This Article is From Dec 10, 2021

अफ़वाहों का मुक़ाबला सवालों से है

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Ravish Kumar

गोदी मीडिया ने आम जनता को इस तरह से झूठ की चपेट में ले लिया है कि जनता के लिए भी उस झूठ से निकलना संभव नहीं है. गोदी मीडिया के अलावा आई टी सेल और अन्य संगठनों से जुड़े लोग इस तंत्र के नॉन-स्टेट एक्टर हैं जो स्टेट का काम कर रहे हैं. झूठ फैला कर. आपने लोकतंत्र की एक सामान्य परिभाषा सुनी होगी. जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का शासन. अब इसे बदल कर झूठ द्वारा, झूठ के लिए और झूठ का शासन किया जा सकता है. पिछले दो दिनों से मेरे बारे में अलग-अलग नेटवर्क से अफवाह फैलाई गई कि मैंने दिवंगत जनरल बिपिन रावत की पत्नी मधुलिका रावत को लेकर कुछ टिप्पणी की है, जबकि मैंने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है. न तो कहीं लिखा है और न अपने किसी कार्यक्रम में बोला है. 

अभी जनरल साहब के निधन की पुष्टि भी नहीं हुई थी कि हज़ारों ऐसे मैसेज तैयार कर दिए गए और अनगिनत अकाउंट से इसे फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में भेजा जाने लगा. हर दिन ऐसे झूठ को फार्वर्ड करने वाले रिटार्यड अंकिल लोग इसे भी फार्वर्ड करने लगे. यह कोशिश किसी के लिए भी जानलेवा हो सकती है. इस झूठ के ज़रिए उन्मादी भीड़ बनाई जाती है और किसी ग़रीब को उकसा दिया जाता है.अमित चतुर्वेदी नाम के इस अकाउंट से यह झूठ शुरु हुआ. हम दावा नहीं कर सकते कि सबसे पहला ट्वीट अमित चतुर्वेदी ने किया या किसी और ने. अपने बायोडेटा में इंजीनियर और आध्यात्मिक लिखने वाला अमित चतुर्वेदी झूठ की इंजीनियरिंग में माहिर लगता है. अमित ने अपने ट्विटर अकाउंट की प्राइवेसी सेटिंग सीमित कर दी है. अब केवल वही देख सकते हैं जो उसे फॉलो करते हैं. अमित चतुर्वेदी ने 2015 में ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया है और छह साल में सवा लाख के करीब ट्विट किए हैं. उम्मीद है गीता से प्रेरित रहने वाला अमित एक दिन सत्य से भी प्रेरित होगा.

न जाने कितने लोगों ने यह अफवाह फैलाई है. जनार्दन मिश्रा के ट्विटर अकाउंट से भी ऐसा ही ट्वीट किया गया. जनार्दन मिश्रा की प्रोफाइल में प्रधानमंत्री की तस्वीर है. इन्हें 1 लाख 86 हज़ार लोग फॉलो करते हैं. जनार्दन मिश्रा ने भी इतना लंबा चौड़ा अनाप-शनाप मेरे बारे में लिखा है. राष्ट्रवाद और धर्म का नाम लेकर इन जैसे लोग इतना झूठ कैसे बोल लेते हैं. इसकी तरकीब के बारे में प्रधानमंत्री मोदी जनार्दन मिश्रा को DM कर पूछ सकते हैं. मेरे बारे में इसी तरह का पोस्ट जनार्दन मिश्रा नाम के एक और अलग अकाउंट से किया गया है इस वाले जनार्दन मिश्रा के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर है. आशीष कौशिक के ट्विटर अकाउंट से भी मेरे बारे में ट्वीट किया गया है. आशीष कौशिक को 28 हजार लोग फॉलो करते हैं. आशीष सिंह को 789 लोग फॉलो करते हैं.  ट्विटर के अकाउंट में खुद को पत्रकार संपादक बताते हैं. 

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इस तरह के कई पोस्ट में मुझे गालियां दी गई हैं और पढ़ने के बाद लोगों ने गालियां दी हैं. मुझे धमकियां आने लगीं. बीजेपी को चेक करना चाहिए कि ये लोग पार्टी के नाम का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं. जब लोग नड्डा और योगी की तस्वीर लगाकर ट्वीट करने लगे तब लगा कि लोगों के बीच यह बात रखनी चाहिए कि मैंने ऐसी कोई बात नहीं की है जिससे जनरल रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत का अपमान हो.  कहीं नहीं बोला है. कहीं नहीं लिखा है. मेरे खंडन करने के बाद भी ये अफवाह फैलाई गई है और फैलाई जा रही है. गांव गांव में व्हाट्एस एप यूनिवर्सिटी के द्वारा पहुंचाई जा चुकी है. ऐसा कर इन लोगों ने राष्ट्रीय शोक की इस घड़ी में अच्छा काम नहीं किया है लेकिन ये आगे भी ऐसा ही काम करते रहेंगे.

