कुख्यात डाकू के रूप में चर्चित होने के बावजूद अपनी अलग पहचान बनाने वाला शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच सीमाओं पर जंगलों में सक्रिय था. अपने पिता का बदला लेने के लिए उसने हथियार उठा लिए और 'बागी' बन गया. एमएक्स प्लेयर ने 1998 के चित्रकूट, बुंदेलखंड की सच्ची घटनाओं पर आधारित एक सीरीज 'बीहड़ का बागी' रिलीज़ की है. रितम श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित इस सीरीज में दिलीप आर्य ने मुख्य भूमिका निभाई है, जिसे शिव कहा जाता है और जो अपने परिवार के खिलाफ किए गए क्रूर अपराधों का बदला लेने के लिए एक खूंखार डकैत बन जाता है. अब ददुआ की कहानी के साथ इस कथानक में कुछ समानता प्रतीत होती है या नहीं?
सीरीज में कुख्यात ददुआ डकैत के वास्तविक जीवन की कुछ समानताएं देखने को मिलती हैं. शो से एक और समानता सामने आई. इस समानता के कारण रीयल और रील के चरित्र के बारे यह सवाल निकलता है कि ये डकैत हैं या मसीहा. ददुआ को गरीबों की मदद के लिए अच्छे काम करने के लिए जाना जाता है. लोगों ने उसे न सिर्फ इज्जत दी बल्कि उसकी पूजा भी की. हालांकि इसी इलाके में वह आतंक और भय का राज चलाता रहा. न केवल पुलिस बल्कि सरकार और अधिकारियों को भी ददुआ के सामने झुकना पड़ा, जिससे लोगों और मीडिया के सामने यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि वास्तव में वह ‘डाकू' है या फिर ‘भगवान'.
सभी जानते हैं कि ददुआ डकैत के वास्तविक जीवन में उसे उसके सबसे भरोसेमंद व्यक्ति ने धोखा दिया था. सीरीज 'बीहड़ का बागी' इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि शो में शिव कुमार के दिलीप आर्य द्वारा निभाए गए चरित्र को उनके विश्वासपात्र डॉक्टर साब ने धोखा दिया है। क्या आप इसे भी महज एक संयोग ही कहेंगे? इन उदाहरणों के साथ हम निश्चित रूप से सोचते हैं कि वेब सीरीज - 'बीहड़ का बागी' ददुआ डकैत के जीवन को दोबारा जीवंत करती है. आप क्या सोचते हैं?
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