अतीक अहमद की हत्‍या: यूपी नगर निकाय चुनाव पर असर डालने वाला नया फैक्टर, किसे फायदा और किसे नुकसान?

वाराणसी के नगर निगम चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण बढ़ने के आसार, समाजवादी पार्टी को हो सकता है नुकसान

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अतीक अहमद की हत्या का मामला यूपी के निकाय चुनाव में एक मुद्दा बन गया है (फाइल फोटो).
वाराणसी:

उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे नगर निगम चुनावों की तारीख नजदीक आ रही है उम्‍मीदवारों के जीत के दावे और भी मजबूत होते जा रहे हैं. मतदाता उनके दावों को अपनी कसौटी पर कस रहा है. जैसा कि हर चुनाव में होता है.. धर्म, जाति, समुदाय, क्षेत्र, विकास जैसे फैक्‍टर नतीजों को प्रभावित करते हैं. पर इस बार के चुनावों में एक नया फैक्टर है माफिया डान अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस क‍स्‍टडी में हत्‍या, जो कि अपना असर दिखा रहा है. बनारस के मेयर चुनाव की बात करें तो यहां भी अतीक अहमद का मर्डर वोटों के ध्रुवीकरण में एक अहम रोल प्‍ले कर रहा है. इसका सीधा असर बीजेपी के पक्ष में सकारात्‍मक है तो दूसरी तरफ यही फैक्‍टर मुसलमान मतदाताओ को समाजवादी पार्टी से दूर ले जाता दिख रहा है. इस फैक्टर को इन मतदाताओं के कांग्रेस से जुड़ाव के रूप में देखा जा रहा है.

योगी जी संदेश देने में हुए है कामयाब
पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते बनारस की मेयर सीट पर देश भर की निगाहें हैं. बीजेपी के टिकट पर हाई कमान की पसंद के रूप में आए अशोक तिवारी यहां अपना भाग्‍य आजमा रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने अपने पुराने कार्यकर्ता और सभासद रह चुके ओपी सिंह पर दांव खेला है. कांग्रेस की ओर से जेंटलमैन की छवि वाले समर्पित नेता अनिल श्रीवास्‍तव इन दोनों के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. और भी पार्टियां हैं लेकिन मुख्‍य मुकाबला इन्‍हीं तीनों के बीच है. किसी भी चुनाव में बनारस बीजेपी का अभेद्य किला रहा है. नगर निगम चुनाव की बात करें तो 1995 में जब से बनारस नगर महापालिका से नगर निगम बना तब से ही मेयर की कुर्सी पर कमल का फूल ही खिला है. इस बार भी बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता अपनी जीत को लेकर खासे आश्‍वस्‍त हैं.

हिन्‍दू मतदाता बीजेपी के साथ पहले भी था, इस बार भी है. इसके साथ यहां अतीक अहमद मर्डर फैक्‍टर हिन्‍दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के समीकरण को और भी बल दे रहा है. पर इसी के दूसरे पक्ष पर भी गौर करें तो मुसलमान मतदाता, जो कि अभी तक समाजवादी पार्टी के साथ था, अब कांग्रेस की तरफ जा सकता है. 

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पत्रकार और सोशल एक्‍टीविस्‍ट अतीक अंसारी कहते हैं कि, ''इसमें कोई संदेह नहीं है कि अतीक अहमद अपराधी था और उसका पुलिस कस्‍टडी में मर्डर हुआ. कहते हैं कि इसका सीधा सम्‍बंध उसके मारे जाने की प्रक्रिया, उसकी नीयत से है. जब मारने की नीयत ये हो कि जब हम एक वर्ग  विशेष के वोटर यानि की हिन्‍दू वोटर को ये संदेश देने में कामयाब हो जाएं कि देखो हमने कर दिखाया, यह साफ है कि यह मैसेज दिया गया. घटना की टाइमिंग भी बतलाती है और प्रक्रिया भी. योगी जी महाराज अपने वोटर्स को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि देखो मैं हूं जो सबक सिखा सकता हूं. मैं ही हूं जो मिट्टी में मिला सकता हूं. ये नरेटिव तैयार हुआ तो काउंटर रिएक्शन भी होगा. मुसलमान सोचेगा कि अखिलेश यादव ने इस पर क्‍या किया. अखिलेश यादव के लिए धर्म संकट यह है कि उगले तो कोढ़ी और निगले तो अंधा. अतीक अपराधी था इस पर तो अखिलेश बहस नहीं कर सकते हैं लेकिन उसके मारे जाने की प्रक्रिया पर बहस करके मुसलमानों को थोड़ा संतुष्‍ट कर सकते हैं, उनकी भावनाओं को थोड़ी राहत दे सकते हैं.''

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एग्रीकल्‍चर मशीनरी के व्‍यापारी घनश्‍याम मिश्रा अतीक अहमद के मर्डर को पूरे भयमुक्‍त, अपराधी मुक्‍त प्रदेश का नजरिया दे रहे हैं. कहते हैं कि ''प्रदेश में व्‍यापार का बेहतर वातावरण तैयार हुआ है. इसका सीधा श्रेय मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को जाता है. बात चुनावों की करें तो बीजेपी से अच्‍छा कोई हो ही नहीं सकता.''

