Sadak 2 Review: संजय दत्त (Sanjay Dutt) और पूजा भट्ट (Pooja Bhatt) की फिल्म 'सड़क (Sadak)' 1991 में रिलीज हुई थी. फिल्म में संजय और पूजा की प्रेम कहानी को दिखाया गया था, जिसे खूब पसंद भी किया गया था. फिल्म का महारानी जैसा कैरेक्टर तो जबरदस्त अंदाज में पॉपुलर हुआ था. फिल्म को महेश भट्ट ने डायरेक्ट किया था. महेश भट्ट लगभग तीन दशक बाद 'सड़क 2 (Sadak 2)' लेकर आए, लेकिन उन्होंने हर मोर्चे पर फिल्म की धज्जियां उड़ाकर रख दी. फिल्म कहानी, एक्टिंग और डायरेक्शन हर मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रही है.
फिल्म की कहानी रवि यानी संजय दत्त (Sanjay Dutt) की है. रवि की पूजा मर चुकी है और वह उसकी याद में दीवाना है. वह आत्महत्या करने की कोशिश करता है. वह पूजा के बिना जी नहीं सकता. एक दिन वह अपनी जान देने की कोशिश कर रहा होता है, तभी आलिया भट्ट (Alia Bhatt) की एंट्री होती है. जिसके परिवार की नजर उसकी जायदाद पर है. लेकिन वह अपनी मां की इच्छा पूरी करने के लिए कैलाश जाना चाहती है. इस तरह सफर शुरू होता है. यह एक ऐसा सफर है जिसमें कोई मजा नहीं है. कहानी पूरी तरह से पटरी से उतरी हुई है. कहीं भी कैरेक्टर इस्टैब्लिश नहीं हो पाते हैं. कहानी समझ से बाहर हो जाती है, और बहुत ही पुराने टाइप के किरदार सामने आते हैं, और वह भी बहुत ही कमजोर अंदाज में है.
संजय दत्त (Sanjay Dutt) को कुछ सीन्स में छोड़ दिया जाए तो अधिकतर एक्टर पूरी फिल्म में एक्सप्रेशनलेस रहते हैं. आलिया भट्ट (Alia Bhatt) और आदित्य रॉय कपूर पूरी फिल्म में लॉस्ट नजर आते हैं. ऐसा लगता ही नहीं है कि यह कोई फिल्म चल रही है. बेहद कमजोर एक्टिंग. मकरंद देशपांडे को बाबा बनाया गया है, और उसको कुछ गेटअप महारानी जैसा ही दिया गया है. इस तरह इस सड़क (Sadak) पर निकलना जोखिम भरा है क्योंकि यह कहीं भी आपको हसीन नजारों से रू-ब-रू नहीं कराती है.
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