‘दरिया-ए-नूर’ हीरा 117 साल बाद आएगा बाहर! बांग्लादेश के नवाब से अंग्रेजों ने ऐसे छीना था दूसरा कोह-ए-नूर

Darya-e-Noor diamond History: 'दरिया-ए-नूर' हीरा कुल मिलाकर 108 खजानों के भंडार का हिस्सा था जिसे ढाका के नवाब ने अंग्रेजों के पास गिरवी रखा था. अब उस बैंक की तिजोरी को खोलने का आदेश दिया गया है.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
‘दरिया-ए-नूर’ हीरा 117 साल बाद आएगा बाहर!
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • दरिया-ए-नूर नाम का ऐतिहासिक हीरा 117 साल से बांग्लादेश के एक बैंक की तिजोरी में बंद है और अब बाहर आएगा.
  • 1908 में नवाब सर सलीमुल्लाह बहादुर ने वित्तीय संकट के कारण हीरे सहित खजाने को ब्रिटिश सरकार को गिरवी रखा था.
  • उस समय हीरे की कीमत लगभग 500,000 रुपये थी, जो आज के हिसाब से लगभग 115 करोड़ रुपए के बराबर मानी जाती है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

117 साल से एक बेशकीमती हीरे का भाग्य बांग्लादेश के एक बैंक की तिजोरी के अंदर बंद है. यह भी पता नहीं कि एक सदी बीत जाने के बाद उस तिजोरी के अंदर दरिया-ए-नूर नाम का यह ऐतिहासिक हीरा मौजूद है भी या नहीं. यह एक ऐसा रहस्य है जो ढाका के नवाबों के वंशज ख्वाजा नईम मुराद को परेशान कर रहा है. लेकिन अब इस रहस्य से पर्दा उठने वाला है, दरिया-ए-नूर उस तिजोरी में है भी या नहीं, यह पता चलने वाला है.

सवाल बड़े हैं. 1908 में जिस हीरे को बैंक की तिजोरी में बंद कर दिया था क्या वह 1947 में ब्रिटिश हुकूमत के अंत में हुई हिंसा के दौरान बच गया था? क्या वह 1971 में बांग्लादेश में हुई आजादी की लड़ाई और उसके बाद हुए तख्तापलट में भी बचा रह गया था? क्या वह हीरा अभी भी सुरक्षित उस तिजोरी में मौजूद है? हर सवाल का जवाब मिलने वाला है क्योंकि नकदी संकट से जूझ रही बांग्लादेश की सरकार ने अब एक समिति को तिजोरी खोलने का आदेश दिया है.

दरिया-ए-नूर की पेंटिंग दिखाते नईम मुरीद

नवाब के वंशज को याद पूर्वजों की निशानी

55 साल के मुराद कहते हैं कि "यह कोई परीकथा नहीं है." उन्होंने अपने पिता से इस विशाल हीरे की कहानी सुनी थी. उस हीरे का नाम दरिया-ए-नूर है यानी खुबसूरती की नदी. यह हीरा एक चमचमाते आर्मबैंड के ठीक बीच में लगा है. मुराद ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "हीरा आकार में आयताकार था और आधा वह खुद दर्जन से अधिक छोटे हीरों से घिरा हुआ था."

नवाब के वंशज नईम मुराद

यह हीरा कुल मिलाकर 108 खजानों के भंडार का हिस्सा था. मूल अदालती दस्तावेजों के अनुसार इस खजाने में हीरों से जड़ी एक सोने और चांदी की तलवार, मोतियों से जड़ित एक रत्नजड़ित टोपी और एक शानदार सितारा ब्रोच (कपड़ों पर लगने वाला पिन) शामिल है जो कभी एक फ्रांसीसी महारानी के पास था.

कोहिनूर के साथ जुड़ी कहानी दरिया-ए-नूर की

ढाका के नवाब का नदी किनारे बना अहसान मंजिल का गुलाबी महल अब एक सरकारी संग्रहालय है. मुराद उसी नवाब के वंशज है और पहले वो बंग्लादेश में एक फेमस फिल्म स्टार थे. अभी वो एक ढाका में ही एक विशाल विला में रहते हैं. उन्होंने कई कागज जमा किए हैं, जिसमें एक पारिवारिक किताब भी शामिल है जिसमें उस खजाने की कई पेंटिंग है. 

