Blogs | मनीष कुमार |शनिवार मार्च 24, 2018 01:01 PM IST साल 2000 तक बिहार में हर चुनाव बैलेट पेपर से हुए, लेकिन हर चुनाव में जीत का मुख्य आधार सामाजिक समीकरण ही रहे. हालांकि, यह भी सच है कि उम्मीदवार अपनी जीत के लिए बैलेट पेपर को लूटने के प्रयास करते रहे. हालात ऐसे थे कि अगर पार्टी सता में होती तो प्रशासन का साथ मिलता, लेकिन विपक्ष में रहने पर गोलीबारी, चुनाव में अथाह खर्चे आदि करना एक नियमित अनिवार्य प्रक्रिया थी, जिसे नजर अंदाज करना चुनाव से पहले घुटने टेकने के समान था. इसलिए मतदान के दिन हिंसा, गोली चलना, बम विस्फोट एक आम बात थी. शायद ही कोई एक ऐसा चुनाव हो जब लोकतंत्र के नाम पर बूथ लूटने में बीस लोगों से कम जाने गयी हो.