कट्टरपंथियों को तमाचा! इस मुस्लिम देश में अब बुर्का-हिजाब पर लगा बैन- जानिए वजह

कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव ने सोमवार को सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढंकने पर प्रतिबंध लगाने वाले अपराध रोकथाम कानून में संशोधन पर हस्ताक्षर किए हैं.

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हिजाब पहनी लड़कियों की प्रतिकात्म फोटो

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  • कजाकिस्तान ने हिजाब और बुर्के पर सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंध लगाया है.
  • सरकार का कहना है कि यह सुरक्षा और सामाजिक पहचान से जुड़ा मामला है.
  • स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध 2017 से लागू है, अब सबपर लागू है.
  • कजाकिस्तान ने आधुनिक सोच और धर्म के बीच संतुलन स्थापित किया है.
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जब बात इस्लामिक देशों की होती है, तो हमारे जेहन में एक ही तस्वीर बनती है- चेहरे पर नकाब, सिर पर हिजाब और समाज की बनाई एक अदृश्य दीवार. लेकिन इसी दुनिया में एक ऐसा मुस्लिम देश है, जिसने हिजाब और बुर्के को लेकर वो फैसला लिया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. कट्टरपंथ को सीधी चुनौती दी गई है और महिला स्वतंत्रता के नाम पर सोमवार को एक क्रांतिकारी कानून लाया गया है.

हम आपको एक ऐसे इस्लामिक देश के बारे में बताएंगे जहां हिजाब और बुर्के पहनने पर पाबंदी लगा दी गई है. सुनकर आपको भी थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा लेकिन ये सच है.

ये कहानी है कजाकिस्तान की. एक ऐसा मुस्लिम देश, जहां सरकार ने खुद कह दिया कि चेहरा ढंकना अब जरूरी नहीं, बल्कि गैर-कानूनी हो गया है. यहां अब सार्वजनिक जगहों पर बुर्का, हिजाब या नकाब पहनना कानूनन प्रतिबंधित हो गया है. सरकार का कहना है कि ये सिर्फ फैशन या धर्म का मामला नहीं है.

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ये देश की सुरक्षा और सामाजिक पहचान से जुड़ा सवाल है. चेहरे पर पर्दा अब एक निजी विकल्प नहीं बल्कि सार्वजनिक असुविधा माना जा रहा है. कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट टोकायेव ने कहा, ‘हम अपने देश में बराबरी और खुलेपन को बढ़ावा देना चाहते हैं. नकाब जैसी चीजें हमारी पहचान नहीं, ये आयातित सोच है.' उनके मुताबिक हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक आदेश नहीं है, बल्कि एक सामाजिक प्रथा है, जिसे कट्टरपंथियों ने धीरे-धीरे थोप दिया.

इस बैन की शुरुआत स्कूलों से हुई थी. 2017 में छात्राओं के हिजाब पहनने पर रोक लगी. 2023 तक ये नियम स्कूल के स्टाफ तक भी लागू कर दिया गया.

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ऐसे में कई लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी लेकिन सरकार ने एक भी कदम पीछे नहीं खींचा. कजाकिस्तान में बीते सालों में धार्मिक चरमपंथ धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहा था. महिलाओं पर पर्दा डालने का दबाव बढ़ रहा था. सरकार ने देखा, समझा और फिर ऐसा प्रहार किया, जिससे पूरे क्षेत्र में संदेश गया कि अब 'धर्म' की आड़ में आजादी को बंधक नहीं बनाया जा सकता.

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अब सवाल उठता है कि क्या बाकी इस्लामिक देश भी कजाकिस्तान की राह पर चलेंगे या पर्दे की राजनीति में महिलाएं यूं ही गुमनाम रहती रहेंगी? कजाकिस्तान ने बता दिया कि मॉडर्न सोच और मजहब एक साथ चल सकते हैं. शर्त बस इतनी है कि इरादा मजबूत हो और फैसला साफ. ये कोई एंटी-इस्लामिक कदम नहीं था. ये एक ऐसा फैसला था जो महिलाओं को फिर से उनके असली चेहरे से जोड़ता है. पर्दा अब जरूरत नहीं, चुनाव है. और ये चुनाव अब महिलाओं के हाथ में है.

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