आमलोगों के लिए अच्छी किताब है बिश्वजीत झा की "मॉडर्न बुद्धा", भूटान पर आधारित है इसकी कहानी

बिश्वजीत झा अपने पाठकों को अंत तक बांधे रखने में सफल रहे हैं...सिद्धार्थ का व्यक्तिगत प्रवास, सुष्मिता, मिस्टर एंड मिसेज चटर्जी, सुभाष, हिमांशु, अमित, सौरव, सुशांत, गणेश,  के साथ कहानी बहुत ही दिलचस्प बनती जाती है.

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"मॉडर्न बुद्धा: एन इनक्रेडिबल जर्नी ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन,"  बिश्वजीत का नया उपन्यास है और यह आधुनिक प्रतिज्ञान के साथ भूटान के इलाकों की हसीं छवि और बुद्ध की शांत उदात्तता को दर्शाता है. यह कथा जीवन की कठिनाइयों के माध्यम से आधुनिक मनुष्य की ज़िंदगी के उतार चढ़ाव को मानवीय बारीकियों के साथ दर्शाता है. बिश्वजीत ने इस उपन्यास में ज़िंदगी की भव्यता को समेटते हुए मानवीय सीमिताओं को बारीकी से प्रस्तुत किया है.  यह उपन्यास ज़िंदगी के खट्टे मीठे पलों का स्वाद लेते हुए ऊपर उठने और सिद्धार्थ के अंतिम निर्वाण तक पहुँचने की लालसा है.

बिश्वजीत ने भारत की प्रचलित शिक्षा प्रणाली, एक मिडिल क्लास परिवार के बच्चे से माता-पिता की अभी भी मौजूदा मध्यवर्गीय उम्मीदें, बच्चे पर अपने सपनों से समझौता करने का दबाव, बच्चे का अपनी अधूरी इच्छाओं का बोझ उठाना और जीने की अव्यक्त इच्छा को, बिश्वजीत ने बखूबी  से अपने उपन्यास में चित्रित किया है. देखा जाए तो एक लेखक व फिल्म निर्माता सिर्फ भव्य कहानियों को प्रस्तुत करते हैं, लेकिन बिश्वजीत ने एक आम परिवार की कशमकश को दर्शा कर सभी का दिल जीत लिया है.

यह कहानी है सिद्धार्थ की जो एक प्रतिभाशाली फुटबॉलर तो बन सकता था पर उसने अपने सपने और जुनून को भूलकर यह विश्वास करना शुरू कर दिया था कि उसके माता-पिता ने जो सोचा था वह उसके लिए सबसे अच्छा था.

खुशी उन निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में थी, उन सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित परीक्षाओं को क्रैक करने में,  मोटी तनख्वाह  का चेक प्राप्त करने में है.. और कई मिडिल क्लास बच्चे इस मोहभंग में फिसल जाते हैं! बिश्वजीत ने अपने उपन्यास से पूरी पीढ़ी के लिए आंख खोलने वाली सच्चाई पेश की है । यह हमें कई दार्शनिक प्रश्न पूछता है जैसे "खुशी क्या है?" और "जीवन का उद्देश्य क्या है?"

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बिश्वजीत ने प्यार, परिवार, अकेलापन, अपने असली मकसद की तलाश में निकले इंसान की तलाश को इस उपन्यास में आज के युवा की भावनाओं को खूबसूरत ढंग से चित्रित किया है. जीवन कोई मंजिल नहीं है, उपलब्धियों या किसी विशेष परीक्षा में प्रदर्शन का योग नहीं है; जीवन एक यात्रा है, जीवन मूल्यों के बारे में है, स्वीकृति के बारे में, असफलताओं के बारे में, अनुभवों के बारे में, दोस्ती के बारे में, मुठभेड़ों के बारे में, हार मानने, आत्मसमर्पण करने, सीखने, गहराई से प्यार करने और सबसे बढ़कर हर दिन, हर पल पूरी तरह से अनुभव करने और जीने के बारे में है.

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कहानी के पात्र धीरे-धीरे विकसित होते हैं, क्योंकि वे अपने जीवन के विभिन्न चरणों से गुजरते हैं; वे जाने-पहचाने लगते हैं, जैसे कि हम उन्हें जानते हों, और हम अंत में उन्हें बहुत याद करते हैं. यह भी एक सफल लेखक की निशानी है ।उनका नुकसान हमारा नुकसान बन जाता है, इस प्रकार पाठक की भागीदारी तेज हो जाती है.

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हर किरदार की अपनी राय है- पिता, मां, सुष्मिता, कोई भी गलत नहीं है. यदि सिद्धार्थ यह कहानी है सिद्धार्थ की. सिद्धार्थ अपने क्रोध पर थोड़ा अधिक नियंत्रण रखते, अपने मन को स्थिर रखते, और अपने विचारों को और मजबूत रखते, तो उनका दृष्टिकोण अलग हो सकता था । उनकी लव लाइफ, परिवार और दोस्तों का सर्कल सब अलग हो सकता था, जीवन की शैली अलग हो सकती थी.

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लेकिन नियति को कौन टाल सकता है! पन्ने पलटते हुए हम आश्चर्य करते रहते हैं “क्या हम वास्तव में भाग्य के हाथों की कठपुतली हैं? क्या हम अपनी दुखद खामियों को बदल सकते हैं? लेकिन अंत में सीखने की उनकी इच्छा, भूटान की उनकी यात्रा, उनके भीतर की पुकार का जवाब और उनकी अंतिम अज्ञेयता उन्हें एक दुखद नायक के स्तर तक उठाती है, और यही उनकी रेचन और मुक्ति है.

बिश्वजीत झा अपने पाठकों को अंत तक बांधे रखने में सफल रहे हैं...सिद्धार्थ का व्यक्तिगत प्रवास, सुष्मिता, मिस्टर एंड मिसेज चटर्जी, सुभाष, हिमांशु, अमित, सौरव, सुशांत, गणेश,  के साथ कहानी बहुत ही दिलचस्प बनती जाती है. लेंडुप दोर्जी, पेमा... और सभी ने कहानी को सजीव बना दिया है क्योंकि कहानी हिमालय की तलहटी में बसे छोटे से शहर से दिल्ली की ओर असम की खूबसूरत घाटियों से होते हुए खूबसूरत सुरम्य भूटान में स्थानांतरित होती रहती है.

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