- इलाहाबाद HC ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह की गैंगस्टर एक्ट मामले में अपील को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया
- कोर्ट ने कहा कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध केवल राज्य और समाज के खिलाफ होता है, व्यक्तिगत नहीं माना जाता
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल राज्य के पास असामाजिक गतिविधियों को रोकने और निवारक कदम उठाने का अधिकार है
इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूर्व सांसद धनंजय सिंह को एक बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने 2002 के जानलेवा हमले से जुड़े गैंगस्टर एक्ट मामले में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को सही नहीं मानते हुए खारिज कर दिया है. वाराणसी के पहले 'ओपन शूटआउट' के रूप में चर्चित नदेसर टकसाल शूटआउट से जुड़े इस मामले में, कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि असामाजिक गतिविधियों को रोकना राज्य का पवित्र दायित्व है, और कोई भी व्यक्ति राज्य के कार्य को हड़पने का हकदार नहीं है.
क्या था मामला और कोर्ट की टिप्पणी?
पूर्व सांसद (तत्कालीन रारी विधायक) धनंजय सिंह ने यूपी गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 के तहत चार आरोपियों को वाराणसी के स्पेशल जज, गैंगस्टर एक्ट द्वारा बरी किए जाने के आदेश (29 अगस्त 2025) को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
जस्टिस लक्ष्मी कांत शुक्ला की सिंगल बेंच ने धनंजय सिंह की क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध केवल राज्य और समाज के खिलाफ अपराध है, किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं.
कोर्ट ने माना कि भले ही अपीलकर्ता मूल मामले में घायल और शिकायतकर्ता हो, वह सीआरपीसी की धारा 2(wa) या बीएनएसएस की धारा 2(1)(y) में परिभाषित 'पीड़ित' शब्द के दायरे में नहीं आता है, जिससे उसे इस मामले में अपील दायर करने का अधिकार प्राप्त हो.
कोर्ट ने कहा, "निवारक उपाय अपनाने का कर्तव्य विशेष रूप से 'राज्य के अधिनियम' के दायरे में आता है और ऐसी कार्रवाई केवल राज्य द्वारा ही की जानी चाहिए. किसी को भी राज्य के जूते में अपने पैर रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती."
क्या था 2002 का नदेसर टकसाल शूटआउट?
यह मामला लगभग 23 साल पुराना है. तारीख थी 4 अक्तूबर 2002. वाराणसी के कैंट थाना क्षेत्र के नदेसर स्थित टकसाल सिनेमा हॉल के पास तत्कालीन विधायक धनंजय सिंह की गाड़ी पर जान से मारने की नीयत से अंधाधुंध फायरिंग की गई थी, जिसमें AK-47 जैसे ऑटोमेटिक हथियारों के इस्तेमाल की बात सामने आई थी. यह वाराणसी का पहला 'ओपन शूटआउट' था.
इस घटना में धनंजय सिंह, उनके गनर और ड्राइवर समेत अन्य लोग घायल हुए थे. उन्होंने बाहुबली विधायक अभय सिंह, एमएलसी विनीत सिंह, संदीप सिंह, संजय सिंह, विनोद सिंह और सतेंद्र सिंह उर्फ बबलू समेत अन्य अज्ञात के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था.
ट्रायल कोर्ट का फैसला
29 अगस्त 2025 को वाराणसी के स्पेशल जज, गैंगस्टर एक्ट सुशील कुमार खरवार ने साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए चारों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया था, जिसे धनंजय सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
पीड़ित की परिभाषा पर केंद्रित थी बहस
सुनवाई के दौरान धनंजय सिंह के वकीलों ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता मूल मामले में घायल और शिकायतकर्ता है, इसलिए वह पीड़ित की परिभाषा में आता है और उसे अपील दायर करने का अधिकार है, जैसा कि बीएनएसएस की धारा 413 के तहत दिया गया है. हालांकि, राज्य सरकार की तरफ से एजीए ने तर्क दिया कि गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध समाज के खिलाफ है, और यदि ऐसे प्रत्येक मामले के शिकायतकर्ता को अपील दायर करने की अनुमति दी जाती है, तो कार्यवाही की बहुलता बढ़ जाएगी.
कोर्ट ने राज्य के तर्कों को स्वीकार करते हुए माना कि गैंगस्टर एक्ट जैसे मामलों में 'पीड़ित' के रूप में व्यक्तिगत शिकायतकर्ता की अपील पोषणीय नहीं है, और अंततः क्रिमिनल अपील को खारिज कर दिया गया.