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अखिलेश यादव खामोश बैठे
यह आम धारणा है कि मुसलमान मतदाता उसी पार्टी को वोट करता है जिसमें बीजेपी को हरा सकने का माद्दा हो. मतों का ध्रुवीकरण सीधे तौर पर धर्म पर होता है. अब चुनावों के दौरान कोई घटना हो जाए तो मतों के ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज और गहरी हो जाती है. मुसलमान मतदाता यह मान रहा है कि उसके साथ बहुत जुल्‍म हो रहा है और कोई भी इस समय उसके साथ नहीं है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मुसलमानों को लेकर उतने संजीदा नहीं रहे जितने पहले हुआ करते थे. अतीक अहमद मर्डर केस में उनकी तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया का न आना इसकी वजह है. 

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बनारसी साड़ी कारोबार से जुड़े रमजान अली अंसारी कहते हैं-  ''अखलियत पर जो जुल्‍म हो रहा है संविधान पर हमला हो रहा है उस पर अखिलेश खामोश हैं. सिर्फ एसी में बैठने से काम नहीं होगा सड़क पर उतरना होगा. जिस तरीके से अखलियत पर हमला हो रहा है उसके खिलाफ अखिलेश चुप हैं. जिस आदमी को अखलियत के लोगों ने चाहा, वोट दिया उसके लिए ये कुछ नहीं कर रहे हैं. दूसरी तरफ राहुल गांधी जिसे अखलियत के लोगों ने काफी समय से वोट नहीं दिया वो संविधान और देश बचाने के लिए जुल्‍म के खिलाफ संघर्ष कर रहा है. इस बार हम राहुल गांधी के साथ हैं.''

बुनकरी पेशे से जुड़े जमीर अहमद भी समाजवादी पार्टी के मु‍खिया अखिलेश से बड़े नाराज हैं. उनकी नाराजगी का कारण मुसलमानों के साथ हो रहे कथित अत्‍याचार और उस पर उनकी चुप्‍पी है. कहते हैं कि, ''मुसलमानों पर अत्‍याचार हो रहा है और वे पूर्व मुख्‍यमंत्री होकर भी कुछ नहीं बोल रहे हैं.'' वे बड़ी साफगोई से कहते हैं कि, ''बीजेपी मुसलमानों पर अत्‍याचार कर रही है. इसलिए उसे वोट देने का तो सवाल ही नहीं है. लेकिन उनका वोट इस बार कांग्रेस के पक्ष में जाएगा.'' जमीर को लगता है कि राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी लड़ रही है. जिसके कारण न सिर्फ उनका बल्कि उनकी बिरादरी के बहुत से लोगों का वोट कांग्रेस को जा रहा है.

बुनकर नेता हाजी ओकास अंसारी कहते हैं कि, ''बुनकर बिरादरी का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया है. अखिलेश यादव जी ने मुसलमानों को अपने आप से दूर कर दिया है. न तो उनके चुनावी घोषणा पत्र  में मुसलमानों के लिए कुछ है, न पार्टी पदाधिकारियों की लिस्‍ट में ही मुसलमान नेताओं का नाम है. जब आप हमारे नेताओं से दूरी बना रहे हैं तो हमारे लिए क्‍या करेंगे. न तो वे मुसलमानों के लिए कुछ कर रहे है और न ही उनके साथ जो घटनाएं हो रहे हैं उस पर ही कुछ बोल रहे हैं.''

जीत का अंतर बढ़ाना चाहती है बीजेपी 
सन 2017 में बनारस में हुए नगर निगम चुनावों के नतीजों पर गौर करें तो भाजपा की मृदुला जायसवाल 192188 वोटों के साथ विजयी हुई थीं. दूसरे नंबर पर कांग्रेस की शालिनी यादव रहीं थीं. उन्‍हें 113345 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की साधना गुप्‍ता रहीं थीं जिन्‍हें 99272 वोट मिले थे. इस तरह देखा जाए तो पिछली बार के मेयर चुनाव में जीत मृदुला और शालिनी के बीच जीत और हार का अंतर 78843 वोटों का था. बीजेपी इस बार इस अंतर को बढ़ाने की कोशिश में है. अगर ऐसा नहीं होता है तो यह बनारस से लखनऊ या फिर दिल्‍ली के लिए अच्‍छा संदेश नही होगा. कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के किसी भी प्रत्‍याशी की मजबूती बीजेपी के इस मंसूबे पर पानी फेर सकती है. ऐसे में मुसलमान मतदाताओं की अहमियत बढ़ती दिख रही है. बीजेपी को कायस्‍थ मतदाता कांग्रेस में जाता दिख रहा है जिनकी संख्‍या चुनाव को प्रभावित कर सकती है. कायस्‍थ मतदाता अगर कांग्रेस के साथ जाता है तो यह हिन्‍दू वोटों का ही विभाजन होगा. कांग्रेस का अपना परंपरागत वोट उसके साथ है ही.

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