अमेरिका के चुने हए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 47वें राष्ट्रपति के रूप में सोमवार को शपथ लेंगे. राष्ट्रपति के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा.पहली बार उन्होंने 20 जनवरी 2017 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. चार साल बाद वो राष्ट्रपति के रूप में वो दूसरी बार वापसी कर रहे हैं. ऐसा करने वाले वो अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति हैं.उनसे पहले ग्रोवर क्लीवलैंड ने यह कारनामा किया था. क्लीवलैंड पहली बार 1885 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. वो दोबारा 1893 में राष्ट्रपति चुने गए थे. ट्रंप की वापसी के साथ ही इस बात की उम्मीद लगाई जाने लगा कि उनके इस कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिलेगा. इसके कुछ लक्षण उनके शपथ लेने से पहले ही दिख गए. आइए देखते हैं कि ट्रंप के नए कार्यकाल में क्या क्या बदलाव हो सकते हैं.
क्या होगा कनाडा का
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ लेने से पहले ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने छह जनवरी को इस्तीफा दे दिया था. ट्रूडो के इस इस्तीफे के लिए कुछ हद तक डॉनल्ड ट्रंप के बयानों को भी जिम्मेदार माना जा सकता है. वो कनाडा को अमेरिका का 51 वां राज्य और ट्रूडो को उसका गवर्नर बताते रहे हैं. ट्रूडो ने कभी भी ट्रंप के इस दावे पर आपत्ति नहीं जताई.ट्रंप ने कनाडा को रक्षा और व्यापार के लिए अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर बताकर इस भावना को हवा दी. इससे ट्रूडो की लिबरल पार्टी में दरार पैदा हुई. इसके बाद ट्रूडो ने पद छोड़ दिया.ट्रंप का प्रभाव केवल राजनीतिक है बल्कि रणनीतिक भी है. इससे कनाडा के नेता अमेरिका-कनाडा संबंधों पर अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार कर रहे हैं. इसमें ट्रूडो का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. उम्मीद है कि कनाडा की अगली सरकार अधिक व्यावहारिक और रक्षात्मक रुख अपनाए.
क्या भारत और चीन करीब आएंगे
हाल के महीनों में भारत और चीन के बीच जारी तनाव में कमी आई है.दोनों देश वार्ता की मेज पर लौट रहे हैं.कुछ लोगों का कहना है कि इसका कारण राष्ट्रपति पद पर ट्रंप की वापसी भी हो सकती है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप की आक्रामक टैरिफ और अप्रत्याशित कूटनीति के इतिहास ने चीन को अमेरिका के अतिरिक्त दबाव से बचने के लिए भारत के साथ तनाव कम करने के लिए प्रेरित किया. ट्रंप की वापसी का असर यह है कि प्रतिद्वंद्वी अपनी रणनीतियों को नए सिरे से व्यवस्थित कर रहे हैं. चीन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से सावधान है. ट्रंप के आने से चीन के साथ व्यापार युद्ध या सैन्य प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है. इसे देखते हुए चीन अपने क्षेत्रीय संबंधों को सुधारने के लिए उत्सुकता दिखा रहा है. वहीं भारत इसे सीमा विवाद को हल करने के अवसर और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के दीर्घकालिक लक्ष्य के रूप में देख रहा है.
ग्रीनलैंड का क्या होगा
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही ग्रीनलैंड एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. ट्रंप इस द्वीप खरीदने में रुचि रखते हैं. वे ग्रीनलैंड को अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताते हैं.अब इसकी स्वायत्तता को लेकर बहस फिर से शुरू हो गई है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ग्रीनलैंड को खरीदने के ट्रंप की इच्छा का मजाक उड़ाया गया था. लेकिन उनकी सोच ने आर्कटिक के रणनीतिक महत्व की ओर ध्यान आकर्षित किया. जबकि ट्रंप की प्रत्यक्ष भागीदारी अटकलें बनी हुई है, ग्रीनलैंड पर उनका नया ध्यान आर्कटिक में प्रभुत्व का दावा करने के लिए एक व्यापक अमेरिकी रणनीति का संकेत देता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रयुक्त संसाधनों और नए व्यापार मार्गों वाला क्षेत्र है.
खबरों के मुताबिक डेनमार्क ने ट्रंप टीम से संपर्क किया है. डेनमार्क ने ग्रीनलैंड में सुरक्षा बढ़ाने या द्वीप पर नियंत्रण छोड़े बिना वहां अमेरिकी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की इच्छा जताई है. डेनमार्क का लक्ष्य ग्रीनलैंड की संप्रभुता से समझौता किए बिना अमेरिकी सुरक्षा चिंताओं का निदान करना है.द्वीप की स्वतंत्रता इस बात को ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट एगेडे ने भी दोहराया है.उनका जोर इस द्वीप की स्वतंत्रता पर है.
क्या अमेरिका छोड़ देगा नाटो
नाटो को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणियों ने इस गठबंधन के सदस्यों में चिंता पैदा कर दी है. ट्रंप ने कहा है कि इसके सदस्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पांच फीसदी रक्षा के लिए आवंटित करना चाहिए. अभी यह दो फीसदी है.ट्रंप के आने के बाद इस दिशा में कोई पहल हो सकती है.ट्रंप 'अमेरिका फर्स्ट' के समर्थक हैं. इस गठबंधन की स्थापना पश्चिमी देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ से मुकाबला करने के लिए किया था.दुनिया के 32 देश इसके सदस्य हैं. अमेरिका नेटो का संस्थापक सदस्य है. ट्रंप शुरू से ही नेटो पर संदेह जताते रहे हैं. उनका मानना है कि नेटो के किसी भी सदस्य देश पर हमले की स्थिति में अमेरिका की ओर से संरक्षण की नीति का यूरोप फायदा उठाता रहा है. अब सवाल यह उठाए जा रहे हैं कि क्या अमेरिका नाटो की सदस्यता छोड़ देगा?
मध्य पूर्व में ट्रंप की आहत
ट्रंप के शपथ से पहले ही पिछले 15 महीने से युद्ध में उलझे इजरायल और हमास हरकत में आ गए.हमास ने इजरायल ने युद्ध विराम समझौता लागू कर कैदियों की अदला-बदली शुरू कर दी है. इससे इस इलाके में शांति आने की संभावना बढ़ गई है. इस समझौते की घोषणा के बाद ट्रंप ने कहा है कि मई 2024 में उन्होंने समझौते के लिए एक योजना दी थी. समझौता उसी फ्रेमवर्क पर हुआ है. उनका कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत की वजह से ही ये विराट समझौता हो पाया है. उन्होंने कहा है कि इस समझौते ने पूरी दुनिया को संकेत दे दिया है कि मेरा प्रशासन दुनिया में शांति कायम करने की कोशिश करेगा. ये सभी अमेरिकियों और अमेरिका के सहयोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समझौते की बातचीत करेगा.