अब तक का सबसे गर्म दशक रहा 2014-2023, UN चीफ बोले- खत्म होने की कगार पर धरती

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पृथ्वी की सतह के पास का औसत तापमान पिछले साल पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.45 डिग्री सेल्सियस ऊपर था. अब ये खतरनाक रूप से महत्वपूर्ण 1.5 डिग्री के करीब है.

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नई दिल्ली/जिनेवा:

साल 2023 में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. संयुक्त राष्ट्र (United Nations)के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) ने मंगलवार को अपनी एनुअल क्लाइमेट स्टेटस रिपोर्ट (Annual State of the Climate Report) जारी की. इसमें शुरुआती आंकड़ों की पुष्टि करते हुए संकेत दिया गया कि 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा. जबकि 2014 से 2023 का समय सबसे गर्म दशक के रूप में रिकॉर्ड किया गया है. इन 10 सालों में हीटवेव ने महासागरों को प्रभावित किया. साथ ही ग्लेशियरों (Glaciers) को रिकॉर्ड बर्फ का नुकसान हुआ.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आंकड़े 'सबसे गर्म 10 साल की अवधि' के आखिर में आए हैं. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि इस रिपोर्ट में पता चलता है कि हमारी धरती खत्म होने की कगार पर है. 

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एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "हमारी धरती एक संकट के संकेत दे रही है. जीवाश्म ईंधन प्रदूषण चार्ट से पता चलता है कि जलवायु को कितना नुकसान पहुंच रहा है. ये एक चेतावनी है कि धरती पर कितनी तेजी से बदलाव हो रहे हैं."

WMO ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पृथ्वी की सतह के पास का औसत तापमान पिछले साल पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.45 डिग्री सेल्सियस ऊपर था. अब ये खतरनाक रूप से महत्वपूर्ण 1.5 डिग्री के करीब है. WMO की प्रमुख एंड्रिया सेलेस्टे साउलो ने एक बयान में चेतावनी दी, "हम कभी भी पेरिस समझौते की 1.5C निचली सीमा के इतने करीब नहीं थे. 2015 में पेरिस जलवायु समझौते को सदस्य देशों की सहमति मिली थी.

रेड अलर्ट
WMO की प्रमुख एंड्रिया सेलेस्टे साउलो ने कहा, "इस रिपोर्ट को दुनिया के लिए रेड अलर्ट के रूप में देखा जाना चाहिए." उन्होंने कहा कि गर्मी का रिकॉर्ड एक बार फिर टूट गया और कुछ मामलों में तोड़ा गया." सौलो ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन तापमान से कहीं ज्यादा है.

एंड्रिया सेलेस्टे साउलो ने कहा, "हमने 2023 में जो देखा... खासतौर पर महासागरों में हीटवेव बढ़ा. ग्लेशियर पिघलकर पीछे खिसक गए. अंटार्कटिक महासागर के बर्फ को नुकसान पहुंचा. कुल मिलाकर ये सब चिंता का कारण है." पिछले साल औसतन एक दिन में हीटवेव ने वैश्विक महासागर के लगभग एक तिहाई हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया था.

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WMO ने कहा कि 2023 के आखिर तक 90 फीसदी से ज्यादा महासागरों में साल के दौरान किसी समय हीटवेव का अनुभव हुआ था. WMO ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी कि लगातार चले मरीन हीटवेव का "मरीन इकोसिस्टम और इसके कोरल रीफ्स पर नेगेटिव असर हुआ.

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि 1950 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से दुनियाभर के प्रमुख ग्लेशियरों को बर्फ का सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. खासतौर पर पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और यूरोप में चीजें बिगड़ी हैं.

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रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्विट्जरलैंड के अल्पाइन ग्लेशियरों ने पिछले दो साल के अंदर अपनी शेष मात्रा का 10 प्रतिशत खो दिया है. स्विट्जरलैंड के जिनेवा में WMO का मुख्यालय है. WMO ने कहा कि अंटार्कटिक समुद्री बर्फ की सीमा भी अब तक के रिकॉर्ड में सबसे कम रह गई है.

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समुद्री स्तर का बढ़ना
रिपोर्ट में समुद्री स्तर के अचानक बढ़ने को भी खतरे की घंटी बताया गया है. रिपोर्ट में बताया गया कि सर्दियों के आखिर तक समुद्री स्तर की अधिकतम सीमा पिछले रिकॉर्ड वर्ष से करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर कम थी, जो फ्रांस और जर्मनी के संयुक्त आकार के बराबर है.

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एजेंसी ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले दशक (2014-2023) में वैश्विक औसत समुद्री स्तर में वृद्धि सैटेलाइट रिकॉर्ड के पहले दशक की दर से दोगुनी से भी अधिक रही. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि जलवायु परिवर्तन दुनियाभर में लोगों पर भारी असर डाल रहा है. ये बाढ़ और सूखे की घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है. इससे इकोसिस्टम बिगड़ रहा है. जैव विविधता को नुकसान पहुंच रहा है, जिससे खाद्य असुरक्षा का संकट भी बढ़ता जा रहा है.

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उम्मीद की किरण
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की मौसम और जलवायु एजेंसी ने इस संकट के बीच एक उम्मीद की किरण की ओर भी इशारा किया. एजेंसी ने कहा कि इस दौरान रिन्यूएबल एनर्जी प्रोडक्शन में इजाफा हुआ है, जो किसी उम्मीद की किरण से कम नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल रिन्यूएबल एनर्जी कैपासिटी मुख्य रूप से सोलर, विंड और हाइड्रोपावर के जरिए 2022 की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत बढ़ गई है.

संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख गुटेरेस ने जोर देकर कहा कि दुनिया के पास अभी भी धरती के दीर्घकालिक तापमान वृद्धि को 1.5C सीमा से नीचे रखने और जलवायु अराजकता की सबसे खराब स्थिति से बचने का मौका है. रिन्यूएबल एनर्जी इसका रास्ता हो सकता है.

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