निजता का अधिकार वो अधिकार है, जिसकी ख़ुश्बू संविधान में है. जज साहिबान ने बताया है कि संविधान के बगीचे में अलग-अलग अधिकारों से जो ख़ुश्बू आ रही है वो निजता के अधिकार की ख़ुश्बू है. इस ख़ुश्बू के बग़ैर संविधान की बगिया की रौनक फीकी पड़ जाती है. आज के फैसले में बस यही हुआ है कि उस ख़ुश्बू का नाम दे दिया गया है कि यह जासमीन नहीं, ग़ुलाब नहीं, ख़स नहीं बल्कि निजता का अधिकार है.