जब शहर में एक बार भीड़ बनती है तो वो एक चुनाव से गायब नहीं होती. वो उन घरों में रहती है जहां उन्हें पनाह मिलती है. अगर जेएनयू मामले में दिल्ली पुलिस ने अपना काम निष्पक्षता से किया होता तो इतनी जल्दी एक और भीड़ गार्गी कॉलेज के कैंपस में धावा नहीं बोलती. लड़कियों के कॉलेज में सैकड़ों की संख्या में मर्दों की भीड़ घुस आती है. उनके साथ वो वो करती है जिन्हें ठीक ठीक बताया जाना चाहिए. ऐसे मर्दों की भीड़ अक्सर हमारे शब्दों के लिहाज़ से बच निकलती है. उन्हें लगता है कि हम अंग्रेज़ी में ग्रोपिंग कह लेंगे लेकिन हिन्दी में कैसे बताएंगे कि गार्गी कॉलेज में जो भीड़ गई थी वो लड़कियों की छाती दबोच रही थी. यौन हिंसा को लेकर शब्दों की कमी इतनी भी नहीं है कि हिंसा करने वालों की भीड़ इस कारण से बच निकले. यह उस महानगर का किरदार है जो भारत को विश्व गुरु बनाने की राजधानी बनने की ख्वाहिश भी रखता है और गुंडे भी पालता है. कॉलेज में सीसीटीवी तो होगा ही तो कायदे से प्रिंसिपल को सामने रख देना चाहिए ताकि दिल्ली देख सके कि जो भीड़ आई थी उसका व्यवहार कैसा था. उसके चेहरे कैसे थे.