शख्स ने किया 200 से ज्यादा बार कोविड वैक्सीन लगवाने का दावा, जानकर वैज्ञानिकों के उड़े होश, बोले- अब क्या होगा?

अब साइंटिस्ट हैरानी से इस बात की स्टडी कर रहे हैं कि ऐसे शख्स के इम्यूनिटी सिस्टम में क्या-क्या बदलाव हुआ है. रिसर्चर्स भी उस शख्स के रिपोर्ट कार्ड की बारीकी जांच कर रहे हैं.

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दुनिया के कई देशों के एक्सपर्ट डॉक्टर और साइंटिस्ट काफी हैरान हैं. वजह जानकर आपका भी दिमाग हिल जाएगा. दरअसल, कोविड-19 के वैक्सीन (COVID-19 vaccines) को लेकर हम और आप जब दो डोज लेने या बूस्टर शॉट लगवाने में डर या झिझक रहे थे, तब जर्मनी में 62 साल के एक शख्स ने कोविड वैक्सीन का 200 से ज्यादा बार शॉट लेने का दावा किया है. अब साइंटिस्ट हैरानी से इस बात की स्टडी कर रहे हैं कि ऐसे शख्स के इम्यूनिटी सिस्टम में क्या-क्या बदलाव हुआ है. रिसर्चर्स भी उस शख्स के रिपोर्ट कार्ड की बारीकी जांच कर रहे हैं.

मीडिया रिपोर्ट के बाद डॉक्टर और साइंटिस्ट ने दिखाई दिलचस्पी

लैंसेट इनफेक्शियस डिजीज जर्नल में पब्लिश एक एनालिसिस के मुताबिक, साइंटिस्ट इस अनोखे शख्स की इम्यूनिटी पर बार-बार वैक्सीनेशन के इफेक्ट को देख और परख रहे हैं. कथित तौर पर 217 डोज लेने के बाद भी कोरोना वैक्सीन उस शख्स में एंटीबॉडी पैदा कर रहे हैं. साथ ही उसके हेल्थ की सिक्योरिटी बढ़ा रहे हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के बाद फ्रेडरिक-अलेक्जेंडर-यूनिवर्सिटैट एर्लांगेन-नर्नबर्ग और म्यूनिख और वियना के अस्पतालों के डॉक्टरों को इस मामले में दिलचस्पी पैदा हो गई. उन्होंने उस शख्स से संपर्क किया और उसे टेस्ट के लिए बुलाया. कथित तौर पर वह शख्स अपनी मर्जी से टेस्ट के लिए राजी हो गया.

इस तरह के हाइपरवैक्सीनेशन का क्या रिजल्ट होगा

इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी-क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी, इम्यूनोलॉजी और हाइजीन के डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ. किलियन शॉबर ने एक लिखित बयान में बताया, "हमें अखबार के आर्टिकल के जरिए इस मामले का पता चला. फिर हमने उससे संपर्क किया और एर्लांगेन में कई टेस्ट करवाने के लिए बुलाया. उस शख्स ने ऐसा करने में बहुत दिलचस्पी दिखाई." डॉक्टर शॉबर की टीम जानना चाहती है कि इस तरह के हाइपर वैक्सीनेशन का क्या रिजल्ट हो सकता है. यह इम्यूनिटी रिस्पॉन्स को कैसे बदलता है?

वैक्सीनेशन से क्या होता है

एक नियम के रूप में वैक्सीनेशन में आम तौर पर रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया या वायरस के कुछ हिस्से या ऐसा ढांचा होता है, जिसे इंसान के सेल्स खुद बना सकें. इन एंटीजन की वजह से शरीर की इम्यूनिटी सिस्टम असली बीमारी पैदा करने वाले जीव को पहचानना सीख लेता है. फिर ये एंटीबॉडी बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया या वायरस से अधिक तेजी और मजबूती से लड़ सकता है.

डॉ. शॉबर बताते हैं, "एचआईवी या हेपेटाइटिस बी जैसे पुराने संक्रमण में ऐसा हो सकता है. ज्यादा वैक्सीनेशन से वह दोबारा हो सकता है." हालिया मामले में साइंटिस्ट इस बात की ही स्टडी कर रहे हैं कि क्या होता है जब एंटीबॉडी बार-बार एक ही तरह के एंटीजन के संपर्क में आता है?

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