
ईरान में 1975 की भारतीय फिल्म शोले की दीवानगी बेजोड़ है. रमेश सिप्पी निर्देशित इस फिल्म ने अपनी कहानी, यादगार किरदारों और भावनात्मक गहराई से ईरानी दर्शकों का खूब दिल जीता है. जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) की दोस्ती, गब्बर सिंह (अमजद खान) की खलनायकी, और 'कितने आदमी थे?' जैसे डायलॉग ईरान की लोकप्रिय संस्कृति में रच-बस गए. 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले भारतीय सिनेमा ईरान में बेहद लोकप्रिय था. शोले ने रिलीज के बाद थिएटरों में सालों तक दर्शकों को खींचा. हाल ही में इसकी 50वें सालगिरह पर एक प्रमुख ईरानी अखबार ने इसे पूरे पेज के जरिये याद किया है. कॉन्सुलेट जनरसल ऑफ द इस्लामिक रिपब्लिक ईरान इन मुंबई ने इस बात की जानकारी दी थी और इस पेज को शेयर किया था. इन्होंने एक्स पर एक यूजर को बताया कि ईरानी अभिनेता नाविद मोहम्मदजादेह ने गब्बर से प्रेरित होकर एक स्थानीय फिल्म में खलनायक की भूमिका निभाई. उनका कैरेक्टर उनके लुक और हाव-भाव से प्रेरित था.
ईरान के निर्माता ने 500 बार देखी है शोले
यही नहीं ईरानी फिल्म निर्माता शाहेद अहमदलू भी शोले के जबरदस्त फैन हैं. उन्होंने कहा था कि इस फिल्म ने उन्हें फिल्म निर्माता बनने के लिए प्रेरित किया. 2020 में 12वें बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में, अहमदलू ने बताया था कि उन्होंने शोले को 500 से अधिक बार देखा है और इसे अपने फोन में रखते हैं, हर महीने कम से कम एक बार देखते हैं. उन्होंने फिल्म के हर पहलू, विशेष रूप से इसकी सिनेमैटोग्राफी से प्रभावित होने की बात कही, जिसे वे भारतीय सिनेमा के प्रति अपने प्रेम का मुख्य कारण मानते हैं.
Iranian actor @navidmamza once drew inspiration from #GabbarSingh, mimicking his iconic looks and menacing mannerisms for a villainous role. pic.twitter.com/WaO2skFxWT
— Consulate General of the I.R. Iran in Mumbai (@IRANinMumbai) July 16, 2025
ईरान में ये फिल्में भी रही हैं पॉपुलर
श्री 420 (1955) और संगम (1964) ने भी ईरान में खासी लोकप्रियता हासिल की. राज कपूर की मेलोड्रामैटिक शैली और नर्गिस की अभिनय कला ने 1950 के दशक में ईरानी दर्शकों का दिल जीता. 1957 में ईरान में 49 भारतीय फिल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें राज कपूर की फिल्में प्रमुख थीं. आवारा (1951) ने भी ईरान में गहरी छाप छोड़ी, और राज कपूर वहां एक घरेलू नाम बन गए. लेकिन शोले की लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है.
ईरान में क्यों पॉपुलर भारतीय सिनेमा
भारतीय फिल्में ईरान में कई कारणों से लोकप्रिय थीं. 1950 और 1960 के दशक में, बॉलीवुड की इमोशन से भरपूर कहानियां, उनका दिल छू लेने वाला म्यूजिक और पारिवारिक मूल्यों ने ईरानी दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचा और एक बार जो उन्होंने इन फिल्मों को देखा तो वे इसके फैन हो गए.. राज कपूर और दिलीप कुमार जैसे सितारों की फिल्में, जैसे आवारा और मुगल-ए-आजम, ने सामाजिक और सांस्कृतिक समानताओं को दर्शाया. भारतीय फिल्मों की सादगी और मानवीय संवेदनाएं ईरानी संस्कृति से मेल खाती थीं. इसके अलावा, हॉलीवुड के मुकाबले भारतीय फिल्में सस्ती और सुलभ थीं. डबिंग और स्थानीय भाषा में प्रदर्शन ने भी उनकी लोकप्रियता बढ़ाई. सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सिनेमा की भावनात्मक अपील ने इस रिश्ते को मजबूत किया.
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