दलाई लामा का 90वां जन्मदिन: चीन ने बिछाया था जाल, भारत ने बढ़ाया हाथ.. तिब्बत से भागकर धर्मशाला में शरण लेने की कहानी

Dalai Lama 90th Birthday: दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण जन्मदिन है क्योंकि उन्होंने संकेत दिया है कि वह उस दिन अपने संभावित उत्तराधिकारी के बारे में और अधिक कह सकते हैं. शायद उसके नाम का ऐलान तक कर दें.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
Dalai Lama 90th Birthday: दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • दलाई लामा 6 जुलाई को 90 वर्ष के हो जाएंगे, यह उनका विशेष जन्मदिन है. वे 14वें दलाई लामा हैं.
  • संकेत दिया है कि वह अपने संभावित उत्तराधिकारी के बारे में और अधिक कह सकते हैं. शायद नाम का ऐलान कर दें.
  • दलाई लामा ने 1959 में तिब्बत से निर्वासित होकर भारत में शरण ली थी.
  • उन्होंने तिब्बती लोगों के लिए स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता की मांग की है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।

बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल (Dalai Lama 90th Birthday) के हो जाएंगे. दलाई लामा खुद को भले केवल एक साधारण भिक्षु कहते हैं, लेकिन पिछले 60 से अधिक सालों से आकर्षण और दृढ़ विश्वास से लैस होकर, वह अपने तिब्बत के लोगों और उनके हितों को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में बनाए रखने में कामयाब रहे हैं. उनके इस मिशन की कर्मभूमि भारत ही रहा है.

दलाई लामा उनका नाम नहीं बल्कि उनका पद है. वे 14वें दलाई लामा हैं और उनका असल नाम ल्हामो धोंडुप था. चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद 1959 में हजारों अन्य तिब्बतियों के साथ वो भारत निर्वासित हो गए थे और तब से उन्होंने यहीं शरण ली है. उन्होंने तिब्बती लोगों के लिए स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता की मांग के लिए एक अहिंसक "मध्य मार्ग" की वकालत की है, और अपने प्रयासों के लिए 1989 का नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया है.

उनकी लोकप्रियता से चीन परेशान है जो उन्हें एक खतरनाक अलगाववादी नेता के रूप में देखता है. कम्युनिस्ट पार्टी के एक पूर्व बॉस ने उन्हें "गीदड़" और "जानवर का दिल" वाला तक बताया था.

दलाई लामा रविवार को 90 वर्ष के हो जाएंगे. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण जन्मदिन है क्योंकि उन्होंने संकेत दिया है कि वह उस दिन अपने संभावित उत्तराधिकारी के बारे में और अधिक कह सकते हैं. शायद उसके नाम का ऐलान तक कर दें. तिब्बती परंपरा का मानना ​​है कि एक बड़े बौद्ध भिक्षु की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा एक बच्चे के शरीर में पुनर्जन्म लेती है और अलगा दलाई लामा वहीं बनता है.

Advertisement

चलिए इस मौके पर आपको बताते हैं कि दलाई लामा को कब और किन परिस्थितियों में तिब्बत छोड़ना पड़ा, भारत ने कैसे उनको पनाह दी.

Advertisement

निर्वासन में दलाई लामा का जीवन

दलाई लामा का जन्म 1935 में ल्हामो धोंदुप में एक किसान परिवार में हुआ था. अभी यह क्षेत्र किंघई के उत्तर-पश्चिमी चीनी प्रांत में है. दो साल की उम्र में, एक खोज दल ने उन्हें तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक नेता का 14वां अवतार माना था.

Advertisement

लेकिन चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया. इस कब्जे को चीन ने "शांतिपूर्ण मुक्ति" कहा. किशोर दलाई लामा ने कुछ ही समय बाद एक राजनीतिक भूमिका निभाई, उन्होंने माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं से मिलने के लिए बीजिंग की यात्रा की. इसके नौ साल बाद, इस डर से कि दलाई लामा का अपहरण किया जा सकता है, तिब्बत में एक बड़े विद्रोह को बढ़ावा मिला. चीनी सेना ने इसके बाद तिब्बत में किसी भी विद्रोह को दबाने के लिए जुल्म ढाए. 

