आख़िर टैगोर के लिए राष्ट्रवाद क्यों ग्लास जितनी सस्ती है, जिसे वो मानवतावाद के बेशकीमती हीरे से नहीं ख़रीदना चाहते हैं. 1916 और 1917 के साल टैगोर जापान और अमेरिका जाकर राष्ट्रवाद पर लेक्चर दे रहे थे. 55 साल की उम्र थी तब. 1913 में ही नोबेल पुरस्कार मिल चुका था. 1908 से 1917 के बीच राष्ट्रवाद को लेकर टैगौर लगातार सोच रहे थे. इसी बीच में 1911 में वे जन गण मन की रचना करते हैं, उसके बाद भी राष्ट्रवाद को शक की निगाह से देखते रहते हैं. कहते हैं कि जब मुल्क से प्यार का मतलब भक्ति या पवित्र कार्य में बदल जाए तब विनाश निश्चित है. मैं देश को बचाने के लिए तैयार हूं लेकिन मैं किसकी पूजा करूंगा ये मेरा अधिकार है जो देश से भी कहीं ज़्यादा बड़ा है. ये टगोर के शब्द हैं.