प्रेमचंद के गांव लमही को केंद्र में रख कर आज से 11-12 वर्ष पूर्व निकाली गयी लमही पत्रिका का हाल ही में अप्रैल सितंबर 2019 अंक हमारा कथा समय-1 के रूप में आया है, जिसमें आज के कथा परिदृश्य में लिख रही 46 महिला कथाकारों के अवदान पर आज के कई पीढ़ी के आलोचकों-समीक्षकों ने लिखा है. लमही इससे पहले भी अन्य कतिपय विशेषांकों के अलावा समकालीन उपन्यास-परिदृश्य पर औपन्यासिक शीर्षक से दो विशेषांक प्रकाशित कर चुकी है. लमही के अन्य विशेषांक भी समय समय पर आते रहे हैं तथा लघु पत्रिकाओं के मध्य साहित्य के प्रति अपनी संजीदगी के कारण यह बराबर चर्चा में रही है तथा प्रेमचंद की परंपरा में अग्रगण्य कथा लेखकों को समय समय पर लमही सम्मान से विभूषित भी किया जाता रहा है.
प्रेमचंद के दौहित्र और प्रधान संपादक विजय राय ने स्त्री लेखन के विकास को समझने के लिए अभिव्यक्ति, अस्मिता और अभिमान के तीन सूत्र जरूरी बताए हैं. उनका कहना है कि स्वतंत्रता आंदोलन के समानांतर चली स्त्री अभिव्यक्ति की जद्दोजेहद साठ और सत्तर के दशक और बाद की कहानी में स्त्री अस्मिता की पुरजोर वकालत के रूप में सामनेआती है. मगर नब्बे के दशक में चली भूमंडलीकरण की बयार ने हिंदी में स्त्री कहानी की सूरत भी बदली. वे कहते हैं कि यह ऐसा दौर है जब स्त्रियों ने अपने लेखन में अॅसर्ट करना शुरु किया. स्त्री विमर्श के पाश्चात्य मूल्यों के बरक्स भारत में स्त्रियों के हालात को, पितृसत्ता और सत्ता के राजनीतिक आधारों को चुनौती देनी शुरु की. स्त्रियों ने स्त्री शोषण के विरुद्ध मिल जुल कर आवाज उठाई. उनके कथा संसार में स्त्री की दुनिया से परे जीवन के अन्य अनेक पहलुओं पर भी बेहतरीन कहानियां पिछले दो तीन दशक में शामिल हुई हैं.
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समकालीन कहानी को स्त्री विमर्श व स्त्री आंदोलनों ने भी एक नई वैचारिक उत्तेजना दी है तथा अनेक वर्जित इलाकों के अनुभवों से लैस आज की स्त्री कहानी अनुभव की मौलिकता का अनन्य उदाहरण है. स्त्री विमर्श के साथ हाशिये के समाज, दलित और आदिवासी जन जीवन पर भी स्त्री लेखिकाएं नई अनुभव-संवेदना के साथ सामने आई हैं. इस बीच प्रवासी महिला कथाकारों का भी एक बड़ा समवाय परिदृश्य में उभरा है जो कहानी के वैश्विक यथार्थ में सक्षम रचनात्मक हस्तक्षेप कर रहा है. इन सबको लमही के इस विशेषांक में खूबी से समेटा गया है.
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इस अंक में वरिष्ठ लेखिकाओं में ममता कालिया, सूर्यबाला, मृदुला गर्ग, सुधा अरोड़ा, नासिरा शर्मा, नमिता सिंह, दीपक शर्मा, मैत्रेयी पुष्पा, उषा किरण खान से लेकर आज की अनेक महत्वपूर्ण कथाकारों-- मधु कांकरिया, सारा राय, गीतांजलिश्री, मनीषा कुलश्रेष्ठ, जयश्री राय, अल्पना मिश्र, प्रत्यक्षा, किरण सिंह, आकांक्षा पारे काशिव, गीताश्री, दूर्वा सहाय, उपासना, दिव्या शुक्ल, इंदिरा दांगी व सोनी पांडेय आदि के कथा संसार की मुकम्मल पड़ताल की गयी है. लमही के इस अंक में अनेक सुधी आलोचकों की भागीदारी है यथा पंकज पराशर, मनीषा जैन, मधु बी जोशी, अनुराधा गुप्ता, ऊषा राय, साधना अग्रवाल, शंभु गुप्त, मीना बुद्धिराजा, संजय कृष्ण, शशिभूषण मिश्र, अल्पना सिंह, पंकज सुबीर, ओम निश्चल, नीरज खरे, अरुण होता, भरत प्रसाद, शंभुनाथ मिश्र, राहुल देव, प्रांजल धर आदि. अब तक के मिली सूचनाओं से लमही के इस अंक को कथा साहित्य के अध्येताओं के बीच काफी उत्सुकता से देखा जा रहा है. विशद कथा मूल्यांकन की दृष्टि से लमही का यह प्रयास कथा आलोचना में मील का पत्थर है जिससे गुजरे बिना समकालीन कहानी की कोई पड़ताल संभव नहीं है.
ओम निश्चल
(डॉ. ओम निश्चल हिंदी के सुपरिचित कवि, समालोचक, भाषाविद् व भाषा की खादी सहित कई पुस्तकों के रचयिता हैं)
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