800 मौतें, 7000 घर तबाह... पाकिस्तान में 'जल-प्रलय' की जिम्मेदार कुदरत या इंसानों ने मजबूर किया?

पाकिस्तान में इस साल के मानसून ने लगभग 800 लोगों की जान ले ली है और 7,000 से अधिक घरों को नुकसान पहुंचाया है. सितंबर तक और अधिक बारिश होने की आशंका है.

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पाकिस्तान में इस साल के मानसून ने लगभग 800 लोगों की जान ले ली है
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  • पाकिस्तान में इस साल मानसून के कारण लगभग 800 लोगों की जान गई और सात हजार से अधिक घरों को नुकसान हुआ है.
  • मानसून की बारिश में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन ने पाकिस्तान में बाढ़ और आपदाओं को गंभीर बनाया है.
  • पाकिस्तान का वन क्षेत्र केवल पांच प्रतिशत रह गया है, जिससे पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का प्रभाव और बढ़ गया है.
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पाकिस्तान में इस समय जल प्रलय आया हुआ है. पहाड़ी गांवों में बाढ़ का पानी दानव बनकर घुस रहा है, शहर दलदल में तब्दील हो गए हैं, अपनों को खोने के बाद मातम मनाने वाले कब्रों पर जमा हो रहे हैं. जून से अबतक, इस साल के मानसून ने पाकिस्तान में लगभग 800 लोगों की जान ले ली है और 7,000 से अधिक घरों को नुकसान पहुंचाया है. सितंबर तक और अधिक बारिश होने की आशंका है.

सवाल है कि जब पाकिस्तान में मानसून का मौसम एक बार फिर आपदा बनकर आया है, इन मौतों, इन तबाहियों के लिए क्या सिर्फ कुदरत जिम्मेदार है. या फिर इंसानों ने अपनी करनी से कुदरत को रौद्र रूप लेने के लिए मजबूर कर दिया है.

जिन बादलों पर निर्भर, वो ही काल बन गएं

पूरे दक्षिण एशिया का मौसमी मानसून अपने साथ बारिश लाता है जिस पर किसान निर्भर रहते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन इस घटना को पूरे क्षेत्र (जिसमें भारत भी शामिल है) में अधिक अनियमित, अप्रत्याशित और घातक बना रहा है.

आपदा अधिकारियों के अनुसार, इस अगस्त के मध्य तक, पाकिस्तान में पिछले साल की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी थी. भारत में भी बाढ़ और भूस्खलनों ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली है.

लेकिन अगर पाकिस्तान की बात करें तो वो आर्थिक संकट की स्थिति में है, वो नकदी की कमी से जूझ रहा. खनिज संपदा से भरपूर पाकिस्तान बढ़ती अमेरिका और चीना की मांग को पूरा करने के लिए उत्सुक है, और उसकी इस भूख ने खनिजों के बेतरतीब दोहन को जन्म दिया है और उसने जलवायु संबंधी आपदाओं को भी बढ़ा दिया है. पाकिस्तान के पूर्व मंत्री रहमान ने कहा कि खनन और कटाई ने पाकिस्तान के प्राकृतिक जलक्षेत्र को बदल दिया है.

उन्होंने कहा, "जब बाढ़ आती है, खासकर पहाड़ी इलाकों में, तब घने जंगल अक्सर पानी की गति, पैमाने और उग्रता को रोकने में सक्षम होते हैं. लेकिन पाकिस्तान में अब केवल पांच प्रतिशत वन कवरेज है, जो दक्षिण एशिया में सबसे कम है."

सिर्फ पहाड़ों में तबाही नहीं

पाकिस्तान में शहरी बुनियादी ढांचा भी लड़खड़ा गया है. उत्तरी पाकिस्तान में गांवों के बह जाने के कुछ दिनों बाद, दक्षिणी पाकिस्तान में हुई बारिश ने वहां की वित्तीय राजधानी कराची को ठप कर दिया है. इस शहर में 2 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. यहां पिछले सप्ताह 10 मौतें दर्ज की गईं, जिनमें कई बिजली के झटके से मारे गए या घरों की छत गिरने से कुचले गए.

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पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की एक रिपोर्ट में कहा था कि सड़कों पर भरा भूरा पानी न केवल बारिश के कारण है, बल्कि "जाम हुईं नालियां, कूड़ों का अपर्याप्त और खराब निपटान, खराब बुनियादी ढांचे, अतिक्रमण, बेतरतीब बनी सोसायटीज ... और इसी तरह के कारणों की वजह से है."

2020 की घातक बाढ़ के मद्देनजर प्रकाशित यह रिपोर्ट आज भी सच लगती है.

राजनीति भी वजह

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के अनुसार, ये समस्याएं "स्वाभाविक रूप से राजनीतिक" हैं. इसकी वजह है कि पाकिस्तान की विभिन्न पार्टियां अपने नेटवर्क को बढ़ावा देने के लिए बिल्डिंग परमिट का उपयोग करती हैं. इस वजह से अक्सर शहरों से पानी निकालने वाली नहरों को भरकर ही सोसाइटी बना दी जाती है और उससे पैदा होने वाले जोखिमों को अनदेखी किया जाता है.

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पाकिस्तान में शहरी नियोजन के एक्सपर्ट आरिफ हसन ने 2022 की बाढ़ के बाद एक इंटरव्यू में कहा था, "कुछ क्षेत्रों में, नाली इतनी संकीर्ण (पतली) हो गई है कि जब उच्च ज्वार आता है और एक साथ बारिश होती है, तो पानी समुद्र में जाने के बजाय वापस नदी में बह जाता है."

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