इस सिंगर को दिया गया था स्लो पॉइजन, तीन महीने तक बिस्तर पर पड़ी रही...आखिर में...

इस लीजेंड्री सिंगर की फैन फॉलोइंग केवल देश ही नहीं विदेशों में भी रही है. इनके गानों की पॉपुलैरिटी आज भी वैसी ही है.

इस सिंगर को दिया गया था स्लो पॉइजन, तीन महीने तक बिस्तर पर पड़ी रही...आखिर में...

लता मंगेशकर के बचपन की तस्वीर

नई दिल्ली:

29 सितंबर 1929 को जन्मीं लता मंगेशकर पिछले साल फरवरी में दुनिया को अलविदा कह गईं. वह बेहतरीन और सबसे सम्मानित बैग्राउंड सिंगर्स में से एक थीं. उन्होंने एक हजार से ज्यादा हिंदी फिल्मों में गाने रिकॉर्ड किए और छत्तीस से अधिक भारतीय भाषाओं में गाने गाए. उनका जन्म इंदौर, मध्य प्रदेश में जाने माने क्लासिकल सिंगर और थिएटर आर्टिस्ट पंडित दीनानाथ मंगेशकर और शेवंती के घर हुआ था. उनके भाई-बहन, मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ सभी कुशल संगीतकार और गायक हैं. लता का पालन-पोषण उनके पिता की थिएटर कंपनी के क्रिएटिव माहौल में हुआ जो संगीत नाटक बनाने के लिए जानी जाती थी. परफॉर्मिंग आर्ट में उनका सफर पांच साल की उम्र में शुरू हुआ. शुरुआत एक्टिंग से हुई थी.

एक दिन के लिए गईं स्कूल

जब वह केवल पांच साल की थीं तब उन्होंने अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के संगीत नाटकों में गाना और एक्टिंग करना शुरू कर दिया था. स्कूल में अपने पहले दिन से ही उन्होंने दूसरे बच्चों को संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी और जब टीचर ने उन्हें ऐसा करने से मना किया तो उन्हें इतना बुरा लगा कि उन्होंने कभी भी स्कूल ना जाने का फैसला कर लिया. दूसरे सोर्स बताते हैं कि उन्होंने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वह हमेशा अपनी छोटी बहन आशा के साथ स्कूल जाती थीं और स्कूल इस पर आपत्ति जताता था.

13 साल की छोटी उम्र में लता मंगेशकर की जिंदगी में मुश्किलों का पहाड़ टूट गया क्योंकि उनके पिता का दिल का दौरा पड़ने की वजह से निधन हो गया. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारी संभाली. 1940 के दशक के दौरान म्यूजिक इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए स्ट्रगल करते हुए उन्होंने मराठी फिल्म किती हसाल (1942) के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया. हालांकि अफसोस की बात है कि बाद में इस गाने को फिल्म से बाहर कर दिया गया. 1945 में मुंबई आ जाने के बाद उन्हें सक्सेस फिल्म महल (1949) के 'आएगा आनेवाला' से मिली. इसने उन्हें हिंदी सिनेमा की सबसे अधिक डिमांड वाली आवाजों में से एक बना दिया. उस साल एक पुराने परिचित ने उन्हें अपनी पहली हिंदी फिल्म 'बड़ी मां' में एक छोटा सा रोल ऑफर किया.

हिंदी सिनेमा में उनकी शुरुआत मराठी फिल्म गाजाभाऊ (1943) के लिए 'माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू' से हुई. 1945 में विनायक की कंपनी के साथ मुंबई आकर उन्होंने भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान के साथ संगीत की शिक्षा शुरू की. अपने करियर में आगे बढ़ते हुए उन्होंने वसंत जोगलेकर की हिंदी फिल्म 'आप की सेवा में' (1946) में 'पा लागूं कर जोरी' को अपनी आवाज दी. विनायक की पहली हिंदी फिल्म 'बड़ी मां' (1945) में उनकी बहन आशा ने भी योगदान दिया था जबकि लता ने फिल्म के लिए भजन 'माता तेरे चरणों में' गाया था. संगीतकार वसंत देसाई से उनकी मुलाकात 1946 में विनायक की दूसरी हिंदी फिल्म 'सुभद्रा' की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई.

स्लो पॉइजन

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

1962 की शुरुआत में लता मंगेशकर गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं. डॉक्टरों को बुलाया गया और मेडिकल जांच में पता चला कि उन्हें स्लो पॉइजन दिया गया था. वह तीन दिन तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ती रहीं. इस घटना ने उन्हें शारीरिक रूप से कमजोर कर दिया और वह लगभग तीन महीने तक बिस्तर पर पड़ी रहीं. घटना के तुरंत बाद उनका शेफ अपनी सैलरी लिए बिना घर से गायब हो गया. इस दौरान दिवंगत बॉलीवुड गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी नियमित रूप से दीदी से मिलने जाते थे. पहले उनका खाना चखते थे और उसके बाद ही उन्हें खाने को देते थे.