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खब्बू तिवारी अयोध्या के गोसाईपुर से बीजेपी के विधायक चुने गए थे. करीब पांच साल तक विधायक रहने के बाद उनकी विधायकी रद्द हो गई है. खब्बू तिवारी की मार्कशीट जाली पाई गई है. कोर्ट ने पांच साल के लिए जेल भेज दिया है. खब्बू तिवारी अयोध्या के गोसाईगंज से बीजेपी के विधायक थे. अगर आई टी सेल इस खबर को वायरल कराए तो बाकी विधायक भी अपनी डिग्री और मार्कशीट चेक कर लेंगे. अशोक चंदेल और कुलदीप सिंह सेंगर भी बीजेपी के विधायक थे हत्या और बलात्कार के मामले में जेल जाने के बाद उनकी विधायकी रद्द कर दी गई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार खब्बू तिवारी पर जीप लूटने का भी मामला चल रहा है.

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आई टी सेल इन खबरों को वायरल नहीं कराएगा और अगर पत्रकार यह खबर करेगा तो उसे निशाना बनाया जाएगा. शायद इसीलिए अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि अमरीका एक ग्लोबल फंड बनाएगा जिससे मीडिया की आज़ादी की लड़ाई को सपोर्ट किया जाएगा और खोजी पत्रकारिता करने वालों को मदद दी जाएगी जिन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जाता है. 

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दुनिया भर के देशों के साथ-साथ भारत में भी काम करने वाले पत्रकार मुकदमों का सामना कर रहे हैं. पत्रकार सिद्दीक कप्पन की कहानी हम कई बार बता चुके हैं. कितने महीनों से जेल में हैं. त्रिपुरा में पत्रकारों के साथ क्या हुआ आपने देखा, इन पर UAPA लगा दिया गया. अगर सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत न दी होती तो ये पत्रकार जेल में होते. जो भी पत्रकारिता कर रहा है उसे सोशल मीडिया के ज़रिए और प्रशासन के ज़रिए टारगेट किया जा रहा है. चंद रोज़ पहले सिलचर के एक पत्रकार अनिर्बन रॉय चौधरी पर राजद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया गया. आज सरकार से सवाल करने वाला पत्रकार एक गलती कर दे वह जेल में होगा लेकिन सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का फोटो लगाकर कोई कितना भी झूठ फैला ले उनका कुछ नहीं होगा.

सवाल पूछने की पत्रकारिता क्यों ज़रूरी है इसका एक उदाहरण श्रीनिवासन जैन और पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के इंटरव्यू से दे सकता हूं. अयोध्या पर फैसला देने के चार महीने बाद चीफ जस्टिस रिटायर होते हैं और राज्य सभा के सदस्य बन जाते हैं. इसे लेकर कई लोगों ने सवाल भी किया था. श्रीनिवासन ने रंजन गोगोई से पूछा कि राज्य सभा में आपकी उपस्थिति दस प्रतिशत भी नहीं है तो फिर कैसे कह सकते हैं कि आप लोगों की सेवा के लिए राज्य सभा गए हैं. इस सवाल के जवाब में पूर्व चीफ जस्टिस कह रहे हैं कि कोविड के कारण नहीं गए क्योंकि वहां कोविड के दिशानिर्देशों का पालन नहीं होता है. इस पर तो राज्य सभा के सभापति ही जवाब दे सकते हैं लेकिन यह जवाब भी शानदार है कि जब लगता है कि जाना चाहिए तब जाते हैं और जब लगता है कि नहीं जाना चाहिए तब नहीं जाते हैं. यानी रंजन गोगोई को केवल छह दिन लगा कि जाना चाहिए. 

मन करेगा तो जाएंगे और मन नहीं करेगा तो नहीं जाएगा. मन की बात पर ही सारा देश चल रहा है. कुछ दिन पहले खबर आई कि प्रधानमंत्री बीजेपी के सांसदों से नाराज़ हैं कि वे सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेते हैं. हेडलाइन बनी. अब खबर है कि बीजेपी ने अपने सौ सांसदों से कहा है कि संसद में आने के बजाए चुनावी राज्यों में काम करें. उन्हें छुट्टी दे दी गई है और वे सोमवार से नहीं आएंगे. इसी तरह पांच साल में छह लाख भारतीयों को लगा कि चलो भारत की नागरिकता ही छोड़ देते हैं और छोड़ देते हैं. इन छह लाख भारतीयों को क्या आप एक्स देशभक्त ED कहना चाहेंगे या डबल देशभक्त DD कहना चाहेंगे. भारत और अमरीका दोनों की देशभक्ति करने वाले DD यानी डबल देशभक्त. कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के सवाल के जवाब में  9 दिसंबर को राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि पिछले पांच साल में हर साल औसतन पचास हज़ार लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ अमरीका की नागरिकता ली है. भारतीयों की नज़र दूसरे विकल्पों पर भी हैं. इस साल चार हज़ार भारतीयों ने इटली की नागरिकता ली है. कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की नागरिकता के लिए बड़ी संख्या में भारतीय कतार में हैं. 