Advertisement

10 मार्च 1959 को, 23 वर्षीय दलाई लामा को एक चीनी जनरल ने डांस परफार्मेंस के लिए आमंत्रित किया गया था - लेकिन उनके किसी भी बॉडीगार्ड के बिना. इससे तिब्बती अपने आध्यात्मिक नेता के अपहरण के चीनी चाल को लेकर सचेत हो गए. डांस परफार्मेंस के दिन दलाई लामा के हजारों तिब्बती समर्थक उनके महल के बाहर जमा हो गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे. इससे अफवाहें फैल गईं कि चीनी सेना कभी भी महल पर कब्जा कर सकती है. 17 मार्च 1959 की रात को एक सैनिक के वेश में दलाई लामा, उनका परिवार और कई शीर्ष अधिकारी महल से भाग निकले. दलाई लामा ने पहले ही ल्हासा में भारतीय वाणिज्य दूत से भारत में शरण के लिए अनुरोध किया था. भारत ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया.

भारत ने दिल खोलकर दलाई लामा को स्वीकार किया

भारत ने हमेशा तिब्बत को एक आजाद देश के रूप में माना है और उसके साथ मजबूत वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंध साझा किए हैं. पहले तो सीमा शांतिपूर्ण बनी हुई थी लेकिन 1954 में बदल गया, जब भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसे 'चीन के तिब्बत क्षेत्र' के रूप में स्वीकार किया.

ल्हासा से भागने के बाद दलाई लामा और उनके साथियों ने हिमालय और ब्रह्मपुत्र को पार किया और भारत में शरण ली. 26 मार्च 1959 को उनका कारवां बॉर्डर पर पहुंचा, जहां से दलाई लामा ने भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक लेटर भेजा.

भारत ने उनकी सुरक्षा के उपाय किये और उनका स्वागत किया. उनका दल कुछ देर के लिए अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ में रुका. मसूरी में नेहरू से मुलाकात के बाद भारत ने 3 अप्रैल 1959 को दलाई लामा को शरण दे दी.

हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला पहले से ही चीनी दमन से भाग रहे हजारों तिब्बती निर्वासितों के लिए एक घर बन गया था. दलाई लामा बाद में स्थायी रूप से वहां बस गए और निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की. इस साहसिक कदम से चीन नाराज हो गया.

बीजिंग की ओर हाथ बढ़ाने की उन्होंने बार-बार कोशिश की. लेकिन अपने प्रयासों से उन्हें कितना कम फायदा हुआ, इससे निराश होकर उन्होंने 1988 में घोषणा की कि उन्होंने चीन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग छोड़ दी है, और इसके बजाय चीन के भीतर सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता की मांग करेंगे. 

2011 में, दलाई लामा ने घोषणा की कि वह अपनी राजनीतिक भूमिका छोड़ देंगे और उन जिम्मेदारियों को निर्वासित तिब्बती सरकार के एक निर्वाचित नेता को सौंप देंगे. लेकिन वह अभी भी सक्रिय रहते हैं. पारंपरिक मैरून और भगवा वस्त्र पहने दलाई लामा के पास लगातार आगंतुकों का आना जारी है. उन्हें घुटने की सर्जरी और चलने में कठिनाई सहित कई स्वास्थ्य समस्याएं हैं. इसके बावजूद, वह अभी भी लंबे समय तक जीवित रहने की उम्मीद करते हैं. दिसंबर में उन्होंने रॉयटर्स से कहा, "मेरे सपने के मुताबिक, मैं 110 साल जी सकता हूं."

Featured Video Of The Day
Sudden Deaths का असली गुनहगार कौन? AIIMS के Doctor ने किया बड़ा खुलासा | NDTV India
Topics mentioned in this article