- पीएम ने घुसपैठ को चुनावी मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस और राजद पर सीमांचल की सुरक्षा खतरे में डालने का आरोप लगाया.
- सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में से 12 में अल्पसंख्यकों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.
- घुसपैठियों की पहचान और निर्वासन पर कोई ठोस पहल नहीं हुई है, जिससे ये मुद्दा राजनीतिक रूप से अधिक प्रभावी बना.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को सीमांचल के पूर्णिया में एयरपोर्ट के उद्घाटन के बाद एक जनसभा को संबोधित किया. इस मंच से उन्होंने 36 हजार करोड़ की विकास योजनाओं की भी सौगात दी. वहीं घुसपैठ की समस्या पर निशाना साधकर उन्होंने इस सभा के जरिए न केवल विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया, बल्कि स्पष्ट शब्दों में संकेत भी दे दिया कि आगामी चुनाव में सीमांचल में घुसपैठ एक अहम मुद्दा होगा. इसको लेकर उन्होंने कांग्रेस और राजद पर भी निशाना साधा. दरअसल, सीमांचल में 24 विधानसभा सीटें हैं और एनडीए की फिर से सत्ता में वापसी में ये इलाका महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
यह है पीएम मोदी की नई गारंटी
चिरपरिचित अंदाज में पीएम मोदी ने राजनीतिक निशाना साधते हुए कहा कि सीमांचल और पूर्वी भारत में घुसपैठियों के कारण संकट की स्थिति है. यहां लोग अपनी बहू-बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि, मोदी की गारंटी है, घुसपैठियों की मनमानी नहीं चलेगी. कान खोलकर सुन लो, जो भी घुसपैठिया है उसे बाहर जाना ही होगा. भारत में भारत का कानून ही चलेगा. जाहिर है मोदी का इशारा वैसे लोगों की तरफ है, जिनकी नागरिकता पर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहे हैं. आसान शब्दों में कहें तो घुसपैठिये का मतलब मुसलमानों से समझा जाता है.
वोटर अधिकार यात्रा को बनाया निशाना
अगस्त महीने में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी, जो सीमांचल के 8 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी थी. इसमें कटिहार जिले का बरारी, कोढ़ा, कटिहार और कदवा, पूर्णिया जिले का पूर्णिया सदर और कसबा तथा अररिया जिले का अररिया और नरपतगंज शामिल था. निश्चित रूप से इस यात्रा का उद्देश्य भी राजनीतिक था. पीएम मोदी ने इस यात्रा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि राजद और कांग्रेस से बिहार के सम्मान और पहचान को खतरा है. दोनों दल के लोग और उनके सहयोगी घुसपैठियों की वकालत कर उन्हें बचाने में लगे हैं. घुसपैठिये को बचाने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं. वे बचाने में चाहे जितना जोड़ लगा लें, हम हटाने पर काम करते रहेंगे.
सीमांचल की 12 सीटों पर है अल्पसंख्यक प्रभावी
सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीट है. इसमें से 12 सीटें ऐसी हैं जिसमें 50 फीसदी से अधिक आबादी अल्पसंख्यकों की है. इन्हीं प्रभावी आबादी वाले विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2020 के चुनाव में एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जिलावार अल्पसंख्यक आबादी की बात करें तो यह अररिया में 43 फीसदी, किशनगंज में सर्वाधिक 68 फीसदी, कटिहार में 45 फ़ीसदी और सबसे कम पूर्णिया में 39 फीसदी बताई जाती है.
मतों के ध्रुवीकरण से भाजपा को मिलता रहा है फायदा
सीमांचल की राजनीति को करीब से समझने वाले लोगों का मानना है कि पीएम मोदी ने घुसपैठ के मुद्दे को सामने लाकर भविष्य की चुनावी राजनीति का संकेत दे दिया है. भाजपा जानती है कि ऐसे मुद्दे से मतों का ध्रुवीकरण होगा, जिसका उसे लाभ मिल सकता है. वर्ष 2015 में सीमांचल में भाजपा को अपने बूते 5 सीट मिली थी, जबकि वर्ष 2020 में जेडीयू के साथ रहकर उसे 8 सीटें हासिल हुई. 2020 में किशनगंज में एनडीए को कोई भी सीट इसलिए नहीं मिली क्योंकि यहां अल्पसंख्यकों की आबादी 68 फीसदी है. जहां ध्रुवीकरण फैक्टर प्रभावी साबित नहीं होता है और अन्य जिलों में जहां अल्पसंख्यकों की आबादी 50 फीसदी से कम है, वहां आसानी से भाजपा या एनडीए के पक्ष में ध्रुवीकरण हो जाता है.
सीमांचल में 7.62 लाख वोटरों की हुई है छटनी
सीमांचल में गहन वोटर पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा महत्वपूर्ण बना हुआ है. यहां 7 लाख 62 हजार मतदाताओं की छटनी हुई है. इसमें सर्वाधिक पूर्णिया में 2.73 लाख, कटिहार में 2.44 लाख, अररिया में 1.58 लाख और किशनगंज में 1.45 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर हुए हैं. ये अंतिम आंकड़ा नहीं है और आपत्ति की समीक्षा के बाद मतदाताओं की संख्या घटने के बजाय बढ़ने की ही संभावना है. खासकर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार कार्ड को वैध दस्तावेज घोषित किए जाने के बाद यह संख्या बढ़ सकती है. दिलचस्प आंकड़ा यह है कि, पूर्णिया में जहां अल्पसंख्यकों की आबादी सबसे कम है, वहां सबसे अधिक वोटर मतदाता-सूची से बाहर हुए हैं और किशनगंज में जहां सबसे अधिक आबादी अल्पसंख्यकों की है, वहां सबसे कम मतदाता छटनी-सूची में शामिल हैं.
आसान नहीं है घुसपैठिये की पहचान
क्या सचमुच घुसपैठिये की पहचान इतनी आसान है? अब तक एसआईआर में कितने घुसपैठिये चिन्हित हुए हैं, इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. दरअसल, जिन अल्पसंख्यकों को घुसपैठिया बताया जाता है वे खुद की जड़ को पश्चिम बंगाल से जोड़ते हैं. आधार कार्ड में फर्जीवाड़ा कोई मुश्किल काम नहीं है और इसी तरह आवास और जाति प्रमाण पत्र भी बनाना मुश्किल नहीं होता है. ऐसे में घुसपैठिये की पहचान आसान नहीं है. केंद्र और राज्य में सरकार किसी की भी हो, सच्चाई यही है कि घुसपैठिये की पहचान और उसके निर्वासन की दिशा में कोई ठोस पहल अब तक देखने को नहीं मिली है. ऐसे में अगर यह कहा जाये कि घुसपैठ का मुद्दा महज राजनीतिक और मतों के ध्रुवीकरण का माध्यम है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
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