अक्सर आपने लोगों को न्याय पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए देखा होगा, लेकिन इस बार एक छठी क्लास की छात्रा ने अपना एडमिशन नहीं होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट ने छात्रा के दाखिल स्पेशल अपील डिफेक्टिव पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी भी बच्चे की उम्र उसके बर्थ सर्टिफिकेट के आधार पर निर्धारित की जाएगी, न कि किसी मेडिकल रिपोर्ट से.
छात्रा ने स्कूल में क्लास-6 में एडमिशन नहीं मिलने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से मामले में दखल देने की मांग की थी. इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने छात्रा की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद छात्रा ने सिंगल बेंच के फैसले को फिर से हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपने एडमिशन के लिए गुहार लगाई.
दरअसल साक्षी नाम की छात्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्पेशल अपील दाखिल करते हुए हाईकोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा पारित 12 मार्च 2024 के आदेश को चुनौती दी, जिसमें सिंगल बेंच ने अपीलकर्ता छात्रा द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया था. मामले के अनुसार छात्रा ने 23 नवंबर 2022 को एक याचिका दायर की थी, जिसमें उसने हाईकोर्ट से प्रतिवादी को निर्देश देने की मांग की थी कि वो छात्रा को संत कबीर नगर स्थित जगदीशपुर गौरा के जवाहर नवोदय विद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए विद्यालय में इस सत्र में क्लास 6 में प्रवेश के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी पर विचार करें और क्लास 6 में एडमिशन दें.
याची छात्रा ने अपनी जन्मतिथि 25 जनवरी 2011 बताते हुए स्कूल में कक्षा 6 में प्रवेश के लिए आवेदन किया था. छात्रा ने इस दौरान अपना बर्थ सर्टिफिकेट, आधार कार्ड और वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी प्रस्तुत किया. इन सभी सर्टिफिकेट में छात्रा की जन्मतिथि 25 जनवरी 2011 दर्ज थी. विद्यालय की मेरिट सूची में सफलतापूर्वक स्थान पाने के बाद उसे स्कूल में प्रवेश दिया गया. हालांकि स्कूल के प्रिंसिपल ने याचिकाकर्ता की उम्र पर संदेह करते हुए याचिकाकर्ता को मेडिकल जांच के लिए भेज दिया.
सीएमओ ने 10 अगस्त 2022 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उनकी राय थी कि याचिकाकर्ता की आयु 15 साल से अधिक है, जिसका मतलब नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र सीमा से दो साल ज्यादा है. सीएमओ की राय के आधार पर स्कूल ने याचिकाकर्ता को स्कूल में एडमिशन देने से इनकार कर दिया गया, जिसके कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई.
यही नहीं हाईकोर्ट ने छात्रा को ओवर एज मानते हुए उसे प्रवेश देने से इनकार करने के स्कूल के फैसले को खारिज करते हुए उसे रद्द कर दिया. कोर्ट ने स्कूल को निर्देश दिया कि वो याचिकाकर्ता छात्रा को एक्ट की धारा 4 के अनुसार उसकी उम्र के अनुसार उपयुक्त क्लास में उसे एडमिशन दें.
कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को वैधानिक ढांचे के तहत जारी बर्थ सर्टिफिकेट पर भरोसा करना चाहिए. बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (जिसे आगे 'अधिनियम' कहा जाएगा) की धारा 14 और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम, 2010 के नियम 13 के प्रावधानों के अनुसार याचिकाकर्ता को अपने बर्थ सर्टिफिकेट में दर्ज उम्र के आधार पर एडमिशन पाने की हकदार थी और इसके लिए मेडिकल सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.
कोर्ट ने कहा कि दलीलें दी गई कि प्रस्तुत दस्तावेजों में प्रविष्टियों के काल्पनिक या गलत होने का संदेह करने का कोई कारण नहीं था. कोर्ट ने कहा कि भले ही कक्षा 6 का शैक्षणिक सत्र समाप्त हो गया है और कक्षा सात का शैक्षणिक सत्र 2023-24 लगभग समाप्त हो गया है. याचिकाकर्ता के लिए कार्रवाई का कारण अभी भी जीवित है और याचिकाकर्ता कक्षा 8 में प्रवेश पाने की हकदार है या वैकल्पिक रूप से उसे कक्षा सात की परीक्षाओं में बैठने की अनुमति दी जा सकती है. हाईकोर्ट ने उम्र पर मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर स्कूल द्वारा छात्रा को प्रवेश देने से इन्कार करने की कार्रवाई को पूरी तरह से अनुचित करार दिया.
कोर्ट ने कहा कि मेडिकल मूल्यांकन केवल एक अनुमान होता है. वो अपीलकर्ता की उम्र का निर्णायक प्रमाण नहीं था. उन्होंने कहा कि सिंगल बेंच ने याची के बर्थ डाक्यूमेंट्स की वैधता पर विचार किए बिना याचिका खारिज करके वैधानिक गलती की है. कोर्ट ने स्कूल के फैसले को रद्द कर दिया और स्कूल को आदेश दिया कि वो शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप साक्षी को उसकी आयु के अनुरूप कक्षा में प्रवेश दें, भले ही उसने दो वर्ष स्कूली शिक्षा नहीं ली हो. कोर्ट ने विपक्षियों को आदेश के दो सप्ताह के अंदर याची को एडमिशन देने का निर्देश दिया.