
9 जुलाई यानी हिंदी सिनेमा में गुरु माने जाने वाले निर्माता, निर्देशक और अभिनेता का 100वां जन्मदिन. गुरु दत्त, हिंदी सिनेमा के वो फिल्मकार जिनकी दो फिल्में टाइम्स मैगजीन द्वारा दुनिया की 100 बेहतरीन फिल्मों में चुनी गईं. ये फिल्में थीं प्यासा (1957) और कागज के फूल (1959).
कागज के फूल
उनकी हर फिल्म यूं तो उनके बाद के फिल्मकारों के लिए किसी क्लास से कम नहीं है, पर कागज के फूल एक ऐसी फिल्म है जिसने गुरु दत्त को बनाया भी और बर्बाद भी किया. जब ये फिल्म रिलीज हुई तो बहुत बुरी तरह फ्लॉप हुई. 17 करोड़ की लागत से बनी कागज के फूल (1959) ने गुरु दत्त को कर्ज में तो डुबोया ही, साथ ही उनका आत्मविश्वास भी ले बैठी. ये फिल्म वक्त से पहले की फिल्म थी, जिसे बाद में कल्ट क्लासिक का दर्जा मिला और फिल्मों से जुड़े लोग इसे सिनेमा की क्लास मानने लगे. वी.शांताराम अपने वक्त के बहुत बड़े फिल्मकार थे और जब उन्होंने कागज के फूल दिल्ली में देखी तो घर जाकर अपनी पत्नी से कहा— “ये काम जो गुरु दत्त ने किया है, काश ये मैं कर सकता तो मुझे और खुशी होती.”
कागज के फूल का एक-एक शॉट पूरी कहानी है. इन शॉट्स की लाइटिंग से लेकर कैमरा वर्क तक, सब कुछ फिल्म के विद्यार्थियों के लिए सबक है.
आत्मविश्वास डगमगाया
कागज के फूल की असफलता के बाद, गुरु दत्त के मन में ये भ्रम बैठ गया कि अगर वो अपना नाम फिल्म के निर्देशक के रूप में देंगे तो फिल्में फ्लॉप हो जाएंगी. उसके बाद जो भी फिल्में उन्होंने बतौर निर्माता बनाईं, उनका निर्देशन गुरु दत्त ने नहीं किया.
श्याम बेनेगल ने कहा था— “गुरु दत्त का अपने सिनेमैटोग्राफर वी. के. मूर्ति के साथ ऐसा तालमेल था कि जो गुरु दत्त सोचते थे, वी. के. मूर्ति उसे वैसा ही पर्दे पर उतार देते थे और कुछ ऐसी ही जुगलबंदी गुरु दत्त की उनके राइटर अबरार अल्वी के साथ थी, जिनसे उन्होंने बाद में साहेब बीवी और गुलाम (1962) का निर्देशन करवाया.”
गुरु दत्त ने अपने करिअर में सिर्फ 8 फिल्मों का निर्देशन किया पर उनकी हर फिल्म देखने वाले के ऊपर छाप छोड़ती है फिर चाहे वो कामयाब हो या फ्लॉप.
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