- बिहार के कटिहार से पूर्णिया को जोड़ने वाली चार लेन की सड़क के बावजूद रजीगंज पंचायत के टेटगामा गांव में विकास के नाम पर कोई ठोस बदलाव नहीं हुआ है।
- टेटगामा गांव में शिक्षा का अभाव और अंधविश्वास गहराई से जड़ें जमा चुके हैं, जिससे डायन बताकर पांच लोगों की निर्मम हत्या हुई।
- गांव के अधिकांश घर फूस या टीन से बने हैं और लोग दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं, जिससे गरीबी और उपेक्षा की स्थिति बनी हुई है।
बिहार के कटिहार से पूर्णिया को जोड़ने वाली चार लेन की सड़क विकास की तस्वीर पेश करती है. 35 किमी का फासला आप मात्र 25 मिनट में तय कर सकते हैं. लेकिन विडंबना देखिए इस हाईवे से महज ढाई किलोमीटर भीतर रजीगंज पंचायत के टेटगामा गांव की हकीकत आज भी विकास से कोसों दूर है. 6 जुलाई की रात, अंधविश्वास और अशिक्षा से अंधी भीड़ ने ‘डायन' बताकर एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया, उनमें तीन महिलाएं थीं.
जब आप टेटगामा पहुंचते हैं, तो महसूस होता है जैसे विकास योजनाएं गांव की चौहद्दी तक आते-आते दम तोड़ देती हैं. घटनास्थल पर अधिकतर घर बंद पड़े हैं, हर तरफ गरीबी और उपेक्षा की गंध है. यहां शिक्षा का घोर अभाव है और उसका सीधा नतीजा अंधविश्वास के रूप में सामने आता है. दुखद यह है कि आज भी इस आदिवासी बहुल गांव में झाड़-फूंक, ओझा और तंत्र-मंत्र पर विश्वास इलाज से ज्यादा मजबूत है.
घटना को हुए 3 दिन हो गए हैं. अब तक प्रशासनिक अमला और राजनेता संवेदना जताने में ही लगे हैं. पूर्णिया में हवाई सेवा शुरू होने वाली है. लेकिन टेटगामा के बच्चे अब भी मिट्टी की जमीन से आसमान की ओर ताकते रह जाएंगे. उनकी जिंदगी वहीं रहेगी. अभाव, उपेक्षा और गरीबी में जकड़ी हुई.
लक्ष्मी और सरस्वती इस गांव से किनारा कर चुकी हैं!
टेटगामा में लगभग 50 घर हैं, जिनमें 95% फूस या टीन से बने हैं. कई घरों में छत अधूरी है. बाबूलाल उरांव का घर, जहां इस भयावह घटना को अंजाम दिया गया, खुद गरीबी और लाचारी का प्रतीक है. अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनकी रोजी-रोटी भी अनिश्चित है. गांव का यह सामूहिक नरसंहार और भी भयावह हो जाता है जब पता चलता है कि मुख्य आरोपी नकुल उरांव इसी गांव का निवासी है, जिसने भूमि कारोबार और अनैतिक कार्यों से संपत्ति बनाई है और अब राजनीति में उतरने की तैयारी में है.
टेटगामा.. विकास की सूची से बाहर
रजीगंज पंचायत का हिस्सा होने के बावजूद टेटगामा विकास के हर पैमाने पर पिछड़ा हुआ है.
- ‘हर घर नल का जल' योजना यहां केवल एक नारा है—नल लगे हैं, मगर टोंटी तक नहीं लगी
- गांव के बगल से पक्की सड़क गुजरती है, लेकिन गांव की गलियां अब भी कच्ची हैं
- एक स्थानीय ने बताया कि 2019 के बाद किसी को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ नहीं मिला
स्थानीय निवासी खूबलाल उरांव कहते हैं, “यहां ब्लॉक में पैरवी और पैसा लगे तो ही काम होता है. हमारे लिए तो रोज का खाना ही बड़ी बात है.”
जहां शिक्षा नहीं, वहां अंधविश्वास पलता है
गांव में शिक्षा की स्थिति दयनीय है. मुश्किल से एक-दो लोगों ने मैट्रिक तक की पढ़ाई की है. पास के प्राथमिक विद्यालय में टेटगामा टोला से केवल 4 बच्चे जाते हैं, जबकि स्कूली आयु के 50 से अधिक बच्चे गांव में हैं.
जितेंद्र उरांव कहते हैं, “यहां पढ़ाई प्राथमिकता में नहीं है. कुछ लोग बच्चों को पढ़ाने के लिए ससुराल भेजते हैं.” नतीजा साफ है, जहां शिक्षा का अभाव है, वहां अंधविश्वास गहराई से जड़ें जमाता है. इसी अंधविश्वास के चलते पांच निर्दोष जानें जला दी गईं, और गांव के लोग मूकदर्शक बने रहे.
स्वास्थ्य सुविधाएं पास, फिर भी भरोसा ओझा पर
टेटगामा से महज 2.5 किमी की दूरी पर रानीपतरा स्वास्थ्य केंद्र है, जिसे अब हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का दर्जा मिल चुका है. 18 किमी दूर पूर्णिया में मेडिकल कॉलेज भी है. बावजूद इसके गांववाले अब भी झाड़-फूंक और ओझा को प्राथमिकता देते हैं. इस हत्याकांड की जड़ में भी एक बीमारी थी. रामदेव उरांव ने अपने भांजे की बीमारी का कारण बाबूलाल की मां और पत्नी को बताया, जिन्हें ओझा ने 'डायन' करार दिया. नतीजा, पांच जिंदगियां जलकर राख हो गईं.
जिला परिषद सदस्य राजीव सिंह मानते हैं, “जब तक जागरूकता नहीं बढ़ेगी, लोग डॉक्टर की जगह ओझा-गुनी पर ही भरोसा करेंगे.”
अब आंसुओं से सींची जा रही है संवेदनाएं
18 घंटे बाद जब घटना की जानकारी प्रशासन तक पहुंची, तब अफसरों और नेताओं का जमावड़ा शुरू हुआ. प्रमंडलीय आयुक्त राजेश कुमार ने कहा कि सभी दोषियों और लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई होगी. सांसद पप्पू यादव ने कहा कि लोग किस्मत के भरोसे जी रहे हैं, अंधविश्वास मिटे बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता. जनजातीय आयोग के अध्यक्ष शैलेन्द्र गढ़वाल ने सवाल उठाया, उन्होंने कहा कि क्या हम सिर्फ घटना के बाद ही जागेंगे.
बड़ा सवाल: क्या टेटगामा अब भी बदलेगा?
क्या इस भयावह त्रासदी के बाद टेटगामा जैसे गांवों की तकदीर बदलेगी, या फिर यह घटना भी कागजों में दब जाएगी. जब तक कि अगली बार फिर कोई ‘डायन कांड' हमें झकझोरने न आ जाए? जब तक शिक्षा, स्वास्थ्य और जागरूकता को प्राथमिकता नहीं दी जाती, टेटगामा जैसे गांव हमारे विकास की सबसे बड़ी विफलता के गवाह बने रहेंगे.