बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ. यह नारा आपको अब हर टेंपो, ट्रक के पीछे दिख जाता है. अक्सर इस नारे में हमारा ज़ोर बेटियों के पढ़ाने पर होता है, लेकिन ज़ोर होना चाहिए पहली लाइन पर. बेटी बचाओ पर. किससे बचाओ और क्यों बचाओ. क्या यह नारा इसलिए नहीं है कि हमारा समाज बेटियों को गर्भ में मारने वाला रहा है और गर्भ से बेटियां बाहर भी आ गईं तो सड़कों पर जलाकर मार देता है या बलात्कार से मार देता है. ऐसा लगता है कि बेटियों को लेकर हमारा सारा गुस्सा निर्भया आंदोलन के समय निकल गया. उसके बाद किस वजह से यह भरोसा बन गया कि अब सब ठीक है, पता नहीं. क्या हम सब इस वजह से अब आगे नहीं आते कि जलाकर मार दी जाने वाली लड़कियों की जाति का भी हिसाब रखना होता है. जाति के हिसाब से उनके इंसाफ की लड़ाई तय होती है. पिछले कुछ दिनों में तीन ऐसी ख़बरें हैं जो लड़कियों को जला कर मार देने की है.