Explainer: Russia ने Ukraine के 'दो प्रांतों को माना अलग देश', क्या होंगे इसके मायने और नतीजे?

पहली बार रूस (Russia) ने कहा है कि वो डोनबास (Donbass) को यूक्रेन (Ukraine) का क्षेत्र नहीं मानता. इससे रूस खुलेआम यूक्रेन के रूस समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों में अपनी सेना भेज सकता है. तनाव बढ़ने पर दोनेत्सक (Donetsk) और लुहांस्क (Luhansk) के अलगाववादी रूसी सेना की मदद ले सकते हैं. दोनेत्सक और लुहांस्क फिलहाल यूक्रेनी सेना के नियंत्रण में हैं.  यह पूरा माहौल यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध का सीधा निमंत्रण दे रहा है.

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Russia के राष्ट्रपति Putin ने शांति समझौते का उल्लंघन करते हुए डोनबास क्षेत्र को मान्यता दी

यूक्रेन (Ukraine) के टुकड़े करने पर उतारू रूस (Russia) ने एक बड़ा ऐलान करते हुए यूक्रेन के दो पूर्वी प्रांतों को स्वतंत्र देश का दर्जा दे दिया है. इन प्रांतों में रूस समर्थक अलगाववादी पहले ही अपने को यूक्रेन से अलग घोषित कर चुके थे. 2014 में रूस ने पूर्व सोवियत देश यूक्रेन के क्रीमिया (Crimea) को भी हथिया लिया था. उस दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे. इस हिंसा को रोकने के लिए मिंस्क (MINSK) समझौता हुआ था. इसके अनुसार इन क्षेत्रों को यूक्रेन के भीतर ही अधिक स्वायत्तता दिए जाने की बात थी. रूस ने भी इसे यूक्रेन समस्या का सबसे बेहतर उपाय बताया था लेकिन अब रूस की तरफ से यूक्रेन के दोनेत्सक (Donetsk) और लुहांस्क (Luhansk) इलाकों को दो अलग देश घोषित करने के बाद अमेरिका (US) और नाटो (NATO) देशों ने कहा है कि रूस ने मिंस्क समझौता ख़त्म कर दिया है.

यूक्रेन संकट पर रूस और अमेरिका के बीच बड़ा तनाव बना हुआ है. यूरोप (Europe) के लिए यह 1945 के बाद सबसे सुरक्षा संकट है.  इस बीच रूस ने फ्रांस और जर्मनी को बताया कि वह पूर्वी यूक्रेन से अलग होने की घोषणा कर चुके इलाकों को रूस स्वतंत्र देश की मान्यता देने जा रहा है. रूस की इस घोषणा का असर दूरगामी होगा. अमेरिका पहले ही कह रहा था कि रूस यूक्रेन पर अपनी 190,000 सेनाओं के साथ हमला करने के लिए तैयार है.  

डोनबास क्षेत्र पर विवाद 

यूक्रेनके अलगाववादी दोनेत्सक और लुहांस्क क्षेत्रों को एक साथ डोनबास (Donbass ) कहा जाता है. यह क्षेत्र यूक्रेनी सरकार के प्रभाव से 2014 में अलग हो गए थे. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार यूक्रेन कहता है कि 2014 की लड़ाई में 15,000 लोग मारे गए थे. रूस इस लड़ाई में सीधे तौर से शामिल नहीं होने का दावा करता है लेकिन रूस की तरफ से अलगाववादियों को हथियार और आर्थिक मदद दी गई. साथ ही रूस ने यहां के करीब 8 लाख लोगों को रूसी पासपोर्ट भी दिया. लेकिन फिर भी रूस कहता है कि वो यूक्रेन पर कब्जा करने की योजना नहीं रखता.  

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डोनबास को मान्यता से क्या होगा?

पहली बार रूस ने कहा है कि वो डोनबास को यूक्रेन का क्षेत्र नहीं मानता. इससे रूस खुलेआम यूक्रेन के रूस समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों में अपनी सेना भेज सकता है. रूसी संसद के एक सदस्य और दोनेत्सक के पूर्व नेता एलेक्ज़ेंडर बोरोदाई पहले ही कह चुके हैं कि तनाव बढ़ने पर दोनेत्सक और लुहांस्क के अलगाववादी रूसी सेना की मदद लेंगे. दोनेत्सक और लुहांस्क फिलहाल यूक्रेनी सेना के नियंत्रण में हैं.  यह पूरा माहौल यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध का सीधा निमंत्रण दे रहा है. 

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अब पश्चिमी देश क्या करेंगे?

पश्चिमी देश लंबे समय से रूस को यह चेतावनी दे रहे हैं कि यूक्रेन के बॉर्डर पर अगर रूस सैन्य कार्रवाई करता है तो उसे सख़्त जवाब मिलेगा और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे.  अमेरिका के विदेश मंत्रालय की तरफ से पिछले हफ्ते ही कहा गया था कि यूक्रेन की संप्रभुता और सीमाई अखंडता को कम करने की कोशिश अंतर्राष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन होगी और इस समस्या को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने के रास्ते भी बंद हो सकते हैं. और रूस के ऐसा करने पर अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से प्रतिक्रिया दी जाएगी.  

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रूस के लिए क्या फ़ायदा नुकसान? 

रूस पहले भी जॉर्जिया के साथ 2008 में युद्ध के बाद दो अलगाववादी क्षेत्रों को मान्यता दे चुका है. पूर्व सोवियत  देश जॉर्जिया भी नाटो में शामिल होने की महत्वकांक्षा रखता था. लेकिन रूस ने जॉर्जिया से उसकी सीमाओं का पूरा नियंत्रण छीन कर नाटो में उसके शामिल होने की संभावनाओं को अनिश्चितकाल के लिए 
विलंबित कर दिया. अब यूक्रेन के मामले में भी यही होता नज़र आ रहा है. 

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वहीं दूसरी ओर रूस  पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगेंगे और मिंस्क प्रक्रिया को समर्थन देने के बाद उसे छोड़ देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ेगा. साथ ही आठ साल के युद्ध के बोझ तले दबे डोनबास क्षेत्र में रूस की आर्थिक ज़िम्मेदारी भी बढ़ा जाएगी. 

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