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This Article is From Sep 28, 2020

सुई-धागा डॉयरेक्टर शरत कटारिया ने कहा- मेरी परवरिश दिल्ली में हुईं हैं इसलिए फिल्मों में मैं अपने निजी अनुभव डालता हूं

अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) और विराट कोहली (Virat Kohli) की सुपरहिट फिल्म “सुई-धागा” की रिलीज के 2 साल पूरे हो गए हैं. इस अवसर पर फिल्‍म के निर्देशक शरत कटारिया ने अपनी फिल्‍मों को लेकर एक खुलासा किया है.

सुई-धागा डॉयरेक्टर शरत कटारिया ने कहा- मेरी परवरिश दिल्ली में हुईं हैं इसलिए फिल्मों में मैं अपने निजी अनुभव डालता हूं
'सुई धागा' की रिलीज को हुए दो साल
नई दिल्ली:

अनुष्का शर्मा और विराट कोहली की सुपरहिट फिल्म “सुई-धागा” की रिलीज के 2 साल पूरे हो गए हैं. इस अवसर पर फिल्‍म के निर्देशक शरत कटारिया ने अपनी फिल्‍मों को लेकर एक खुलासा किया है. जैसा कि आपको पता है डॉयरेक्टर शरत कटारिया बॉलीवुड की जानी मानी हस्ती हैं. और उन्होंने लगातार 2 हिट फिल्में दी हैं. इसमें  आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की “दम लगा के हइशा” और वरुण धवन और अनुष्का शर्मा की फिल्म “सुई-धागा” शामिल हैं. उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये दर्शकों को जिंदगी के जुड़े एक बेहतरीन पहलू से रूबरू करवाया.

“दम लगा के हइशा” के संध्या और प्रेमप्रकाश तिवारी से लेकर “सुई-धागा” के ममता और मौजी शर्मा तक उन्होंने अपनी फिल्मों में खूबसूरत और छोटे शहरों व कस्बों में रहने वाले किरदारों को पेश कर अपने दर्शकों का दिल जीता है. इन फिल्मों के किरदारों से हर कोई किसी न किसी रूप में अपना संबंध जोड़ सकता है. अपनी बेहद सराही गई फिल्म “सुई-धागा” की रिलीज के 2 साल पूरे होने पर शरत ने बताया कि वह अपनी फिल्मों में अपनी जड़ों में रचे-बसे दिल को छू लेने वाले पूरी तरह से भारतीय  मध्यम वर्गीय किरदारों का चुनाव कैसे करते हैं. 

शरत ने बताया, “मेरा जन्म दिल्ली में हुआ है'. इन सभी फिल्मों के किरदार सामान्य तौर पर मेरी परवरिश के दौरान हुए निजी अनुभवों के आधार पर ही विकसित हुए हैं. ये सभी किरदार, चाहे वह प्रेम-संध्या हों, मौजी-ममता या फिल्मों में उनके पैरैंट्स, उनके परिवार और उनके पड़ोसी जैसे दूसरे किरदार हों. मैं अपने संपर्क में आए लोगों से प्रभावित होकर अपनी फिल्म के किरदारों का चुनाव करता हूं. मेरी फिल्मों में दिखने वाले ज्यादातर करैक्टर्स ऐसे लोग हैं, जो दिल्ली में पलने-बढ़ने के दौरान कभी न कभी मेरी जिंदगी में आए हैं.'

शरत की फिल्में हमेशा बारीकी से कोई न कोई सामाजिक संदेश देती हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या आप अपनी फिल्मों से समाज में कोई सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं तब इस पर उन्होंने कहा, ‘जब आप लिखते हैं तो आपका इन चीजों की ओर कतई ध्यान नहीं जाता.  सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो आप महसूस कर रहे हों, आप वहीं लिखें. जो आप महसूस करते हैं, उसकी गूंज सामाजिक माहौल में होती है और यह आपकी स्क्रिप्ट में अपने आप झलकती है. फिल्म की स्क्रिप्ट सामाजिक संदेश देने से शुरू नहीं होती. स्क्रिप्ट घटना या किसी ऐसी चीज से ही शुरू होती है, जिससे आप प्रोत्साहित या प्रभावित हों. यहीं से कहानी की शुरुआत होती है.'

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