इनमें से कोई ट्विटर का चीफ या मेयर बनेगा तो हम दिल खोलकर स्वागत करेंगे और याद भी करेंगे, फिलहाल यहां के लोगों की चिन्ता करते हैं. यहां पर हम यह सवाल लाना चाहते हैं कि आई टी सेल की झूठ की फैक्ट्री में कौन लोग काम करते हैं, और धर्म के नाम पर सड़क पर उतर कर कौन लोग भीड़ बन जाते हैं. आप ऐसी हिंसा के किसी भी वीडियो में देखेंगे तो इसमें साधारण घरों के लड़के ज़्यादा दिखते हैं. जिनके हाथ में लाठी होती है, पत्थर होता है ये किसी चूड़ी वाले को मार रहे होते हैं, किसी सब्ज़ी वाले को मार रहे होते हैं, किसी स्कूल में पत्थर चला रहे होते हैं. वहां पुलिस होती है, रोकती भी है लेकिन कई बार पुलिस भी सहायक की भूमिका में नज़र आती है. बहुसंख्यक धर्म के नाम पर ऐसा करने वालों के प्रति सहनशील नज़र आती है. इन्हें पुलिस का ख़ौफ नहीं है.

आर्थिक असमानता पर पर्दा डालने के लिए धर्म के सहारे राजनीतिक समानता कायम की जा रही है ताकि यह बात छिप जाए कि भारत में अमीर ही अमीर हो रहे हैं और ग़रीब पहले से ज़्यादा ग़रीब हो रहे हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के एक वयस्क नागरिक की औसत मासिक कमाई 17000 से कुछ अधिक है. अगर आप आबादी के 50 फीसदी हिस्से की कमाई को देखें तो वह महीने में औसतन 5,523 रुपये ही कमाता है. इस देश में केवल 10 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो महीने का करीब एक लाख कमाते हैं. इस दस फीसदी की कमाई और बाकी के पचास फीसदी की कमाई के बीच 20 गुने का अंतर है. हम आए दिन अखबार और टीवी चैनलों के विज्ञापन के ज़रिए एक ऐसा भारत देखते हैं जो केवल दस प्रतिशत के लोगों का है. बड़े-बड़े मॉल को देखते हुए और महंगे टोल टैक्स देकर एक्सप्रेस वे से गुज़रते हुए उस 50 फीसदी भारत की सोचिए जो महीने का साढ़े पांच हज़ार ही कमाता है. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत का मिडिल क्लास भी गरीब जैसा ही है. बहुत छोटा और बहुत कम कमाने वाला.

हर दल के पास धर्म की राजनीति की कोई न कोई स्कीम है. राजनीति अब सही और ग़लत के हिसाब से नहीं होती, धर्म और धर्म को मानने वालों की संख्या के हिसाब से होती है. कोई मुखर है तो कोई चुप है. सांप्रदायिकता के कई वर्ज़न लांच हो हो रहे हैं. गुरुग्राम में पांच हफ्ते से नमाज़ को लेकर यही चल रहा है. इसी तरह से चर्च और कान्वेंट स्कूलों पर हमले हो रहे हैं. मध्य प्रदेश के विदिशा के सेंट जोसेफ स्कूल के कैंपस में लड़के घुस गए और पत्थर चलाने लगे. उत्तराखंड के रुड़की में दो महीने हो गए चर्च पर हमले को. आज तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है. मेहर पांडे की रिपोर्ट बताती है कि इस हमले से संबंधित FIR में जो नाम हैं, कइयों के संबंध बीजेपी से हैं.

पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा में धर्म के नाम पर असुरक्षा की राजनीति चल रही है. आपकी आर्थिक असुरक्षा की बात कोई नहीं कर रहा है. लोग राजनीति के बारे में धर्म के हिसाब से सोचने लगे हैं. चूड़ी बेचने वाले तस्लीम की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ तो आरोप लगाया गया कि इसने फर्ज़ी नाम और पहचान पत्र देकर पीएम आवास योजना का लाभ लिया है. तब भी उसकी इस तरह से पिटाई नहीं की जा सकती थी. तस्लीम पर एक बच्ची के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा कर पोक्सो लगा दिया. वह 100 से अधिक दिनों तक जेल में रहा और अब ज़मानत मिल गई है न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने जमानत दे दी है. कोर्ट ने कहा है कि उसके खिलाफ आरोप की प्रकृति ऐसी नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसे मामले के निर्णय तक हिरासत में रहना चाहिए. एक ग़रीब चूड़ी वाले को पचास हज़ार के मुचलके पर छोड़ने के आदेश दिए गए हैं. क्या यह राशि उसके लिए ज़्यादा नही है?

धर्म की राजनीति के नए-नए संस्करण अभी और आएंगे, आप उसी में उलझे रहेंगे और केंद्रीय विश्वविद्यालों में छह हज़ार प्रोफेसरों के पद ख़ाली रह जाएंगे. आपके बच्चे बिना टीचर के ही पास होंगे और भारत विश्व गुरु बन जाएगा.

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