25 सालों में सिर्फ एक विधायक, 12 सीटों पर दावा... JMM अलग हुआ तो महागठबंधन पर क्या असर?

इस बार बिहार में NDA और INDIA गठबंधन के बीच कड़ी लड़ाई है, JMM का महत्व बढ़ गया है. JMM पहले से ही INDIA गठबंधन का हिस्सा है. अगर RJD-JDU-Congress के साथ यह तालमेल गहराता है, तो JMM सीमावर्ती जिलों में विपक्ष के लिए एक अहम भूमिका निभा सकती है.

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झारखंड के सीएम हेमंत सोरन और राजद नेता तेजस्वी यादव.
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  • JMM झारखंड के साथ-साथ बिहार के आदिवासी बाहुल्य सीमावर्ती जिलों में भी अपनी राजनीतिक पहचान रखता है.
  • हालांकि 2000 से 2020 तक हुए बिहार में हुए चुनाव में जेएमएम को बिहार में मात्र एक सीट पर जीत मिली है.
  • इस बार JMM बिहार में महागठबंधन से 12 सीटों पर दावा कर रही है. अब देखना है इस बार जेएमएम क्या कर पाती है?
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पटना:

JMM Performance in Bihar Elections: बिहार, झारखंड दो पड़ोसी राज्य, जो पहले साथ थे. 2000 में अलग होने के बाद भी दोनों राज्यों के बीच बेटी-रोटी का संबंध बना है. साझी सभ्यता, संस्कृति के साथ-साथ दोनों राज्यों की सियासत में भी कई ऐसे तत्व हैं, जो दोनों को जोड़ते हैं. बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी यह झारखंड की धमक देखने को मिल सकती है. क्योंकि बिहार चुनाव में झारखंड की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा भी चुनाव लड़ने वाली है. पार्टी महागठबंधन के साथ लड़ेगी या अकेले, इस पर अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन हेमंत का चुनाव लड़ना तय है. इस रिपोर्ट में जानेंगे बिहार के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रदर्शन कैसा रहा है. इस बार पार्टी क्या कुछ कर सकती है?

झारखंड से सटे जिलों में JMM का अच्छा जनाधार

यूं तो झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) झारखंड की मुख्यधारा की पार्टी है, लेकिन इसके ऐतिहासिक और जातीय आधार बिहार के दक्षिणी जिलों विशेषकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में गहराई से जुड़े हैं. बिहार विभाजन से पहले यह पार्टी बिहार के सीमावर्ती जिलों जैसे जमुई, बांका, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और किशनगंज तक प्रभाव रखती थी. आज भी इन क्षेत्रों में झारखंड से जुड़ी सामाजिक पहचान और भाषा-संस्कृति के कारण JMM का असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2005 में JMM का प्रदर्शन

2005 का बिहार विधानसभा चुनाव JMM के लिए चुनौती और अवसर दोनों था. तब झारखंड के निर्माण के पांच साल हुए थे और पार्टी झारखंडी पहचान के नाम पर सीमावर्ती जिलों में अपनी जड़ें बनाए रखने की कोशिश कर रही थी. JMM ने लगभग 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे.


इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार संथाल परगना से सटे बिहार के सीमावर्ती इलाकों से थे, खासकर बांका, जमुई, भागलपुर और कटिहार क्षेत्र. पार्टी को कोई सीट नहीं मिली, पर उसे करीब 1.2% वोट शेयर मिला. यह JMM के लिए बिहार में अस्तित्व बनाए रखने की कवायद थी, जो असफल तो रही, पर उसने संकेत दिया कि झारखंडी पहचान सीमाओं से बंधी नहीं है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2010: JMM के एक उम्मीदवार को मिली जीत

2010 तक झारखंड में JMM की सरकार में हिस्सेदारी और हेमंत सोरेन का उभार शुरू हो चुका था. बिहार में पार्टी ने सीमित सीटों पर चुनाव लड़ा. लगभग 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारे गए. पार्टी का फोकस बांका-जमुई बेल्ट पर था. 2010 के चुनाव में जमुई के चकाई से सुमित सिंह ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर जीत हासिल की थी.

हालांकि आज के दिन में सुमित सिंह JMM के साथ है. 2010 में सुमित का चकाई का चुनाव जीतना, जेएमएम की उपलब्धि से ज्यादा सुमित की कामयाबी थी. क्योंकि उस क्षेत्र में सुमित और उनके परिवार का अपना जनाधार है. लेकिन आधिकारिक तौर पर JMM को जीत लिखी जाएगी.

