'जाको राखे साइयां, मार सके ना कोई' यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी. इसका मतलब होता है 'जिसके सिर पर खुद ईश्वर का हाथ हो, उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता'. ऐसा ही हुआ इस दो साल की मासूम बच्ची के साथ. दरअसल, मामला यह है कि बीती 28 नवंबर को 2 साल की बच्ची एक ऐसे घने जंगल में गुम हो गई, जहां सिर्फ टाइगर का ही बसेरा है. यह मामला भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक के कोडागू जिले के बी. शेट्टीगरी गांव स्थित कॉन्गाना का है. जब इस गांव से दो साल की बच्ची लापता हुई, तो पूरे इलाके में सनसनी मच गई. वन विभाग के अधिकारियों के एक दिन के सर्च अभियान के बाद बच्ची को सुरक्षित लाकर उसके माता-पिता को सौंप दिया गया.
रातभर चला सर्च अभियान
खबरों के मुताबिक, यह बच्ची मधुमक्खी पालन करने वाली दंपती (सुनील-नागिनी) की है. एक दिन वे अपनी बेटी सुनन्या को एस्टेट लाइन हाउस के पास बाकी बच्चों के साथ खेलने के लिए छोड़कर काम पर चले गए थे. जब सुनन्या के पेरेंट्स शाम को घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनकी बेटी लापता हो गई है. इसके बाद सुनन्या के पेरेंट्स और एस्टेट वर्कर्स बच्ची की तलाश में जुट गए. जब बच्ची नहीं मिली तो स्थानीय गोनिकोप्पल पुलिस स्टेशन में बच्ची की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई. मामले में पुलिस की एंट्री होते ही वन विभाग को इसकी जानकारी दी गई. वन-विभाग ने देरी ना करते हुए बच्ची को ढूंढने का अभियान शुरू किया. सर्च ऑपरेशन के दौरान अधिकारियों को टाइगर के पैरों के निशान मिले और साथ ही एक जंगली जानवर का शव भी. यह देख वन अधिकारियों का हलक सूख गया, लेकिन गांव के तकरीबन 100 लोगों के साथ 30 वन-अधिकारी जंगल में बच्ची को ढूंढते रहे.
कुत्तों की मदद से मिली बच्ची
जब 28 नवंबर की शाम 7 बजे से रात 9.30 बजे तक चले अभियान में बच्ची नहीं मिली तो अगली सुबह ग्राम पंचायत के अध्यक्ष कोल्लिरा बोपन्ना और उनके साथी अनिल कलप्पा भी इस अभियान में शामिल हुए. अनिल ने अपने चार पालतू कुत्ते (ओरियो, लाला, ड्यूक और चुक्की) को इस अभियान में शामिल किया. इन सभी कुत्तों ने जंगल के चप्पे-चप्पे को सूंघ डाला. वहीं एक कुत्ता, ओरियो जब एक चोटी पर पहुंचा तो जोर-जोर से भौंकने लगा. ओरियो की आवाज सुन सभी वहां दौड़े और वहां देखा कि सुनन्या एक कॉफी के पौधे के पास सुरक्षित और सहमी हुई बैठी थी. सुनन्या को देखने के बाद सर्च अभियान में मौजूद सभी लोगों की सांस में सांस आई और बच्ची को लेकर उसके मां-बा को सौंप दिया. इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस चौकी के प्रभारी प्रदीप कुमार ने गांववालों को सलाह दी कि वह अपने बच्चों को जंगल किनारे वाले इलाके में खेलने के लिए न छोड़ें.
(अस्वीकरण: इस खबर में दी गई जानकारी सोशल मीडिया पोस्ट पर आधारित है. एनडीटीवी इस खबर की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं करता है.)
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