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This Article is From Oct 25, 2022

फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने बदल दी थी अमोल पालेकर की जिंदगी, हिंदी सिनेमा में रातों-रात दिलाई अलग पहचान

बासु चटर्जी को हिंदी सिनेमा में कुछ हटकर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता था. उनकी फिल्मों में भारतीय मध्यम वर्ग की दास्तान होती है और कहानी का इतनी सादगी के साथ पेश किया जाता कि वो दिल की गहराइयों तक उतर जाती.

फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने बदल दी थी अमोल पालेकर की जिंदगी, हिंदी सिनेमा में रातों-रात दिलाई अलग पहचान
फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने बदल दी थी अमोल पालेकर की जिंदगी
नई दिल्ली:

बासु चटर्जी को हिंदी सिनेमा में कुछ हटकर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता था. उनकी फिल्मों में भारतीय मध्यम वर्ग की दास्तान होती है और कहानी का इतनी सादगी के साथ पेश किया जाता कि वो दिल की गहराइयों तक उतर जाती. इसी तरह उनकी फिल्मों के पात्र भी हुआ करते थे, एकदम आम जिंदगी से निकले हुए. 1974 में बासु चटर्जी की ऐसी ही एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसका नाम था ‘रजनीगंधा.' फिल्म की कहानी हिंदी की मशहूर लेखिका मन्नू भंडारी की कहानी ‘यही सच था' पर आधारित थी. फिल्म में अमोल पालेकर, विद्या सिन्हा और दिनेश ठाकुर लीड रोल में थे.

दिलचस्प यह कि फिल्म में सिर्फ दो ही गीत थे. एक तो ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे' और दूसरा ‘कई बार यूं ही देखा है'. लेकिन इन दोनों गीतों ने दर्शकों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी. फिल्म का गाना ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे' बहुत ही लोकप्रिय हुआ. इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया था जबकि इसके बाल योगेश ने लिखे थे. फिल्म का म्यूजिक सलिल चौधरी का था. ‘कई बार यूं ही देखा है' गाने के लिए मुकेश को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का राष्ट्रीय पुरस्कार तक मिला था.

सलिल चौधरी ने ‘रजनीगंधा' फिल्म के टाइटल सॉन्ग को लेकर एक बार कहा था, ‘अगर मुझे पता होता कि लता मेरी रचना गाएगी, तो मैं इसे जितना संभव हो उतना जटिल बना देता.' बेशक वह जटिल रचना करते थे, लेकिन लता मंगेशकर ने भी पूरी शिद्दत के साथ उन्हें गाया और दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहीं. लता मंगेशकर ने अपनी गायकी से कभी सलिल चौधरी को निराश नहीं किया. 

मजेदार बात यह है कि बासु दा पहले इस फिल्म को अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और शर्मिला टैगोर के साथ बनाना चाहते थे. फिर उनका मन बदला और वह अपर्णा सेन के पास पहुंचे. लेकिन उनकी फीस बहुत ज्यादा थी. अब बासु दा ने नए सितारों के साथ फिल्म को बनाने का फैसला किया. उन्होंने ‘रजनीगंधा' के लिए अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा को चुना. यह उनकी डेब्यू फिल्म थी. लेकिन इस फिल्म ने विद्या बालन और रजनीगंधा को एक दूसरे का पर्याय बना डाला. शुरू में जहां वितरक इस फिल्म से हाथ खींच रहे थे, वहीं बाद में इस फिल्म ने सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली मनाई. 

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