भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के आइकन, यश चोपड़ा (Yash Chopra) अपने दौर से आगे की सोच रखते थे जिसे समझ पाना सबके बस की बात नहीं थी. इस मशहूर फिल्म निर्माता ने दर्शकों के लिए कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों का निर्माण किया. उनके द्वारा बनाई गई कुछ बेहतरीन क्लासिक फिल्मों में 'दाग', 'दीवार', 'लम्हे', 'सिलसिला', 'चांदनी', 'डर', 'दिल तो पागल है', 'वीर-जारा', 'जब तक है जान', जैसी कई फिल्में शामिल हैं. हाल ही में यश चोपड़ा के बारे में 50 साल पहले उनके एम्प्लॉई और फिर एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बने माहेन वकील ने उनसे जुड़े कुछ किस्से साझा किये हैं, जिसके बारे में शायद ही किसी को पता हो.
माहेन वकील (Mahen Vakil) ने यश चोपड़ा (Yash Chopra) के बारे में बात करते हुए कहा, "उन्होंने कभी भी अपने काम के साथ कोई समझौता नहीं किया. सेट पर किसी भी आर्टिस्ट को फिल्म का सीन समझाते समय वह इतने डूब जाते थे कि वहां मौजूद लोगों को लगता कि यश जी खुद ही परफॉर्म करने वाले हैं. वह एक्टर्स को हर सीन की बारीकियों के बारे में अच्छी तरह और बड़े विस्तार से बताते थे, जिसके बाद एक्टर्स का बेस्ट परफॉर्मेंस खुद ही सामने आ जाता था. आज के दौर की लव स्टोरीज, यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई फिल्मों से बिल्कुल अलग होती हैं. उनकी लव स्टोरीज सचमुच बेजोड़ हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है."
माहेन (Mahen Vakil) ने कहा कि यश चोपड़ा (Yash Chopra) की फिल्में काफी महंगी हुआ करती थीं. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "उनकी फिल्में काफी महंगी हुआ करती थीं क्योंकि उन्हें हाई-टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा था और वह कभी भी अपने काम में किसी तरह का समझौता नहीं करते थे. अगर आज भी आप 1965 में उनके द्वारा बनाई फिल्में देखेंगे तो आप पाएंगे कि उनके सेट के डिजाइन, कॉस्ट्यूम्स, इत्यादि की कोई तुलना नहीं है. उनके लिए तो, फिल्म-मेकिंग का पूरा प्रोसेस एकदम खरे सोने की तरह था. एक एम्प्लॉई के रूप में, उन्होंने हमें अपनी मर्जी से काम करने का अधिकार दिया, क्योंकि उन्हें पूरा भरोसा था कि हमारा काम बिल्कुल उनकी सोच के अनुरूप होगा. वह हर फिल्म को अपनी सोच के अनुरूप पर्दे पर उतारना चाहते थे और इस स्तर तक पहुंचने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी."
माहेन वकील (Mahen Vakil) ने यश चोपड़ा (Yash Chopra) के सेट पर स्वभाव के बारे में भी बातें कीं. उन्होंने कहा, "यश जी एक जिंदादिल इंसान थे. उनकी नजरों में सभी का दर्जा एक समान था. वह शिफ्ट के समय से 1.5 घंटे पहले सेट पर पहुंच जाते थे और फिर हाथों को मोड़कर गेट के पास खड़े रहते थे, और इस बात को नोटिस करते थे कि कौन-कौन सेट पर किस वक्त आ रहा है. बॉस के आ जाने के बाद सेट पर पहुंचना किसी को अच्छा नहीं लगता था, इसलिए हम सभी वक्त से पहले ही वहां पहुंच जाया करते थे. क्या आज आपको सेट पर इस तरह का माहौल दिखाई देगा?" माहेन वकील ने आगे कहा कि उन्होंने कामयाबी की खूबसूरत मिसाल पेश की.
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