पर्दे पर 'नूर' : दमदार विषय पर कमजोर स्‍क्रीनप्‍ले! सोनाक्षी सिन्‍हा का उम्‍दा अभिनय

पर्दे पर 'नूर' : दमदार विषय पर कमजोर स्‍क्रीनप्‍ले! सोनाक्षी सिन्‍हा का उम्‍दा अभिनय

सोनाक्षी सिन्हा की 'नूर' भी महिला प्रधान फ़िल्म है.

इस शुक्रवार रिलीज़ हुई दूसरी फ़िल्म है सोनाक्षी सिन्हा की 'नूर'. ये भी महिला प्रधान फ़िल्म है. फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं सोनाक्षी सिन्हा, कनन गिल, शिबानी दांडेकर, पूरब कोहली और एमके रैना. फ़िल्म का निर्देशन किया है सुन्हील सिप्पी ने. ये फ़िल्म सबा इम्तियाज़ की नॉवल 'कराची यू आर किलिंग मी' से प्रेरित है. 'नूर' कहानी है एक ऐसे पत्रकार की जो ज़िंदगियों से जुड़ी ख़बरों को तवज्जो देती है पर उसका बॉस उसे उन कहानियों से दूर रखता है जिसके चलते नूर यानी सोनाक्षी को अपनी ज़िंदगी और काम दोनों बेरंग लगने लगते हैं और फिर एक दिन नूर के हाथ लगती है एक ऐसी ख़बर जिससे उसे अपने सपने पूरे होते नज़र आते हैं.

लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि नूर के सपने तो टूटते ही हैं साथ ही उसकी जान ख़तरे में पड़ जाती है और फिर किस तरह नूर अपनी ग़लतियों को सुधारती है और उस लक्ष्य तक पहुंचती है जो कभी उसने तय किया था ये कहानी है नूर की...क्या है वो लक्ष्य और किस तरह से वो अपने सपनों को अंजाम तक पहुंचाती है ये जानने के लिए आपको सिनेमाघरों तक पहुंचना होगा.
 
फिलहाल बात खूबियों और ख़ामियों की.
सबसे पहले खामियां. सबसे बड़ी इसकी ख़ामी है इसका स्क्रीनप्ले जो काफ़ी बिखरा हुआ है. फ़िल्म की शुरुआत का ज़्यादातर हिस्सा मोनोलॉग के ज़रिए सामने आता है, यानी नूर काफ़ी देर तक अपने किरदार के बारे में बताती रहती है जो कि लंबा और उबाऊ लगने लगता है. फ़िल्म काफ़ी देर तक मोमेंट्स के ज़रिए आगे बढ़ती है जिसकी वजह से कहानी धीमी पड़ जाती है और फ़िल्म का मुख्य विषय काफ़ी देर बाद सामने आता है. फ़िल्म में पूरब कोहली और सोनाक्षी के रोमांटिक सीन्स और सोशल मीडिया पर वायरल हुए नूर के वीडियो से जुड़े मोंटाजेज़ भी काफ़ी लंबे हैं. 'नूर' एक धीमी गति की फ़िल्म है और इससे तेज़ गति की उम्मीद रखने वाले दर्शकों को निराशा हो सकती है.
 
अब बात ख़ूबियों की.
नूर की सबसे बड़ी ख़ूबी है फ़िल्म का विषय और संदेश जो ये कहता है कि किसी भी पत्रकार को पत्रकार होने के साथ-साथ इंसान होना भी ज़रूरी है और नाम और शौहरत कमाने के चक्कर में उसे इंसानियत का फ़र्ज नहीं भूलना चाहिए. ये फ़िल्म पत्रकारिता जगत के कुछ अनछुए पहलुओं को छूती है. इस फ़िल्म में एक और चीज़ जो तारीफ़ के क़ाबिल है वो है सोनाक्षी का अभिनय. एक बेपरवाह-बेबाक़ लड़की के किरदार को सोनाक्षी ने बखूबी निभाया है. फ़िल्म के कई सीन आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी ख़ूबसूरत है जो मुंबई की एक अलग शक्ल दिखाती है. नूर के गाने अच्छे हैं और गुलाबी आंखें गाने का रीमिक्स पहले ही लोगों को पसंद आ चुका है.

फ़िल्म में पूरब कोहली, कनन गिल, एमके रैना और शिबानी दांडेकर अपने-अपने किरदार में फ़िट हैं. तो कुल मिलाकर जो दर्शक ज़रा संजीदा और ठहराव वाला सिनेमा पसंद करते हैं नूर उनके लायक़ है. मेरी ओर से 'नूर' के लिए रेटिंग है 2.5 स्टार्स.

 


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