आजकल के दौर में एक फिल्म बनाने में मेकर्स कई सौ करोड़ का खर्चा कर दे रहे हैं. वहीं एक समय था जब एक फिल्म बनाने के लिए मेकर्स ने लोगों से चंदा लिया था. इस फिल्म को चंदा लेकर कुछ लाख रुपए में बनाई गई लेकिन फिल्म सुपरहिट रही और खूब कमाई की. यहां बात हो रही है 1976 में रिलीज हुई फिल्म मंथन की. खबरों के अनुसार मई में आयोजित होने जा रहे 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में श्याम बेनेगल की फिल्म मंथन को दिखाया जाएगा. खबर के अनुसार 'मंथन' एकमात्र इंडियन फिल्म है, जिसे इस साल फेस्टिवल के कान्स क्लासिक सेक्शन के तहत सेलेक्ट किया गया है.
मिले दो नेशनल अवार्ड
श्वेत क्रांति यानी दुग्ध क्रांति पर आधारित इस फिल्म को बनाने के लिए 5 लाख किसानों ने चंदा दिया था. खबरों के अनुसार, 5 लाख किसानों ने 2-2 रुपए चंदे के तौर पर दिया और इस चंदे की राशि से फिल्म बनी. फिल्म जबरदस्त हिट रही और इसे एक नहीं बल्कि 2-2 नेशनल अवॉर्ड मिले हैं. इस फिल्म ने 1977 में हिंदी में बेस्ट फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और बेस्ट स्क्रिप्टिंग के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था.
ट्रक में भर कर आए किसान
बता दें ये फिल्म उस साल ऑस्कर के लिए भी भारत की ओर से भेजी गई थी. हालांकि, अवॉर्ड नहीं हासिल कर सकी. लेकिन फिल्म मंथन का नाम बॉलीवुड के इतिहास की सबसे बेहतरीन फिल्मों में शामिल है. 10-12 लाख में बनी इस फिल्म में किसानों से लिए चंदे का पैसा लगा था और रिलीज होने पर, ट्रकों में भरकर वे किसान फिल्म देखने आए. स्मिता पाटिल, गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा के साथ ही अमरीश पुरी इस फिल्म के मुख्य सितारे थे.
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