एक जज का कर्तव्य हर आंख से हर आंसू पोंछना है...  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा, जान लीजिए

सुनवाई के दौरान आवेदक के वकील ने कोर्ट में कहा कि क्योंकि आवेदक और पीड़िता वैवाहिक संबंध (Matrimonial Relationship) में एक साथ रह रहे है. इसलिए इस मामले की कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है.

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प्रयागराज:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित पीड़िता से शादी करने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ किडनैपिंग और पॉक्सो मामले में दर्ज एफआईआर पर ट्रायल कोर्ट में चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और चिंता व्यक्त करते हुए तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि एक पत्नी को पति के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर करना 'उत्पीड़न' है. सिंगल बेंच ने कहा कि एक जज की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए जब उसके कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देने वाला व्यक्ति जिसके पास लड़ने के लिए कोई संसाधन न हो? 

हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका केवल मात्र दर्शक या मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती बल्कि उसे न्यायिक प्रक्रिया में एक सक्रिय भागीदार बनना होगा. न्यायाधीशों को सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के प्रति सजग रहना होगा ताकि हर आंख से हर आंसू पोंछा जा सकें. कोर्ट ने कहा कि एक विवाहित जोड़े को केवल एक प्रतिकूल गवाही दर्ज करने के लिए और मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर करना भाग्य की विडंबना और उत्पीड़न का साधन होगा. जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की सिंगल बेंच ने आवेदक अश्वनी आनंद की याचिका को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द कर दिया.

मामले के अनुसार आवेदक अश्वनी आनंद ने बीएनएसएस की धारा 528 के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कोर्ट से गुहार लगाई कि उसके खिलाफ ट्रायल कोर्ट में 30 सितंबर 2024 को दाखिल चार्जशीट, 8 अप्रैल 2025 के संज्ञान आदेश समेत सम्पूर्ण कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए. याची के खिलाफ 2024 में फर्रुखाबाद के राजेपुर थाने में आईपीसी की धारा 363, 366 और पॉक्सो एक्ट की धारा में एफआईआर दर्ज की गई थी। पीड़िता के पिता ने आवेदक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. 

एफआईआर में कहा गया कि 23 अप्रैल 2024 को आवेदक अश्वनी आनंद द्वारा उसकी पुत्री का अपहरण कर लिया गया था. पुलिस द्वारा मामले की जांच की गई जिसके बाद 30 सितंबर 2024 को ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। इसके बाद 8 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने संज्ञान लिया. कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में विपक्षी पक्ष संख्या चार यानी कथित पीड़िता के हलफनामे को भी लगाया गया. हलफनामे में कहा गया जैसा कि रिकॉर्ड से भी परिलक्षित होता है कि 16 अगस्त 2024 को विपक्षी पक्ष संख्या 4 का बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया था, जिसमें उसने एफआईआर में लगाए गए आरोपों से इनकार किया और कहा कि 23 अप्रैल 2024 को वह खुद बिना किसी को बताए अपना घर छोड़कर चली गई थी. 

पीड़िता गाजियाबाद के एक गर्ल्स पीजी में रही और आवेदक के साथ नहीं रही. उसने अपने और आवेदक के बीच किसी भी शारीरिक संबंध से भी इनकार किया. सीआरपीसी की धारा 164 जो अब बीएनएसएस की धारा 183 के तहत पीड़िता ने अपनी उम्र 20 वर्ष बताई। हालांकि पीड़िता के आधार कार्ड के अनुसार वो 17 वर्ष  दिखाई देती है. पीड़िता की मां ने जांच अधिकारी के समक्ष यह भी बयान दिया कि उसकी बेटी और आवेदक के बीच घनिष्ठता के कारण वो अपनी बेटी के साथ किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रखना चाहती. यह भी स्वीकार किया गया कि आवेदक और कथित पीड़िता के बीच 23 जून 2025 को शादी हुई और इसे 24 जून 2025 को उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत रजिस्टर्ड किया गया है. इसमें भी कोई विवाद नहीं है कि विवाह की तारीख पर पीड़िता बालिग हो चुकी है.

सुनवाई के दौरान आवेदक के वकील ने कोर्ट में कहा कि क्योंकि आवेदक और पीड़िता वैवाहिक संबंध (Matrimonial Relationship) में एक साथ रह रहे है. इसलिए इस मामले की कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है. विशेषकर जब कथित पीड़िता ने धारा 528 बीएनएस के तहत आवेदन के समर्थन में अपना हलफनामा दायर किया है। हालांकि सरकार की तरफ से इसका विरोध किया गया. 

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कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि विवाह संपन्न होने के संबंध में कोई विवाद नहीं पाया गया और उस समय पीड़िता ने बालिग हो गई थी. कोर्ट ने अपने 11 पन्नों के फैसले में कहा कि न्यायपालिका हमारे संविधान का एक बहुत ही मज़बूत स्तंभ है और किसी भी स्तर पर कार्यरत न्यायालयों का उद्देश्य चाहे वह ज़िला न्यायालय हो, हाईकोर्ट हो या फिर सुप्रीम कोर्ट हो न्याय प्रदान करना है. इससे ज़्यादा कुछ नहीं, इससे कम भी नहीं. 

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भी कई फैसलों का हवाल दिया। कोर्ट ने माना कि किसी भी कानून का उद्देश्य समाज के लिए समस्याएं पैदा करना नहीं बल्कि उनका समाधान ढूंढना होता है. और जब भी सीआरपीसी की धारा 482 या बीएनएसएस की धारा 528 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करने का अवसर आए या कानून के किसी अन्य प्रावधान के तहत, जहां विवेकाधिकार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तो ऐसी शक्ति का प्रयोग इस प्रकार किया जाना चाहिए कि हम अपने संविधान निर्माताओं द्वारा हमें सौंपे गए पवित्र दायित्व का निर्वहन कर सकें. 

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जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की कोर्ट ने इस पर ज़ोर दिया कि एक जज का "पवित्र कर्तव्य" हर आंख से हर आंसू पोंछना है. कोर्ट ने कहा कि यह देखकर आश्चर्य होगा कि न्यायिक प्रणाली का बहुमूल्य समय और संसाधन ऐसे उपाय अपनाने में क्यों बर्बाद किए जाएं जिसका परिणाम एक ही होना तय है यानी अभियुक्त का दोषमुक्त या फिर बरी होना. 

कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहाँ बीएनएसएस की धारा 528 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए नहीं तो यह कोर्ट न्याय के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए और आदेश पारित करने के लिए विधायिका द्वारा सौंपे गए अपने कर्तव्य में विफल हो जाएगा. कोर्ट ने आवेदक को राहत देते हुए उसकी याचिका को स्वीकार के लिया और मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया.

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