नोटबंदी के समय जब हमारे बैंक कर्मचारी रात-रातभर जाग रहे थे तब किसी ने नहीं कहा कि सरकारी बैंकों को प्राइवेट हाथों में बेच दिया जाय. जब लाखों बैंक कर्मचारी अपने काम से अतिरिक्त समय निकाल कर जनधन के लाखों खाते खोल रहे थे तब किसी ने नहीं कहा कि ये नकारे हैं, बोझ हैं, इन बैंकों को प्राइवेट बैंकों के हाथों बेच दिया जाय. लेकिन नीरव मोदी और मेहुल चोकसी प्रकरण के बाद कई लोगों ऐसी मांग की है. लेकिन बैंक के लाखों कर्मचारी क्या भुगत रहे हैं अगर ये जान लेंगे तो शायद ऐसा न बोल पाएं.