बिहार विधानसभा चुनाव 2015: 32 सीटों पर लड़ी JMM, वोट मिले 0.27 प्रतिशत

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में JMM 32 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार पार्टी के उम्मीदवारों की सभी सीटों पर जमानत जब्त हुई थी. 2015 का चुनाव JMM के लिए सबसे महत्वपूर्ण था क्योंकि इस बार उसने महागठबंधन (RJD-JDU-Congress) को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया.

2015 के चुनाव में कुछ जगहों पर RJD उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया. हेमंत सोरेन ने खुद बांका और जमुई में रैलियाँ कीं, जहां आदिवासी और पिछड़े वर्गों की मिश्रित आबादी है. पार्टी का वोट शेयर भले ही 1% के नीचे रहा, लेकिन राजनीतिक संदेश स्पष्ट था, JMM झारखंड के साथ-साथ बिहार के सीमावर्ती जिलों में भी राजनीतिक पहचान बनाए रखना चाहती है.

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020: हेमंत की कमान में कुछ सुधरे हालात

सबसे जायदा महत्वपूर्ण रहा 2020 का चुनाव रहा, जब हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बन चुके थे. JMM ने इस बार “झारखंड मॉडल ऑफ गवर्नेंस”, यानी सामाजिक न्याय, आदिवासी पहचान और गरीबों की योजनाओं, के सहारे बिहार के झारखंड-सीमावर्ती जिलों में प्रचार किया.

JMM ने लगभग 12 सीटों पर प्रत्याशी उतारे. पार्टी को करीब 1.4% वोट शेयर मिला, जो 2010 और 2015 की तुलना में थोड़ा सुधार था. हालाँकि JMM कोई सीट नहीं जीत सकी, लेकिन उसने यह संदेश दिया कि अगर विपक्षी गठबंधन में उसे जगह दी जाए, तो वह सीमावर्ती जिलों में प्रभावशाली वोट ट्रांसफर करा सकती है.

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इस बार जेएमएम 12 सीटों पर कर रही दावा

जेएमएम बिहार के सीमावर्ती जिलों में अपना संगठनात्मक ढांचा मजबूत मानता है और महागठबंधन से लगभग 12 विधानसभा सीटों की मांग करने की तैयारी में है. इनमें तारापुर, कटोरिया, मनिहारी, झाझा, बांका, ठाकुरगंज, रूपौली, रामपुर, बनमनखी, जमालपुर, पीरपैंती और चकाई जैसी सीटें शामिल हैं.

जेएमएम का कहना है कि झारखंड में गठबंधन मॉडल से बेहतर परिणाम मिले हैं, इसलिए बिहार में भी समान प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. पार्टी महासचिव विनोद पांडेय ने कहा, ''सीमावर्ती जिलों में हमारा मजबूत जनाधार है, इसलिए हम गठबंधन में सम्मानजनक हिस्सेदारी की उम्मीद कर रहे हैं.''

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इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा का क्या होगा?

इस बार बिहार में NDA और INDIA गठबंधन के बीच कड़ी लड़ाई है, JMM का महत्व बढ़ गया है. JMM पहले से ही INDIA गठबंधन का हिस्सा है. अगर RJD-JDU-Congress के साथ यह तालमेल गहराता है, तो JMM सीमावर्ती जिलों में विपक्ष के लिए एक अहम भूमिका निभा सकती है. JMM के वोट भले ही कम हों, पर उसके समर्थक आदिवासी, मुसहर, उरांव और महादलित वर्गों में फैले हैं, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर JMM को बिहार में 4-5 सीटों पर INDIA गठबंधन में हिस्सेदारी दी जाए, तो वह सीमावर्ती जिलों में NDA के वोट बैंक को “नॉन-यादव, नॉन-कुर्मी” इलाकों में नुकसान पहुँचा सकती है. JMM की उपस्थिति से बिहार की राजनीति में दो समुदाय खासकर आदिवासी और महादलित मतदाताओं के बीच प्रभाव पड़ता है.

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JMM के चुनाव चिह्न से भी हो सकता है फायदा

झारखंड मुक्ति मोर्चा के बिहार में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का एक और फायदा हो सकता है. जेएमएम का चुनाव चिह्न तीर-धनुष है. जबकि जदयू का चुनाव चिह्न तीर है. JMM के कोर वोटर आदिवासी इलाकों में कम पढ़े-लिखे और कम जागरूक लोग तीर देखकर JMM को भी वोट सकते हैं. हालांकि इस बार सीट शेयरिंग में जेएमएम को क्या मिलता है? यह देखने वाली बात होगी.

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