- पुणे के कोरेगांव पार्क में 19 मई 2024 को नाबालिग ड्राइवर की तेज रफ्तार पोर्श कार ने दो इंजीनियरों को टक्कर मारी थी जिससे उनकी मौत हो गई थी.
- आरोपी नाबालिग 17 साल 8 महीने का था और शराब के नशे में था, जिसके कारण पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया
- ससून अस्पताल में आरोपी के खून का सैंपल बदलने का खुलासा हुआ, जिसके लिए दो डॉक्टर गिरफ्तार किए गए थे
पुणे पोर्श कार एक्सीडेंट मामले में नाबालिग पर एडल्ट की तरह मुकदमा चलाने की पुलिस की मांग पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड मंगलवार 15 जुलाई को अपना फैसला सुना सकती है. क्या नाबालिग पर एडल्ट की तरह चलेगा मुकदमा?
मामला क्या है?
19 मई 2024 की रात पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में एक तेज़ रफ्तार पोर्श (Porsche) कार ने बाइक सवार दो इंजीनियरों को टक्कर मार दी थी. (अश्विनी कोस्टा और अनीश अवधिया) दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. हादसे के वक्त कार चला रहा व्यक्ति महज 17 साल 8 महीने का नाबालिग था, जो शराब के नशे में था.
हादसे के बाद क्या हुआ?
पुलिस ने शुरुआत में महज लापरवाही से गाड़ी चलाने का मामला दर्ज किया था, लेकिन जब ये बात सामने आई कि आरोपी शराब के नशे में था तो मामला गंभीर हो गया. शुरुआत में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) ने आरोपी को महज़ 14 घंटे के अंदर बेल दे दी थी, जिसमें 100 शब्दों का निबंध ,समाज सेवा' और ‘पढ़ाई पर ध्यान देने' जैसी शर्तें थीं. इस पर देशभर में नाराजगी और आक्रोश फूटा था.
फॉरेंसिक साक्ष्य और सैंपल बदलने का खुलासा
बाद में यह खुलासा हुआ कि ससून अस्पताल में आरोपी के खून का सैंपल बदल दिया गया. पुलिस ने इस मामले में अस्पताल के दो डॉक्टरों को गिरफ्तार किया, जो आरोपी के परिवार से मिलीभगत कर ब्लड सैंपल बदलवाने में शामिल थे. यह एक गंभीर साजिश मानी गई.
परिवार और होटल के खिलाफ कार्रवाई
पोर्श कार आरोपी के पिता की थी. एक बिल्डर और रियल एस्टेट कारोबारी. पुलिस ने आरोपी के पिता को भी ‘कानून से खिलवाड़' करने और अपराध में सहयोग देने के आरोप में गिरफ्तार किया. साथ ही पुणे की उन दो पब्स (होटलों) के लाइसेंस रद्द किए गए, जिन्होंने नाबालिग को शराब परोसी थी.
वयस्क की तरह ट्रायल की मांग
पुणे पुलिस ने Juvenile Justice Board से मांग की कि आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए. पुलिस ने IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या), 467 (जालसाजी), और JJ एक्ट की धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि यह 'जघन्य अपराध' है और आरोपी को अपराध के परिणामों की पूरी समझ थी. विशेष सरकारी वकील ने पुछले महीने हुई सुनवाई में JJB में यह तर्क दिया कि आरोपी को न सिर्फ पीने की जानकारी थी, बल्कि उसने गाड़ी चलाते वक्त अपने दोस्तों की चेतावनी को नजरअंदाज किया. यहां तक कि ब्लड सैंपल बदलवाने की साजिश में भी वह शामिल था.
बचाव पक्ष की दलीलें
बचाव पक्ष के वकील प्रशांत पाटिल ने तर्क दिया था कि आरोपी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. वह अभी नाबालिग है और यह घटना पूर्व-नियोजित नहीं थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के “शिल्पा मित्तल बनाम दिल्ली राज्य” मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह घटना कानूनी रूप से “जघन्य” की श्रेणी में नहीं आती.
मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट भी अहम
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड आरोपी की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक परिपक्वता का भी आकलन कराया है. यह रिपोर्ट तय करेगी कि आरोपी को वयस्क की तरह ट्रायल के लिए सक्षम माना जाए या नहीं.
आज क्या होने की उम्मीद
JJB इस मामले में आज अपना फैसला सुना सकती है दोनों पक्षों ने अपनी मामले में दलीलें पूरी कर ली है.