खजानों की तस्वीर दिखाते नईम मुरीद

मुराद बताते हैं कि दरिया-ए-नूर दुनिया के सबसे प्रसिद्ध हीरों में से एक है, और इसका इतिहास कोह-ए-नूर के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है. वह अपनी चमक में बिल्कुल उत्तम है. गौरतलब है कि ‘दरिया-ए-नूर' नाम का ही एक और हीरा, गुलाबी रंग का दरिया-ए-नूर, अभी तेहरान में है. वह ईरान के पूर्व शाही रत्नों के हिस्सा है.

मुराद का कहना है कि दरिया-ए-नूर हीरा उनके परिवार में आने के पहले कभी फारस के शाहों के स्वामित्व में था. बाद में 19वीं सदी के पंजाब में सिख योद्धा-नेता रणजीत सिंह ने उसे पहना था. उसके बाद में इसे अंग्रेजों ने उनसे ले लिया और अंततः उनके पूर्वजों ने इसे हासिल कर लिया.

Advertisement
हीरे की किस्मत ने एक बार फिर पलटी मारी. 1908 में, तत्कालीन नवाब और मुराद के परदादा सर सलीमुल्लाह बहादुर का बजट बिगड़ गया, उन्हें वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा. सर सलीमुल्लाह बहादुर ने ब्रिटिश सरकार से उधार लिया और बदले में अपने खजाने को गिरवी रख दिया. तभी उस हीरो को आखिरी बार देखा गया था. तब से, इसको लेकर मिथक हैं और यह इतिहास का हिस्सा बन गया.

मुराद का मानना ​​है कि उनके चाचा ने 1980 के दशक में बैंक में इस खजाने को देखा था. लेकिन बैंक अधिकारियों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि तिजोरी कभी खोली गई है या नहीं. वहीं बांग्लादेश के भूमि सुधार बोर्ड के अध्यक्ष, एजेएम सलाउद्दीन नागरी का कहना है कि सरकार को सरकारी बैंक में रखी गई हर चीज विरासत में मिली है. यानी उस खजाने पर सरकार का हक है. उन्होंने एएफपी को बताया, "लेकिन मैंने अभी तक कोई भी खजाना नहीं देखा है."

हीरे की कीमत क्या है?

1908 के अदालती कागजात में हीरे कितने कैरेट वजन का है, यह नहीं बताया गया था. लेकिन उस समय इसका मूल्य 500,000 रुपये था और कुल खजाने की कीमत 18 लाख रुपये लगाया गया था. 

Advertisement

अगर इसे आज के करैंसी वैल्यू में देखें तो यह लगभग 13 मिलियन डॉलर (लगभग 115 करोड़ भारतीय रुपए) के बराबर है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे दुर्लभ और बड़े रत्नों का बाजार मूल्य कई गुना अधिक हो सकता है.

सोनाली बैंक के मैनेजिंग डॉयरेक्टर शौकत अली खान ने कहा कि तिजोरी अभी भी बंद है. खान ने कहा, "तिजोरी सील कर दी गई है… कई साल पहले, एक निरीक्षण दल खजाने की जांच करने के लिए आया था, लेकिन उन्होंने वास्तव में इसे कभी नहीं खोला - उन्होंने सिर्फ उस गेट को खोला जिसमें तिजोरी थी."

Advertisement

वह चाहते हैं कि आखिरकार तिजोरी खोली जाए, हालांकि अभी तक कोई तारीख़ नहीं बताई गई है.

यह भी पढ़ें: ये कैसी छुट्टियां! 58 साल की महिला ने स्विटजरलैंड में 17 लाख रुपये चुकाकर मौत को लगाया गले

Featured Video Of The Day
Bareilly: बड़ी मात्रा में अवैध पटाखे जब्त, कई जगह पुलिस की छापेमारी | UP News | Diwali 2025
Topics mentioned in this article