Coronavirus: इमोशनल आघात और तनाव से जूझ रहे हैं मेडिकलकर्मी, मास्‍क ने बढ़ाई मुश्किलें

डॉक्टर ने कहा कि कई बार यह फैसला लेना मुश्किल हो जाता है कि किस मरीज को आईसीयू और वेंटीलेटर पर रखा जाए और किसे नहीं.

Coronavirus: इमोशनल आघात और तनाव से जूझ रहे हैं मेडिकलकर्मी, मास्‍क ने बढ़ाई मुश्किलें

कोरोनावायरस के संपर्क में आने को लेकर डॉक्टरों में काफी बेचैनी है.

नई दिल्ली:

ब्रिटेन तथा अमेरिका में भारतीय मूल के चिकित्सा पेशेवर भारत में अपने साथियों की तरह ही कोविड-19 (COVID-19) मरीजों की देखभाल करने और इस वैश्विक महामारी से निपटने में भावनात्मक आघात और तनाव से जूझ रहे हैं. 
लंदन में आपात चिकित्सा विशेषज्ञ के तौर पर काम करने वाले भारतीय मूल के डॉ. सज्जाद पठान ने बताया कि ब्रिटेन में भी कोरोनावायरस (Coronavirus) के संपर्क में आने को लेकर डॉक्टरों में काफी बेचैनी है और इस विषाणु को लेकर घर तक जाना उनकी चिंता का मुख्य सबब है.

उन्होंने कहा, "मेरे पास इन मुश्किल हालात में काम करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है और मैं अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकता क्योंकि मैंने कई साल पहले अग्रिम मोर्चा पर रहने वाले इमर्जेंसी मेडिसिन डॉक्टर बनने का फैसला किया था.

उन्होंने कहा कि इस संक्रमण को लेकर परिवार के सदस्यों, खासतौर से बुजुर्गों और बच्चों के पास जाना चिंता की बात है.

पठान ने कहा, "हमने अपने अस्पताल में आपात विभाग को हॉट (कोविड-19) और कोल्ड (गैर कोविड-19) जोन में बांटा है. हम हॉट जोन में हर दिन करीब 75 से 100 कोविड-19 संदिग्ध मरीजों को देख रहे हैं. हमने बारी-बारी से हॉट जोन में डॉक्टरों को तीन से चार घंटे की ड्यूटी पर लगाया है."

पठान ने कहा कि चिकित्सा कर्मी भी बेचैन हैं क्योंकि उनके कुछ सहकर्मी बीमार पड़ रहे हैं और कुछ की तो इस बीमारी से मौत भी हो रही है.

डॉक्टर ने कहा कि कई बार यह फैसला लेना मुश्किल हो जाता है कि किस मरीज को आईसीयू और वेंटीलेटर पर रखा जाए और किसे नहीं.

उन्होंने कहा, "मैं ऐसे मुश्किल फैसले लेने के बाद कई बार रो चुका हूं क्योंकि मैं असहाय महसूस करता हूं कि हम उनके लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए."

पठान ने कहा कि यह सोच कर ही बहुत दुख होता है और दिल टूट जाता है कि ये मरीज अकेले मर रहे हैं और शायद ये अपने परिवार के सदस्यों को फिर कभी नहीं देख पाएंगे.
 
उन्होंने बताया कि घर पहुंचने के बाद वह अपने 10 साल के बेटे से दो मीटर की दूरी रखते हैं और परिवार के सदस्यों से ज्यादातर व्हाट्सएप पर ही बात करते हैं.

यह पूछने पर कि हालात इतने ज्यादा क्यों बिगड़ गए, पठान ने कहा कि शुरुआत में यह समझने में देर हो गई कि यह विषाणु महामारी में बदल सकता है.
 
न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में नर्स सिनी सैमुएल भी ऐसे ही तनाव से गुजर रही हैं.

उन्होंने कहा, "शुरुआत में जब मामले आने शुरू हुए तो लोग ज्यादा चिंतित नहीं थे. तब किसी ने नहीं सोचा था कि स्थिति इतनी भयावह हो जाएगी. इसलिए आवश्यक एहतियात नहीं बरती गई."

सैमुएल ने बताया कि न्यूयॉर्क में ज्यादातर स्वास्थ्यकर्मी घर लौटने पर सबसे अधिक एहतियात बरतते हैं ताकि उनके प्रियजन इस संक्रमण की चपेट में न आ जाएं.

उन्होंने कहा, "सबसे बड़ा भावनात्मक आघात किसी मरीज की हालत को मिनटों या घंटों में बिगड़ते हुए देखना होता है. कुछ लोगों को जिंदगी से जंग लड़ने का तो मौका भी नहीं मिलता."

उन्होंने कहा कि दूसरी परेशानी 10 से 12 घंटे के काम के दौरान मास्क पहनना है.
 
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्यकर्मी अधिक मल्टीविटामिन खा कर अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कर रहे हैं.

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अमेरिका स्थित महामारी वैज्ञानिक डॉ. नीति व्यास ने कहा कि "वायरस की प्रकृति के बारे में जानकारी न होने" के कारण हालात चिंताजनक हो गए.