कॉल ड्राप होने पर ग्राहकों को मुआवजा देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ टेलिकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्राई मुआवजे के फार्मूले पर एक बार फिर से विचार करे।
पहली नजर में लग रहा है कि ट्राई ने मुआवजे के आदेश को जारी करते हुए तकनीकी पक्ष पर ज्यादा गौर नहीं किया। कॉल ड्राप मामले में मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कम्पनियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कॉल ड्राप के लिए मोबाइल कंपनियां जिम्मेदार नहीं हैं। कॉल ड्राप होने के पीछे कई कारण हैं। इनमें उपभोक्ताओं के द्वारा इस्तेमाल किये गए मोबाइल फोन, मोबाइल टावर से दूरी और सुरंग या फिर जैमर लगे एरिया या फिर मोबाइल कंपनियों के केबल कटने जैसे मामले जिम्मेदार हैं।
ये मामला बिजली की तरह नहीं बल्कि रेडियो वेव पर आधारित है। वहीं निगम कंपनियों के टावर सील कर रहीं हैं जो कॉल ड्रॉप को बढ़ा रहीं हैं तो दूसरी तरफ ट्राई कंपनियों पर मुआवजा देने के आदेश जारी कर रहा है। कंपनियों की ओर से कहा गया कि दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं जहां कॉल ड्राप न होता हो। कोलंबिया एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉल ड्रॉप पर जुर्माना लगाया जाता है।
दुनिया में हर जगह 2 से 5 फीसदी कॉल ड्राप का औसत माना जाता है। भारत में यह 2 फीसदी है। जब 2 फीसदी स्वीकार्य है तो हम पर ये जुर्माना क्यों लगाया जा रहा है। दरअसल हाईकोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उन्हें कॉल ड्रॉप होने पर ग्राहकों को मुआवजा देना ही होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि कंपनियों को अपने उपभोक्ताओं को यह मुआवजा 1 जनवरी 2016 से देना होगा।
ट्राई ने 16 अक्टूबर 2015 को आदेश जारी किया था कि टेलीकॉम सर्विस कंपनियां, अगर कॉल ड्राप होता है तो 1 रुपया उपभोक्ता को बतौर मुआवजा देंगी जो एक दिन में 3 रुपये हो सकता है। इसके खिलाफ मोबाइल कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कंपनियों की दलील थी कि ट्राई का ये आदेश मनमाना और गैरकानूनी है, इसे रद्द किया जाए।