भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत अगले सप्ताह चीतों को अफ्रीका से लाए जाने के मद्देनजर मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) के आसपास लगभग 1,000 कुत्तों को रेबीज-रोधी टीके लगाए गए हैं. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी. अधिकारी ने कहा कि इस कदम का मकसद चीतों को रेबीज से बचाना है.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सप्ताह के प्रारंभ में कहा था कि पांच नर और तीन मादा सहित आठ चीतों के 17 सितंबर को नामीबिया से केएनपी पहुंचने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन के मौके पर उस दिन चीता पुनरुत्पादन परियोजना को शुरू करेंगे.
केएनपी के वन मंडलाधिकारी पी.के. वर्मा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘केएनपी की पांच किलोमीटर की परिधि में स्थित गांवों में एक हजार से अधिक आवारा और घरेलू कुत्तों को यह सुनिश्चित करने के लिए रेबीज-रोधी टीके लगाए गए हैं कि चीतों सहित अन्य जंगली जानवर अभयारण्य में सुरक्षित रहें.'
हालांकि, उन्होंने इस बात से इंकार किया कि कुत्तों को टीका इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि चीते उनका शिकार कर सकते हैं.
वन अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह पहली बार है, जब उद्यान के अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर रेबीज-रोधी टीकाकरण अभियान चलाया.
वर्मा ने कहा, ‘आमतौर पर जब तेंदुआ एक जानवर को मारता है तो शव के एक हिस्से को खाने के बाद शेष बचे भाग को बाद में खाने के लिए छोड़ देता है. इस बीच, यदि एक पागल कुत्ता उस तेंदुए के शिकार के बचे हिस्से को खाता है और फिर तेंदुआ उस हिस्से को खाता है तो तेंदुए और जंगल के अन्य जानवरों को रेबीज हो सकता है.'
गौरतलब है कि सितंबर 2013 में एक पागल कुत्ते ने पन्ना टाइगर रिजर्व में तीन साल के एक बाघ की पूंछ काट ली थी. बाद में वन विभाग द्वारा बाघ ‘पी-212' को तथा जंगली जानवरों विशेषकर बाघों को बचाने के लिए रेबीज-रोधी टीका लगाया गया था.
वर्मा ने कहा, ‘यदि एक पागल कुत्ता जंगल के आसपास मवेशियों को काटता है और अगर उद्यान मे आने वाले किसी भी चीते द्वारा इसका शिकार किया जाता है तो संबंधित चीता संक्रमित हो सकता है और इससे अन्य चीतों में संक्रमण फैल सकता है.'
वर्मा ने कहा कि कुत्तों को रेबीज-रोधी टीका देने का जो अभियान अप्रैल में शुरू हुआ था, वह लगभग खत्म हो गया है. उन्होंने कहा कि कुत्तों को अन्य बीमारियों से बचाने के लिए भी टीका लगाया है.
अधिकारी ने कहा कि लंबे समय से राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के मवेशियों को टीके लगाने का काम किया जाता है लेकिन पहली बार चीतों की रक्षा के लिए कुत्तों पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
बता दें, वर्ष 1952 में चीते भारत से विलुप्त हो गए थे. ‘अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया' 2009 से चल रहा है, जिसने हाल के कुछ सालों में गति पकड़ी है. भारत ने चीतों को यहां लाने के लिए नामीबिया सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.