- बांग्लादेश में गारमेंट फैक्ट्री में प्रमोशन विवाद के कारण हिंदू युवक दीपू दास की बेरहमी से हत्या की गई थी
- दीपू दास ने रिश्वत देने से इनकार किया था, जिससे फैक्ट्री के सहकर्मियों में नाराजगी थी
- हत्या की घटना के समय पुलिस मौके पर मौजूद थी लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की और भीड़ ने दीपू को मारा
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के एक युवक दीपू दास की हत्या ने हर किसी को झकझोर दिया है. दीपू दास गारमेंट फैक्ट्री ‘पायनियर' में काम करते थे. हाल ही में फैक्ट्री में प्रमोशन के लिए लॉटरी हुई थी, जिसमें दीपू का नाम निकला. इसी बात को लेकर सहकर्मियों में नाराज़गी बढ़ी और यह विवाद उनकी जान लेने तक पहुंच गया. परिवार के मुताबिक, दीपू ने रिश्वत देने से साफ इनकार कर दिया था.
दीपू को बेरहमी से पीटकर मारा गया
धमकी के बाद फैक्ट्री परिसर में ही दीपू दास को बेरहमी से पीटा गया, फांसी पर लटकाया गया और फिर भीड़ के सामने जान से मार दिया गया. घटना का वीडियो बांग्लादेश से सामने आया है, जिसमें साफ दिखता है कि पुलिस मौके पर मौजूद थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस भीड़ देखकर भाग गई. दीपू अपने माता-पिता, पत्नी और डेढ़ साल की बेटी के साथ रहते थे. उनकी मौत के बाद परिवार पूरी तरह टूट गया है.
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दीपू की कमाई से चलता था घर
दीपू दास के पिता ने एनडीटीवी से कहा, “दीपू दास ही घर चलाता था, अब सब खत्म हो गया. वह बहुत अच्छा लड़का था, कभी किसी से झगड़ा नहीं किया.” परिवार के लिए यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि जिंदगी का पूरा आधार खत्म हो जाना है. अब तक बांग्लादेश सरकार की ओर से परिवार को सिर्फ 25,000 टका (करीब $200), एक कंबल, कुछ चावल और एक सिलाई मशीन दी गई है.
न्याय की आस में दीपू की फैमिली
स्थानीय संगठनों ने एक लाख टका का चेक दिया है. हिंदू-बौद्ध-क्रिश्चियन फ्रंट के नेता ने कहा, “यह मदद बेहद कम है, हम चाहते हैं कि दोषियों को सख्त सजा मिले और परिवार को उचित मुआवज़ा मिले.” घटना के बाद इलाके में डर का माहौल नहीं है, लेकिन हिंदू समुदाय में गुस्सा और आक्रोश है. स्थानीय नेता ने कहा, “दीपू जैसा लड़का यहां नहीं था. उसकी हत्या बर्बरता है. सरकार को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए.”
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आश्वासन मिला लेकिन अभी भी इंतजार
बांग्लादेश सरकार के अधिकारियों ने परिवार को आश्वासन दिया है कि सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित किया जाएगा. हालांकि, कई लोग मानते हैं कि केयरटेकर सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को खुद परिवार से मिलना चाहिए था. फिलहाल, परिवार को सिर्फ वादे मिले हैं, लेकिन न्याय और पर्याप्त मदद का इंतजार जारी है.
कैसे मिली परिवार को घटना की खबर?
दीपू दास के परिवार को घटना की जानकारी एक स्थानीय व्यक्ति ने फोन करके दी. उसने बताया कि दीपू को मार दिया गया है और जला दिया गया है. यह सुनकर परिवार के लोग तुरंत मेमनसिंह के लिए रवाना हुए. जब वे पहुंचे, तब तक दीपू का शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा चुका था. परिवार को पहली बार अपने बेटे की लाश पोस्टमार्टम के बाद देखने को मिली.
फैक्ट्री और प्रशासन का रवैया
परिवार का आरोप है कि जिस फैक्ट्री में दीपू काम करता था, वहां से कोई मदद नहीं मिली. फैक्ट्री में दो साल से काम करने वाले दीपू ने कभी किसी से झगड़ा नहीं किया था. प्रमोशन अच्छे काम के लिए हुआ था, लेकिन वही उसकी मौत का कारण बन गया. परिवार का कहना है कि यह हत्या सिर्फ प्रमोशन विवाद नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान से भी जुड़ी हो सकती है.
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पुलिस और जांच
स्थानीय लोगों का आरोप है कि घटना के समय पुलिस मौके पर मौजूद थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. बाद में प्रशासन ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. परिवार का कहना है कि इस मामले में करीब 150 लोग शामिल थे, लेकिन अब तक कुछ ही गिरफ्तारियां हुई हैं. वे चाहते हैं कि सभी आरोपियों को पकड़ा जाए और फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सख्त सजा दी जाए.
मां और पत्नी का दर्द
दीपू की मां और पत्नी इस समय गहरे सदमे में हैं. मां ने बात करने से इनकार कर दिया. रिपोर्टर ने बताया कि पत्नी से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि उनकी हालत बेहद खराब थी. शादी को सिर्फ तीन साल हुए थे और उनकी डेढ़ साल की बेटी अब पिता के बिना बड़ी होगी. यह सोचकर ही परिवार और समुदाय में गहरा दर्द है.
घर और हालात
दीपू का छोटा सा घर है जो कि टीन की छत से बना है, जिसमें परिवार रहता था. दीवारों पर परिवार की तस्वीरें हैं, जिनमें दीपू अपने भाइयों के साथ नजर आ रहा है. अब उस घर का सबसे मजबूत स्तंभ नहीं रहा. यह दृश्य दिल तोड़ देने वाला है और यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि ऐसी बर्बरता किसी भी इंसान के साथ नहीं होनी चाहिए.














