बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज भीमा कोरेगांव मामले में वकील सुधा भारद्वाज, गोंज़ाल्विस, अरुण फरेरा की ज़मानत याचिका रद्द कर दी है. ये सभी एक साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं. सुधा भारद्वाज को लेकर क्या-क्या नहीं कहा गया है लेकिन यही वो सुधा भारद्वाज थी जिन्होंने सारकेगुड़ा के गांव वालों की लड़ाई लड़ी थी. उनके साथ वकील शालिनी गेरा और युगमोहित चौधरी भी थे. सुधा भारद्वाज का मानना था कि वहां पर सेना द्वारा कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ की गई है जिसमें 17 लोग मारे गए थे. सारकेगुड़ा छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले का एक गांव है. घटना जून 2012 की है. लेकिन मामले की न्यायिक जांच से जुड़ी जस्टिस वीके अग्रवाल की रिपोर्ट के मुताबिक मुठभेड़ में गांववालों ने गोलियां नहीं चलाईं और न ही इस मुठभेड़ में नक्सली शमिल थे. 28 और 29 जून 2012 की आधी रात को हुई इस कथित मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 17 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया था. उनके शव भी बरामद किए गए थे. 78 पन्नों की जांच रिपोर्ट के मुताबिक रात के वक़्त गश्त कर रहे सुरक्षाबलों ने घबराहट में गोलियां चलाईं, गांव वालों ने अपनी तरफ से गोलियां नहीं चलाई थी. यही नहीं अगली सुबह भी एक ग्रामीण को गोली मारी गई. जब सुधा भारद्वाज सवाल उठा रही थीं तब तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम इस मुठभेड़ को फ़र्ज़ी मानने को तैयार नहीं थे लेकिन तबके छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल अपनी यूपीए सरकार और गृहमंत्री पी चिदंबरम के ख़िलाफ़ खड़े हो गए थे.