तो मैं उनका समर्थन करता...कथावाचक बदसलूकी मामले में नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद

आजाद ने मंदिरों में सभी वर्गों के प्रवेश के लिए बाबा साहेब के आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि पुजारी बनने का अधिकार महज एक वर्ग तक सीमित नहीं होना चाहिए.

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  • देश में कथावाचकों के साथ बदसलूकी पर सियासी बहस तेज हुई है
  • चंद्रशेखर आजाद ने जाति के आधार पर अपमान को गलत बताया
  • उन्होंने सभी वर्गों के मंदिर में प्रवेश का अधिकार मांगा
  • आजाद ने संविधान को सभी को समान अवसर देने वाला बताया
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लखनऊ:

देश में कथावाचकों के साथ हुई बदसलूकी के मामले पर सियासत गरमाई हुई है. साधु-संतों से लेकर राजनीतिक पार्टियां तक इस मुद्दे पर जमकर एक-दूसरे को घेर रहे हैं. अब इस मामले पर आजाद समाज पार्टी के नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि चाहे इटावा के यादव समाज के कथा वाचक हों, मध्य प्रदेश के पटेल समाज की महिला कथा वाचक हों, या साहू समाज के कथा वाचक, किसी का भी जाति के आधार पर अपमानित करना गलत है. कोई भी धर्म इसकी इजाजत नहीं देता. मनुस्मृति के दौर में शूद्रों को मंत्र उच्चारण या सुनने की अनुमति नहीं थी, और उन्हें सजा दी जाती थी. मगर बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान ने इन प्रथाओं को खत्म किया.

मंदिरों में समानता के लिए आंदोलन की जरूरत

आजाद ने मंदिरों में सभी वर्गों के प्रवेश के लिए बाबा साहेब के आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि पुजारी बनने का अधिकार महज एक वर्ग तक सीमित नहीं होना चाहिए. साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि पुजारी बनने का अधिकार केवल एक विशेष वर्ग के पास क्यों? यह संविधान के खिलाफ है. महिलाओं और अन्य समाजों को भी यह अधिकार मिलना चाहिए. इसके लिए देश में नया आंदोलन चलाने की जरूरत है.

संविधान सभी को समान अवसर देता है, उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय संविधान सभी को समान अवसर प्रदान करता है. मनुस्मृति में एक वर्ग को ही अध्यापक, व्यापारी या सुरक्षा का काम करने की अनुमति थी, लेकिन संविधान कहता है कि ज्ञान और मेहनत के आधार पर कोई भी व्यक्ति कोई भी काम कर सकता है. आजाद ने कहा कि वह किसी भी वर्ग के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि समता के मार्ग पर हैं.

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पाखंडवाद और सामाजिक सुधार पर टिप्पणी

चंद्रशेखर ने कथा वाचकों के काम पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर वे बुद्ध, गुरु रविदास, फुले, पेरियार या साहू जी जैसे समाज सुधारकों की बात करते, तो वह उनका समर्थन करते. लेकिन पाखंडवाद को बढ़ावा देने वाले कार्यों का समर्थन नहीं किया जा सकता. जाति को काम से ऊपर रखने की मानसिकता गलत है. जो लोग आजादी के 75 साल बाद भी इस सोच से बाहर नहीं निकल पाए, उन्हें फैसला करना होगा.

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भेदभाव देशद्रोह की श्रेणी में

आजाद ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान ऊंच-नीच और भेदभाव को स्वीकार नहीं करता. जो लोग भेदभाव की बात करते हैं, वे न केवल संविधान का अपमान करते हैं, बल्कि उस क्रांति का भी अपमान करते हैं, जिसने देश को आजादी दिलाई. यह देशद्रोह की श्रेणी में आता है. उन्होंने लोगों से ऐसी मानसिकता से दूर रहने की अपील की.

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