उत्तराखंड @ 25 साल: क्यों हाशिए पर चली गई उत्तराखंड आंदोलन वाली UKD

आज यूकेडी के पास विधानसभा में कोई सीट नहीं है, पर पार्टी अब भी अपने मूल मुद्दों, स्थायी राजधानी, मूलनिवास कानून, पलायन, शिक्षा और रोजगार को लेकर सक्रिय है.

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  • उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना 1979 में हुई थी, जिसने राज्य गठन का सपना जनता के बीच पहुंचाया था
  • उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना 1979 में हुई थी, जब राज्य आंदोलन की मांग संगठित रूप ले रही थी
  • आज यूकेडी के पास कोई विधानसभा सीट नहीं है, लेकिन वह स्थायी राजधानी, रोजगार और मूलनिवास कानून पर सक्रिय है
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देहरादून:

उत्तराखंड राज्य गठन के 25 साल पूरे हो रहे हैं. इस मौके पर राज्य आंदोलन की जननी कही जाने वाली राजनीतिक पार्टी 'उत्तराखंड क्रांति दल' (यूकेडी) फिर से अपने अस्तित्व और भूमिका पर मंथन कर रही है. पार्टी का मानना है कि राज्य के गठन के पीछे जिन मूल मुद्दों का सपना था, वे आज भी अधूरे हैं. यूकेडी अब एक बार फिर उसी जनाधार को जगाने और नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश में है.

जिस दल ने देखा था अलग राज्य का सपना

उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना 1979 में हुई थी, जब राज्य आंदोलन की मांग संगठित रूप ले रही थी. पहाड़ों की भौगोलिक और सामाजिक उपेक्षा के खिलाफ यह पहला क्षेत्रीय राजनीतिक मंच बना जिसने अलग उत्तराखंड राज्य का सपना जनता के बीच पहुंचाया. 2000 में राज्य गठन के बाद यूकेडी को सत्ता में अपनी जगह बनाने का अवसर मिला, लेकिन आंतरिक मतभेदों और नेतृत्व संकट के कारण दल कमजोर पड़ा.

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सियासी सीन में यूकेडी आखिर हाशिए क्यों है?

आज यूकेडी के पास विधानसभा में कोई सीट नहीं है, पर पार्टी अब भी अपने मूल मुद्दों, स्थायी राजधानी, मूलनिवास कानून, पलायन, शिक्षा और रोजगार को लेकर सक्रिय है. उत्तराखंड के सियासी सीन में यूकेडी आखिर हाशिए क्यों है? पार्टी प्रवक्ता और देहरादून महानगर के महामंत्री अंकेश भंडारी मानते हैं कि सत्ता तक पहुंचने का रास्ता फिर से जनता के बीच से होकर ही जाएगा. क्या पार्टी अपने मूल एजेंडे से भटक गई है, भंडारी इस पर कहते हैं.

'यूकेडी तमाम मुद्दों को लेकर सड़कों पर आंदोलित

'यूकेडी आज भी उन तमाम मुद्दों को लेकर सड़कों पर आंदोलित है जैसे कि शुरुआती दौर में थी. जब राज्य की धारणा थी, तब उत्तराखंड क्रांति दल ने मूलभूत समस्याओं को रखा था. चाहे वो भू-कानून हो, स्थायी राजधानी हो, रोजगार या शिक्षा और पलायन जैसे तमाम बिंदु हों. इन्हीं मुद्दों को लेकर उत्तराखंड की नींव रखी गई थी. उत्तर प्रदेश का पहाड़ी इलाका विकास की अवधारणा में पिछड़ रहा था. लखनऊ से उस विकास की योजना पूरी तरह लागू नहीं हो पा रही थी. इसलिए अलग राज्य की मांग रखी गई.'

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उत्तराखंड के लोगों में क्या नाराजगी

भंडारी के मुताबिक आज जनता में थोड़ी नाराजगी है. नाराजगी इसलिए भी है कि राज्य बनने के बाद पार्टी के कुछ विधायक तो आए, लेकिन वो संगठित नहीं रह पाए. जनता का नाराज होना स्वाभाविक था. जिस दल ने राज्य बनाया, उसे सत्ता तक पहुंचना था लेकिन हम वहां तक नहीं पहुंच सके. आंतरिक मतभेदों और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने संगठन को कमजोर किया. फिर भी जनता का भावनात्मक लगाव आज भी उत्तराखंड क्रांति दल के साथ बना हुआ है. धीरे-धीरे नाराजगी खत्म हो रही है और लोगों को यह समझ आने लगा है कि अगर हमारे पास क्षेत्रीय दल होता तो हमारे अधिकार सुरक्षित रहते.

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छोटा से प्रदेश पर 2 राजधानियों का बोझ

वह कहते हैं पच्चीस वर्षों में आज भी हमारे पास स्थायी राजधानी नहीं है. छोटा सा प्रदेश दो राजधानियों का बोझ झेल रहा है. मूल निवासी युवाओं को रोजगार में भी प्राथमिकता नहीं मिल रही है. बाहर के लोगों को अधिक अवसर मिल रहे हैं. इन सब मुद्दों को लेकर आज उत्तराखंड क्रांति दल पहले से ज्यादा सक्रिय है. हाल के विशेष सत्र में जो मुद्दे उठे, वो वही हैं जिन पर यूकेडी शुरू से आवाज उठाती रही है. यही कारण है कि अब राष्ट्रीय दलों को भी डर है कि यूकेडी फिर से एक प्रभावशाली रूप में लौट सकती है.

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क्या यूकेडी फिर से जन आंदोलन के रास्ते पर

क्या यूकेडी फिर से जन आंदोलन के रास्ते पर लौटेगी के सवाल पर भंडारी कहते हैं कि सत्ता का रास्ता जन आंदोलन से ही शुरू होता है. भारतीय जनता पार्टी का उदाहरण सबके सामने है. 1990 के दशक में जब आडवाणी जी ने रथ यात्रा शुरू की, तो वही से उसका उदय हुआ था. हमें भी वही करना पड़ेगा. जनता के बीच जाना होगा, उनकी समस्याएं सुननी होंगी, समाधान के रास्ते तलाशने होंगे. जैसे उत्तराखंड राज्य की नींव जनता के संघर्ष से रखी गई थी, वैसे ही अब जब पार्टी जनता के बीच जाएगी, उनकी बात करेगी, तो जनता खुद जुड़ जाएगी और सत्ता का रास्ता भी वहीं से निकलेगा.

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