिया का प्रभार संभालने वाले लोहानी ने कहा, इस सरकारी कंपनी के वर्क कल्चर में से 'छोटी-छोटी कर्टसी' निकाल दी जानी चाहिए. 85 साल पुरानी सरकार के स्वामित्व वाली एयरलाइन कंपनी मुनाफा नहीं कमा पा रही है, ज़रूरत से ज़्यादा स्टाफ की समस्या से जूझ रही है, और उसकी बाज़ार हिस्सेदारी भी कम हो रही है. भारतीय एविएशन बाज़ार भले ही दुनिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन उस पर कदरन नई कम किराये वाली इन्डिगो और स्पाइसजेट जैसी कंपनियों का आधिपत्य होता जा रहा है.
किसी एयरलाइन को चलाने का कोई तजुर्बा नहीं होने के बावजूद इंजीनियर और पर्यटन ब्यूरोक्रैट रहे 58-वर्षीय अश्वनी लोहानी ने पिछले साल एयरलाइन का चार्ज लेते वक्त कहा था, "यह अल्टीमेट चैलेंज हैं..."
वास्तव में इसे बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात नहीं समझा जा सकता. एयर इंडिया हमेशा से ही घटिया स्टाफ अनुशासन, घटिया सेवाओं और आमतौर पर देरी के लिए जानी जाती है. एयर इंडिया अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में स्टाफ पर कहीं ज़्यादा खर्च करती है, और उनके राजस्व का 20 फीसदी हिस्सा सिर्फ स्टाफ को दी जाने वाली वेतन और सुविधाओं में खर्च होता है, जबकि जेट एयरवेज़ इस मद में सिर्फ 10 फीसदी खर्च करती है. इसके अलावा कंपनी का फ्लीट भी ज़्यादा महंगा है, और यह कई ऐसे सेक्टरों में उड़ान भरती है, जहां मुनाफा नहीं हो सकता. बताया जाता है कि एयर इंडिया पर 50,000 करोड़ रुपये की देनदारी है, और सिर्फ ब्याज के मद में उसे हर साल लगभग 4,000 करोड़ रुपये देने पड़ते हैं.