Israel Hamas War: फिलिस्तीन मुद्दे पर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में वोटिंग होने जा रही है. यह वोटिंग परिषद के अस्थायी सदस्य देश अल्जीरिया के लाए प्रस्ताव पर की जा रही है. इसमें फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने की मांग की गई है. न्यूयॉर्क के समय के हिसाब से वोटिंग शुक्रवार को दोपहर तीन बजे तय की गई है. अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बन जाएगा. मतलब फिलिस्तीन को राष्ट्र की मान्यता मिल जाएगी.
हालांकि यह सब इतना आसानी से नहीं होगा. वोटिंग के बाद यह साफ हो जाएगा कि परिषद के मौजूदा सदस्य देशों में से कौन फिलिस्तीन के साथ हैं और कौन नहीं. खास तौर पर इजरायल हमास जंग में गाजा की जिस तरह से तबाही हुई है और जो मानवीय त्रासदी की स्थिति वहां पैदा हुई है, उसके बाद निगाहें अमेरिका जैसे देश पर हैं, जो दो राष्ट्र समाधान की बात करता रहा है और इजरायल पर इसके लिए दबाब भी डालता रहा है.
193 सदस्य देशों वाले संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन का दर्जा अभी गैर सदस्य प्रेक्षक, यानी कि ऑब्जर्वर कंट्री का है. यह दर्जा उसे 2012 में मिला था. फिलिस्तीन स्वतंत्र देश बनना चाहता है. वह अलग-अलग मंचों पर अपनी यह बात उठाता रहा है. सुरक्षा परिषद में लाया गया प्रस्ताव उन्हीं कोशिशों का एक हिस्सा है. 15 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव को पास होने के लिए कम से कम नौ वोट चाहिए. साथ ही यह भी जरूरी है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस या चीन, जो कि स्थाई सदस्य हैं और जिनके पास वीटो पॉवर है, में से कोई भी वीटो ना करे, तभी यह प्रस्ताव पास होगा.
यूएन डिप्लोमेट्स के हवाले से यह जानकारी मिली है कि सुरक्षा परिषद के मौजूदा सदस्यों में से 13 सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में वोट कर सकते हैं. यानी कि इसके पास हो जाने की पूरी संभावना है. हालांकि जानकारी यह भी है कि इस प्रस्ताव के विरोध में अमेरिका वीटो करेगा. सवाल है कि अमेरिका वीटो क्यों करेगा, जब वह खुद भी इजरायल-फिलिस्तीन विवाद में दो राष्ट्र समाधान का हिमायती है. इजरायल के साथ-साथ स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र हो, अमेरिका इसकी वकालत करता रहा है. लेकिन उसका यह भी मानना है कि एक आजाद देश फिलिस्तीन की स्थापना इस विवाद में शामिल पक्षों के बीच बातचीत के जरिए हो. इजरायल और फिलिस्तीन, दोनों पक्षों के बीच बातचीत के जरिए समाधान हो न कि संयुक्त राष्ट्र के जरिए.
यूएन में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पारित करने से फिलिस्तीन-इजरायल समस्या हल नहीं होगी. दूसरी और यूएन में इजरायल के राजदूत गिलार्ड इडान का कहना है कि फिलिस्तीन राष्ट्र के प्रस्ताव को जो भी इस समय समर्थन देगा, वह न सिर्फ आतंकवाद के लिए (सात अक्टूबर के हमले के संदर्भ में) उसे इनाम दे रहा होगा बल्कि बातचीत की दिशा में जो तय सिद्धांत हैं, वह उसके खिलाफ भी होगा.
अमेरिका वीटो नहीं करता है तो वह इजरायल के खिलाफ दिखेगा और अगर वीटो करता है तो फिलिस्तीन समर्थक देशों में उसकी आलोचना होगी. आलोचक कहेंगे कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर अमेरिका का चेहरा बेनकाब हो गया है. वे यह भी कहेंगे कि इजरायल के साथ ही अमेरिका ने फिलिस्तीन को धोखा दे दिया है.
मिली जानकारी के मुताबिक अमेरिका ने कोशिश यह भी की है कि वीटो की नौबत ना आए. इसके लिए अमेरिका ने फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को वोटिंग स्थगित कराने के लिए राजी करने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने. अब्बास इजरायल-फिलिस्तन मामलों में अमेरिका के रुख से पहले से ही निराश हैं. फिलिस्तीनी सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि अब्बास के साथ बात न बनती देखकर अमेरिका ने सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्य देशों को समझाने की कोशिश की है कि वे प्रस्ताव के खिलाफ वोट दें या प्रस्ताव के समय गैरहाजिर रहें. लेकिन अब वोटिंग के समय क्या होता है, यह शुक्रवार को दोपहर तीन बजे पता चलेगा. उस समय भारत में शुक्रवार-शनिवार की मध्य रात्रि होगी.