चर्चित अभिनेता और लेखक-निर्देशक आदित्य ओम हिंदी में पिछले साल ग्रामीण प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई दिखाने वाली फिल्म मास्साब के बाद अब ऐसी कुप्रथा पर फिल्म ला रहे हैं, जो आजादी के 75 साल बाद भी देश के कुछ हिस्सों में जारी है. सिर पर मैला ढोने वालों की जिंदगी पर आधारित उनकी फिल्म 'मैला' पूरी हो गई है. इस फिल्म को एनएफडीसी फिल्म बाजार द्वारा चुना और अनुशंसित किया गया है. आदित्य के अनुसार, ‘सिर पर मैला उठा कर ढोने की परंपरा अमानवीय है. भारत में 1993 में कानून बनाकर इस पर प्रतिबंध लगाया गया था. मगर इसके बावजूद कई ग्रामीण और शहरी हिस्सों में यह एक आम है.'
उन्होंने बताया कि मैं लंबे समय से शहर व महानगरों में गटर साफ करने वाले सफाई कर्मियों पर फिल्म बनाना चाहता था. इसी दौरान मुझे ‘बुंदेलखंड अधिकार मंच' के कुछ लोग मिले. उन्होंने बताया कि उनके क्षेत्र में आज भी सिर पर मैला उठाने की परंपरा चल रही है. उनकी सलाह थी कि मैं अपनी फिल्म को शहरी परिवेश की बजाय ग्रामीण परिवेश में बनाऊं. तब मैं उनके साथ चंबल, मैनुपरी व जालौन के इलाकों में गया और वहां मैला उठाने वालों की कॉलोनी तथा घरों में पहुंचा. उन लोगों से मिला, जो दिल दहला देने वाली स्थितियों में काम करते और रहते हैं.
आदित्य ओम कहते हैं कि उन लोगों की हालत बहुत दयनीय है. मैंने उनसे बात की और कहा कि मैं उन पर फिल्म बनाना चाहता हूं. यह फिल्म उनकी मदद के बगैर नहीं बन सकती थी. उन्होंने मुझे अपनी कहानियां बताई. उनकी दयनीय स्थिति को देखकर मैं खुद को यह फिल्म बनाने से रोक नहीं पाया. मैंने वहां पर 22 दिन रहकर फिल्म बनाई. मेरा दावा है कि कोई भी सामान्य इंसान मैला सिर पर ढोने वालों की परिस्थितियों में एक घंटे भी नहीं रह सकता. 2022 में अभिनेता के रूप में भी आदित्य ओम पेशेवर कॉलेजों में आरक्षण पर बनी फिल्म 'कोटा' और जलवायु परिवर्तन पर बनी फिल्म 'बंदी' में नजर आएंगे. बंदी ऐसी फिल्म है, जिसमें आदित्य अकेले अभिनेता हैं. पर्दे पर सिर्फ वही दिखेंगे. आदित्य ओम तेलुगु फिल्मों का लोकप्रिय चेहरा हैं और जल्द ही वह तेलुगु में 'अमरम' और 'दहनम' में दिखाई देंगे.
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