
'SAमीR' का पोस्टर.
रेटिंग: 3.5 स्टार
डायरेक्टर: दक्षिण बजरंगे छारा
कलाकार: जीशान अयूब, अंजलि पाटील और सीमा बिश्वास
आज जब अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में 'समीर' जैसी फिल्म का आना अच्छी बात है. फिल्म कई तरह के सवाल उठाती है जो आज के दौर में पूरी तरह से प्रासंगिक हैं. पाश की कविताओं, गांधी और मंटो से लेकर हर वह चीज इसमें है जो सांप्रदायिकता और समाज को बांटने वाली चीज पर प्रहार करती है. फिल्म का आधार गुजरात दंगों को बनाया गया है. डायरेक्टर ने हकीकत और फसाने का जो मिक्सचर पेश किया है, वह फिल्म को स्पेशल बनाता है. कहानी एकदम टाइट है और एक्टिंग जबरदस्त. डायरेक्शन के मामले में भी फिल्म सधी हुई है. समाज और नेताओं पर करारा व्यंग्य है.
कितनी दमदार कहानी
फिल्म की शुरुआत हैदराबाद से होती है जहां एक बम धमाका होता है. इसमें 14 लोग मारे जाते हैं. नाम आता है यासीन दर्जी नाम के शख्स का और पकड़ लिया जाता है उसका रूममेट समीर मेमन (जीशान अयूब) जो इंजीनियरिंग का स्टूडेंट है. समीर को मजबूर करके एटीएस ऑफिसर उसे यासीन का पता लगाने का काम देते हैं. ऑफिसर समीर को धमकी देता है कि तू बकरा बनेगा और मैं कसाई. वहीं, आतंकी अपने हर हमले से पहले जर्नलिस्ट आलिया (अंजलि पाटील) को मैसेज कर देते हैं. यासीन दर्जी जर्नलिस्ट का फैन है. समीर को एटीएस ब्लैकमेल करती है. दूसरी धमाका बेंगलूरू में होता है और तीसरा अहमदाबाद में. इसके बाद जो फिल्म में एक के बाद एक रहस्य पर से पर्दा उठता है तो हैरानी से मुंह खुला रह जाता है. फिल्म में थ्रिलर वाले सारे गुण है.
VIDEO: NDTVKhabar के साथ 'समीर' की टीम
एक्टिंग के रिंग में
जीशान पहली बार लीड रोल में आए हैं. वे 'रांझणां' और 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में छोटे किरदारों से बड़ी पहचान कायम कर चुके हैं. समीर के किरदार में जीशान ने जबरदस्त एक्टिंग की है. उनका अभिनय इतनी इंटेंस है कि वह आप पर गहरा असर छोड़ेंगे. अंजलि पाटील ने जर्नलिस्ट का किरदार अच्छा निभाया है. मंटो भाई जैसे किरदार की सख्त दरकार है क्योंकि आज के दौर में पत्थर पर रिएक्शन करने के लिए तो हर कोई तैयार है. लेकिन उस पत्थर के पीछे की कहानी कोई समझने को तैयार नहीं है. रॉकेट नाम का बच्चा फिल्म में जब भी आता है अपनी बातों से दिल जीत जाता है.
बातें और भी हैं
'समीर' के रिमांड के सीन रौंगटे खड़े कर देते हैं. नेता का यह पूछना कि क्या पकड़ा गया शख्स मुसलमान है काफी कुछ कह जाता है. फिर एटीएस अफसर का यह कहना- 'वैलकम टू गुजरात' और 'खुशबू गुजरात की' भी कई बातें की ओर इशारा कर देती है. समीर की कहानी तेजी से चलती है और बांधकर रखती है. फिल्म का अंत चिलिंग है. 'समीर' मस्ट वॉच मूवी है.
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
डायरेक्टर: दक्षिण बजरंगे छारा
कलाकार: जीशान अयूब, अंजलि पाटील और सीमा बिश्वास
आज जब अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में 'समीर' जैसी फिल्म का आना अच्छी बात है. फिल्म कई तरह के सवाल उठाती है जो आज के दौर में पूरी तरह से प्रासंगिक हैं. पाश की कविताओं, गांधी और मंटो से लेकर हर वह चीज इसमें है जो सांप्रदायिकता और समाज को बांटने वाली चीज पर प्रहार करती है. फिल्म का आधार गुजरात दंगों को बनाया गया है. डायरेक्टर ने हकीकत और फसाने का जो मिक्सचर पेश किया है, वह फिल्म को स्पेशल बनाता है. कहानी एकदम टाइट है और एक्टिंग जबरदस्त. डायरेक्शन के मामले में भी फिल्म सधी हुई है. समाज और नेताओं पर करारा व्यंग्य है.
कितनी दमदार कहानी
फिल्म की शुरुआत हैदराबाद से होती है जहां एक बम धमाका होता है. इसमें 14 लोग मारे जाते हैं. नाम आता है यासीन दर्जी नाम के शख्स का और पकड़ लिया जाता है उसका रूममेट समीर मेमन (जीशान अयूब) जो इंजीनियरिंग का स्टूडेंट है. समीर को मजबूर करके एटीएस ऑफिसर उसे यासीन का पता लगाने का काम देते हैं. ऑफिसर समीर को धमकी देता है कि तू बकरा बनेगा और मैं कसाई. वहीं, आतंकी अपने हर हमले से पहले जर्नलिस्ट आलिया (अंजलि पाटील) को मैसेज कर देते हैं. यासीन दर्जी जर्नलिस्ट का फैन है. समीर को एटीएस ब्लैकमेल करती है. दूसरी धमाका बेंगलूरू में होता है और तीसरा अहमदाबाद में. इसके बाद जो फिल्म में एक के बाद एक रहस्य पर से पर्दा उठता है तो हैरानी से मुंह खुला रह जाता है. फिल्म में थ्रिलर वाले सारे गुण है.
VIDEO: NDTVKhabar के साथ 'समीर' की टीम
एक्टिंग के रिंग में
जीशान पहली बार लीड रोल में आए हैं. वे 'रांझणां' और 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में छोटे किरदारों से बड़ी पहचान कायम कर चुके हैं. समीर के किरदार में जीशान ने जबरदस्त एक्टिंग की है. उनका अभिनय इतनी इंटेंस है कि वह आप पर गहरा असर छोड़ेंगे. अंजलि पाटील ने जर्नलिस्ट का किरदार अच्छा निभाया है. मंटो भाई जैसे किरदार की सख्त दरकार है क्योंकि आज के दौर में पत्थर पर रिएक्शन करने के लिए तो हर कोई तैयार है. लेकिन उस पत्थर के पीछे की कहानी कोई समझने को तैयार नहीं है. रॉकेट नाम का बच्चा फिल्म में जब भी आता है अपनी बातों से दिल जीत जाता है.
बातें और भी हैं
'समीर' के रिमांड के सीन रौंगटे खड़े कर देते हैं. नेता का यह पूछना कि क्या पकड़ा गया शख्स मुसलमान है काफी कुछ कह जाता है. फिर एटीएस अफसर का यह कहना- 'वैलकम टू गुजरात' और 'खुशबू गुजरात की' भी कई बातें की ओर इशारा कर देती है. समीर की कहानी तेजी से चलती है और बांधकर रखती है. फिल्म का अंत चिलिंग है. 'समीर' मस्ट वॉच मूवी है.
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
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