इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच तलाक (Allahabad High Court On Divorce) के एक मामले में सुनवाई के दौरान कड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ झूठा क्रिमिनल केस दर्ज कराना पति के साथ क्रूरता है. झूठा मुकदमा दर्ज करने से पति के दिमाग में उसके खुद की और परिवार की सुरक्षा को लेकर आशंका पैदा होना स्वाभाविक है, इसलिए इस तरह का झूठा केस हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) की धारा 13 के तहत क्रूरता साबित करने के लिए पर्याप्त आधार है. यहआदेश जस्टिस सैमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की डिवीजन बेंच ने कानपुर नगर की तृप्ति सिंह की फर्स्ट अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया.
पति ने मांगा तलाक तो दर्ज कराया दहेज का मुकदमा
तृप्ति सिंह की शादी 17अप्रैल 2002 में हुई थी. शादी के बाद उनके एक बेटा भी हुआ. उसने 2006 में पति को छोड़ दिया. इसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट, कानपुर में तलाक का मुकदमा दाखिल किया. पत्नी ने पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया. इन आरोपों की वजह से पति और उसके परिवार के सदस्यों को जेल जाना पड़ा और वह बाद में वे लोग जमानत पर छूट गए. कानपुर नगर के फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री दे दी, जिसे पत्नी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
दहेज का मुकदमा तब ही क्यों?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा की पत्नी ने शादी के 6 साल बाद दहेज की मांग का मुकदमा दर्ज कराया, वो भी तब जब पति ने तलाक की अर्जी दाखिल कर दी. हालांकि वह अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाई और उसके पति और परिवार के लोग बरी हो गए. लेकिन इन आरोपों की वजह से पति और उसके रिश्तेदारों को जेल जाना पड़ा, जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा.
अदालत ने कहा कि यह तथ्य क्रूरता को साबित करने के लिए काफी है. दोनों पक्ष पढ़े लिखे है. भविष्य में भी ऐसा हो सकता है, इसलिए समझौते का कोई आधार नहीं है. कोर्ट ने पत्नी की फर्स्ट अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया.
तलाक पर हाई कोर्ट का रुख
हाईकोर्ट ने 2023 के सुप्रीम कोर्ट के रूपा सोनी बनाम कमलनारायण सोनी केस का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिपरकता का एक तत्व लागू किया जाना चाहिए. हालांकि क्रूरता का गठन वस्तुपरक है, इसलिए हो सकता है कि किसी एक मामले में एक महिला के लिए जो क्रूरता है वह पुरुष के लिए क्रूरता नहीं हो सकती. जब हम किसी ऐसे मामले की जांच करते है जिसमें पत्नी तलाक चाहती है तो अपेक्षाकृत अधिक लचीले और व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत होती है.
1955 के अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत दोनों पक्षों के कहने पर तलाक देने के लिए रूपरेखा और कठोरता निर्धारित करती है. ऐतिहासिक रूप से तलाक का कानून मुख्य रूप से दोष सिद्धांत के आधार पर रूढ़िवादी कैनवास पर बनाया गया था. सामाजिक दृष्टिकोण से वैवाहिक पवित्रता का संरक्षण एक प्रचलित कारक माना जाता था.
गुजारा भत्ते पर हाई कोर्ट ने क्या कहा?
अदालत ने कहा कि प्रतिवादी पति द्वारा आरोप लगाए गए क्रूरता का कृत्य सिद्ध पाया जाता है, इसलिए ट्रायल कोर्ट की डिक्री में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ते के मामले में कहा कि मामले के संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है कि अपीलकर्ता पत्नी खुद एक प्रतिष्ठित संस्थान में टीचिंग फैकल्टी है, जिसकी महीने की इनकम करीब 60,000 रुपए है. कोर्ट ने आगे कहा कि इस तथ्य को भी ध्यान में रखते हुए कि दोनों का बेटा अब बड़ा हो गया है, इसलिए कोर्ट अपीलकर्ता को फैसले की तारीख से तीन महीने की अवधि के अंदर दस लाख रुपए का एकमुश्त गुजारा भत्ता देने का आदेश देती है, वो भी 31 दिसंबर 2024 तक. ऐसा न करने पर इस पर फैसले की डेट से इसके वास्तविक भुगतान की डेट तक 8% की दर से ब्याज देना होगा.