Shaakuntalam Review: समांथा को छोड़ बाकी सब है बोर, पढ़ें 'शाकुंतलम' का मूवी रिव्यू

Shaakuntalam Review: समांथा रुथ प्रभु और डायरेक्टर गुणाशेखर की फिल्म शाकुंतलम रिलीज हो गई है. फिल्म के बारे में जानने के लिए पढ़ें मूवी रिव्यू.

Shaakuntalam Review: समांथा को छोड़ बाकी सब है बोर, पढ़ें 'शाकुंतलम' का मूवी रिव्यू

जानें कैसी है समांथा की 'शाकुंतलम'

नई दिल्ली:

शाकुंतलम फिल्म रिलीज हो गई है. फिल्म तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और हिंदी में रिलीज हुई है. फिल्म को 2डी और 3डी में रिलीज किया गया है. शाकुंतलम में समांथा रुथ प्रभु लीड रोल में हैं जबकि उनके साथ देव मोहन, मोहन बाबू और अल्लू अराह नजर आ रहे हैं. फिल्म में एक बार फिर साउथ के जाने-माने डायरेक्टर ने माइथोलॉजिकल कैरेक्टर के जरिये भव्यता को पेश करने की कोशिश की है. फिल्म के ट्रेलर की काफी चर्चा रही थी. आइए जानते हैं कैसी हैं समांथा रुथ प्रभु की फिल्म शाकुंतलम...

शाकुंतलम की कहानी

शकुंतला की कहानी दिल को छू लेने वाली रही है. मेनका धरती पर विश्वामित्र की तपस्या भंग करने आती है और शकुंतला को जन्म देती है. वह उसे धरती पर छोड़कर खुद इंद्रलोक को चली जाती है. धरती पर उसका पालन पोषण ऋषि कण्व के आश्रम में होता. एक दिन आश्रम में राजा दुष्यंत आते हैं. शकुंतला को देखते हैं और उन्हें शकुंतला से प्यार हो जाता है. प्यार परवान चढ़ता है. फिर उन्हें अपनी महारानी का वादा करके चले जाते हैं. लेकिन न बुलावा आता है और न ही शकुंतला की याद. फिर शकुंतला दुष्यंत से मिलने पहुंचती है तो भरे दरबार में वह उन्हें पहचानने से इंकार कर देता है. शकुंतला मां बनने वाली है. आखिर दुष्यंत क्यों ऐसा करता है और कैसे शकुंतला अपने खोए प्यार सम्मान को हासिल कर पाती है. इन सवालों के जवाब तो फिल्म में ही मिलेंगे.

देखें शाकुंतलम का रिव्यू

शाकुंतलम का डायरेक्शन

हम में से कई लोगों ने इस कहानी को कई बार सुन रखा होगा. ऐसी कहानी जिसे अधिकतर लोग जानते हैं उसे परदे पर उतारना कोई आसान काम नहीं होता. गुणाशेखर ने इस जिम्मे को उठाया तो सही. लेकिन वह भव्यता और टेक्नोलॉजी का जादू दिखाने के चक्कर में फिल्म को खींच ले गए. खराब डायरेक्शन की वजह से सितारे भी जिस तरह के इमोशन और ड्रामा की जरूरत थी, वह दर्शकों को दे पाने में नाकाम रहते हैं. फिर फिल्म में थ्री डी का जादू दिखाने के लिए जिस तरह से सीन्स को पिरोया गया है, वह भी बेवजह लगते हैं. फिल्म लगभग ढाई घंटे तक खिंच जाती है. एक देखी गई कहानी को इम्प्रेसिव अंदाज में दिखाने का तरीका तो यही है कि उसे क्रिस्पी रखा जाए और कहानी में पैनापन रहे. लेकिन गुणाशेखर इससे चूक जाते हैं. 

शाकुंतलम में एक्टिंग

एक्टिंग की बात करें तो समांथा ने अच्छा काम किया है. वह हर फ्रेम में बहुत ही कमाल की लगती हैं. फिर जिस तरह का माहौल डायरेक्टर ने बनाया है और जिस तरह का स्टाइल शकुंतला को दिया गया है, वह काफी हद तक राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स की नायिका की याद दिलाता है. इस तरह समांथा ने शकुंतला के किरदार को अच्छे से निभाया है. उनके साथ देव मोहन ने अच्छी कोशिश की है. लेकिन उनके कुछ सीन जबरदस्ती के लगते हैं और समांथा उन पर भारी पड़ती हैं. अल्लू अराह और मोहन बाबू भी ठीक हैं.

शाकुंतलम वर्डिक्ट

फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. डायरेक्टर का पूरा फोकस भव्यता को दिखाने पर रहा है, जिस वजह से वह फिल्म को काफी खींच देते हैं. फिर कई सीन्स देखने पर ऐसा लगता है कि इसके थ्री डी वर्जन की कतई जरूरत नहीं थी. टेक्नोलॉजी का स्तर भी तंग करता है. कुल मिलाकर यह कहानी एक्साइटेड नहीं करती है. डायरेक्टर गुणाशेखर टेक्नोलॉजी के चक्कर में कहानी और इमोशंस को सही से दिखाने के मोर्चे पर नाकाम रहे हैं. 

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रेटिंग: 2/5 स्टार
डायरेक्टर: गुणाशेखर
कलाकार: समांथा रुथ प्रभु, अल्लू अरहा, देव मोहन और मोहन बाबू