उपचुनाव में BJP की सफलता से योगी और मजबूत, हिन्दू एकता के मंत्र से हासिल की जीत

मीरापुर विधानसभा सीट पर सपा ने मुस्लिमों की अच्छी खासी मौजूदगी के बावजूद हार का सामना किया. मीरापुर सीट पर सपा के पूर्व सांसद कादिर राणा की बहु सुम्बुल राणा को राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रत्याशी मिथिलेश को हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा.

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लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में विधानसभा की नौ सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सीत सीट पर जीत ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक स्थिति को और मजबूत बना दिया. वहीं कांग्रेस के चुनाव न लड़ने और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के फिर से खराब प्रदर्शन ने समाजवादी पार्टी (सपा) को एक बार फिर राज्य में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में स्थापित कर दिया.

राज्य में उपचुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था क्योंकि इस वर्ष लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया' गठबंधन ने सत्तारूढ़ गठबंधन को तगड़ा झटका दिया था.

भाजपा गठबंधन ने विधानसभा की जिन सात सीट पर जीत हासिल की, उनपर जीत हासिल करने वाले उम्मीदवार इस बात पर एकमत थे कि आदित्यनाथ और (हिंदू) एकता के उनके आह्वान ने जीत में बड़ी भूमिका निभाई. निर्वाचन आयोग के नतीजों की आधिकारिक पुष्टि किए जाने से पहले ही आत्मविश्वास से लबरेज आदित्यनाथ ने शनिवार अपराह्न साढ़े तीन बजे लखनऊ में पार्टी कार्यालय पहुंचकर ‘एक हैं तो सेफ हैं, बंटेंगे तो कटेंगे' के महत्व को दोहराया.

भाजपा ने अगस्त में पहली बार यह नारा दिया था लेकिन उपचुनाव में इसे बखूबी इस्तेमाल किया गया. भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर संपर्क अभियान में ‘हिंदू एकता' को समझाते हुए माहौल को और मजबूत किया.

भाजपा के एक नेता ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “संवाद के दौरान हमने लोगों से जाति के आधार पर न बंटने और एकजुट होकर मतदान करने का आग्रह किया. हमारे नेताओं द्वारा लगाए गए ‘बटेंगे तो कटेंगे' और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे' के नारों ने संदेश को जल्दी से घर-घर पहुंचाने में मदद की.”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में मुस्लिम बहुल कुंदरकी विधानसभा सीट भाजपा की हिंदू एकता के लिए एक परीक्षा थी, क्योंकि 1993 के बाद से पार्टी यह सीट नहीं जीत सकी थी.

उपचुनावों में भाजपा का प्रचार अभियान मुख्यतः “राम और राष्ट्र” के इर्द-गिर्द घूमता रहा और आदित्यनाथ ने कार्यालय में अपने संक्षिप्त संवाद के दौरान कुंदरकी में भाजपा की जीत को “राष्ट्रवाद” की जीत करार दिया.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “इस सीट (कुंदरकी) पर 1993 के बाद से भाजपा की यह पहली जीत इसलिए संभव हुई क्योंकि लोगों ने एकजुट होकर भाजपा का समर्थन किया जबकि विपक्ष की जातिवादी चाल धरी की धरी रह गई.”

कुंदरकी से भाजपा नेता ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, “वहां 11 मुस्लिम उम्मीदवारों की मौजूदगी ने भी विपक्षी सपा की मदद नहीं की. इसलिए जब उनका वोट बंटा तब हम अपना वोट सुरक्षित रख पाए और इस चतुराई से तैयार किए गए एकता के नारे ने इस जीत में बड़ी भूमिका निभाई.”

कुंदरकी से जीत हासिल करने वाले रामवीर सिंह ने यहां तक दावा किया कि मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिया. उन्होंने कहा, “मुसलमान मुझ पर भरोसा करते हैं और यह बात मुझे उनसे मिले भारी वोटों से पता चलती है. मैं उनका भरोसा बरकरार रखूंगा.”

मीरापुर विधानसभा सीट पर सपा ने मुस्लिमों की अच्छी खासी मौजूदगी के बावजूद हार का सामना किया. मीरापुर सीट पर सपा के पूर्व सांसद कादिर राणा की बहु सुम्बुल राणा को राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रत्याशी मिथिलेश को हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा.

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इस सीट पर भी मुस्लिम मतों के बंटवारे का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ा क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के एक उम्मीदवार सहित दो मुस्लिम उम्मीदवारों को 41000 वोट मिले, जो भाजपा की जीत के अंतर से भी ज्यादा है. अंबेडकरनगर की कटेहरी विधानसभा सीट पर 1991 के बाद भाजपा की यह पहली जीत थी.यह ऐसी सीट थी, जिसकी जिम्मेदारी आदित्यनाथ ने संभाली थी और इसलिए इस जीत का भी अपना महत्व था.

उपचुनाव में जीत का आत्मविश्वास आदित्यनाथ की बातचीत में भी दिखा क्योंकि उन्होंने कानपुर देहात की सीसामऊ सीट और मैनपुरी के करहल विधानसभा क्षेत्र में सपा की जीत के कम अंतर का जिक्र किया.

आदित्यनाथ ने संवाददाताओं से कहा, “अगर आप देखें, तो सीसामऊ में सपा की जीत का अंतर लगभग 8000 वोट है, जो 2022 में 12000 वोट की जीत से काफी कम है. करहल सीट पर इस बार जीत का अंतर 14000 मत है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में 67000 था.”उन्होंने कहा, “अगली बार जैसा कि केशव (उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य) ने कहा, हम करहल भी जीतेंगे.”

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प्रदेश की लगभग सभी नौ सीट पर उपचुनाव में सीधा मुकाबला भाजपा बनाम सपा काथा, जिसका मतलब यह है कि सपा का विपक्षी दल के रूप में दबदबा बना रहेगा.इसके अलावा, कांग्रेस की अनुपस्थिति और बसपा के फीके प्रचार अभियान के कारण यह चुनाव दो दलों के बीच सिमटकर रह गया.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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